राजस्थानी भाषा के संवर्द्धन में सेठिया जी योगदान अहम : हिंगलाज दान रतनू


स्व. कन्हैयालाल सेठिया की जयंती पर आयोजन

बीकानेर/कोलकाता: गुरुवार, 11 सितंबर को रोटरी क्लब पुस्तकालय के प्रांगण में राजस्थानी भाषा के सुप्रसिद्ध कवि स्व. कन्हैयालाल सेठिया की जयंती के अवसर पर एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ.

 

प्रथम वक्ता के रूप में बोलते हुए कोलकाता से गये राजस्थान सरकार के जनसंपर्क अधिकारी हिंगलाज दान रतनू ने कहा कि राजस्थान की धरती में पैदा हुए अनेक रत्नों में से श्री सेठिया जी का भाषा के संवर्द्धन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उन्होंने अपनी मारीशस यात्रा के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि विदेशी धरती पर सेठिया जी की काव्य रचनाओं की लोकप्रियता गर्वान्वित करती है. अपने उद्बोधन में श्री हिंगलाज ने राजस्थानी दोहों के माध्यम से उनके व्यक्तित्व व कृतित्व का सांगोपांग वर्णन किया.

 डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कहा कि सेठिया जी ने राजस्थानी के साथ-साथ हिन्दी व उर्दू में भी कार्य किया. 'धरती धोरां री' व 'पाथल व पीथल' उनकी रचना है. 'धरती धोरां री' गीत को राज्य गीत घोषित किये जाने की आवश्यकता है. स्वतंत्रता संग्राम पर राष्ट्रवादी कविताओं के लिए उनको युग चारण के रूप में जाना जाता है. वे केवल राजस्थान के ही नहीं, अपितु देश के कवि हैं. 

इसी क्रम मे अपने विचार प्रकट करते हुए जगदीश दान रतनू ने कहा की सेठिया जी मायड़ भाषा राजस्थानी के प्रति पूर्ण रूपेण प्रतिबद्ध थे. उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए प्रयास किया जाना चाहिए, यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी. एम.एल. जांगिड ने विषय कों आगे बढाते हुए कहा की सेठिया जी को जन जन की भावना को उच्च स्तर तक ले जाने का श्रेय मिला है. उनके द्वारा शब्दों को जिस तरह से मूर्तरूप दिया गया है, वह बहुत बड़ी बात है.

 मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए रोटेरियन प्रवीण गुप्ता ने कहा कि राजस्थानी भाषा के संवर्द्धन के लिए हमें घर- घर में राजस्थानी भाषा का वाचन कर भाषा की मान्यता के लिए आधार तैयार करना चाहिए.

 अपने अध्यक्षीय उदबोधन में पूर्व प्रोफेसर मजुला बारहठ ने कहा कि सेठिया जी राष्ट्रीय जन चेतना और जमीन से जुडे हुए कवि थे. रोटरी सचिव अलोक प्रताप सिंह ने रोटरी क्लब द्वारा राजस्थानी भाषा व साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए किये जाने वाले कार्यों की जानकारी दी.

संगोष्ठी का संयोजन राजस्थानी भाषा व साहित्य अकादमी के पूर्व सचिव पृथ्वीराज रतनू ने किया. संगोष्ठी में डॉ. किशन लाल विश्नोई, योगेंद्र कुमार पुरोहित, डॉ. फारूख चौहान, सुभाष विश्नोई, ऋषि व्यास, विमल भोजक, महेंद्र सिंह ने सहभागिता निभाई. संगोष्ठी के अंत में श्री अमर सिंह खंगारोत ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

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