जदयू के मुख्य जिला प्रवक्ता रिंकू सिंह ने कहा हे कि जातीय जनगणना से समाज में समानता आएगी। गरीब, शोषित व वंचित लोगों को लाभ मिलेगा। इसे देखते हुए शुरू से ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) जातीय जनगणना कराने के पक्ष में रहे हैं। 1931 में जातीय जनगणना हुई थी। उसके बाद जातीय जनगणना नहीं हुई। इसे लेकर एक भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
लोग कयास लगाते रहते हैं कि किस जाति की कितनी संख्या है। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से फोन पर बात कर जनगणना कराने के संबंध में बात की है। पार्टी के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह (JDU National President Lalan Singh) ने भी पार्टी सांसदों के शिष्टमंडल के साथ गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर जल्द जातीय जनगणना कराने की मांग की है।
मुख्य प्रवक्ता ने कहा कि जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधान मंडल से दो बार पारित कर केंद्र सरकार को भेजा गया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने भी कहा है कि जातीय जनगणना से सवर्ण भाइयों को घबराने की जरूरत नहीं है, उनको सम्मानजनक हक मिलेगा। जातीय जनगणना कराने के पक्ष में सभी पार्टियों का समर्थन प्राप्त है तो इसे लेकर विपक्ष द्वारा धरना प्रदर्शन का कोई औचित्य नहीं है। विपक्ष शुरू से ही जात पात की राजनीति करता है। अब 2005 के पूर्व का बिहार नहीं रहा। जनता उनके झांसा में आने वाली नहीं है।
बताते चलें कि जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (JDU Parliamentary Board President Upendra Kushwaha) ने कई बार जातिगत जनगणना की वकालत की। उन्होंने नवादा के एक कार्यक्रम में कहा कि समाज में समानता लाने व सामाजिक विषमता को मिटाने के लिए जातीय जनगणना जरूरी है। 1931 में ब्रिटिश की सरकार ने जाति के आधार पर लोगों की गिनती कराई थी। तब पता चल पाया था कि किस जाति के लोगों को अधिक लाभ नहीं मिल रहा और उसी के अनुसार उन्हें योजनाओं का लाभ दिया गया।
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