नेहा झा
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सीतामढ़ी/पटना:सावन कृष्ण पक्ष के पंचमी के दिन से शुरू होता है मधुश्रावणी का पर्व ।इस पर्व को लेकर काफी चर्चा होती रहती है क्योंकि अलग-अलग क्षेत्र या यूं कहें जो लोग मिथिला के क्षेत्र से नहीं होते हैं उन्हें शायद ही मालूम हो इस पर्व के बारे में। ये मिथिलांचल के पारंपरिक धार्मिक पर्व है जिसका नाम है मधुश्रावणी।यह पर्व विशेष रूप से मैथिल ब्राह्मण और कर्ण कायस्थ इन्हीं दो परिवारों में ज्यादातर मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि महिलायें अपने सुहाग की रक्षा के लिए करीब 13 दिनों तक होने वाली पूजा के समय नवविवाहिता पूरे नियम- निष्ठा का पालन करती है, यह पर्व कहीं न कहीं एक विशेष स्थान भी रखता है ये कुछ अलग सा है जिसमें खूबसूरती भी है।जैसे 13 दिनों तक नवविवाहित वनों तथा बगीचों में जाकर फूल पत्तियों से फूल लोढती है जिसे हम दूसरी भाषा मे ये भी कह सकते है कि फूलों से सजावट करती है।शाम को बगीचे में गीत गाते हुये फिर उसके अगले दिन उसी सजे हुये फूल-पत्तियों से पूजा करती हैं,इसमें नहाय-खाय, गौर निर्माण एवं पूजा घर की तैयारी में नवविवाहिताएं लगी होती हैं।
प्रथम पूजा के साथ शुरू होने वाला मधुश्रावणी के 13 वें दिन को नवविवाहिता को टेमी दागने से सम्पन्न होता है। पूजा के पहले दिन से ही पूजा व्रती ससुराल के द्वारा भेजे गये पूजन सामग्री, वस्त्र व पूजा के दौरान अरवा भोजन का सामान का उपयोग करती है और उन्हें 13 दिन तक ससुराल का ही अनाज खाना होता है। इस पर्व के पूजा के अंतिम दिनों में पूजा की सामग्री, वस्त्र के साथ-साथ कथा बोलने वाली साथ ही लड़की के परिवार के सभी सदस्यों के लिये वस्त्र के साथ-साथ सुहागन के भोज के लिये सामग्री ससुराल पक्ष से ही आने की प्रथा है और आज भी बरकरार है। ये मधुश्रावणी पूजा पुरूष पंडितों द्वारा नहीं बल्कि महिला द्वारा करवायी जाती है। पूजा के समय में जो महिला कथा बोलती है या दूसरे शब्दों में यू कहे कि कथा सुनाती है प्रत्येक दिन शिव पार्वती से जुड़ी कहानियां सुनाती है। पूजन देखने और मधुश्रावणी कथा सुनने अगल बगल,आस-पड़ोस से आनेवाली महिलाओं द्वारा पूजा के दौरान भगवती, विषहरा एवं शिव नचारी का लोकगीत गाया जाता है।
पूजा के दौरान नवविवाहितों की टोलियां शाम को अपनी सहेलियों के साथ गांव के फुलवारियों से फूल पत्ते तोड़कर लाती है और सुबह में उन फूलों सहित अन्य पूजन सामग्रियों से गौरी व नाग नागिन की पूजा करती है। अब हम फिर से बात करेंगे टेमी दागने की प्रथा की ये प्रथा क्या है ? ये मधुश्रावणी पर्व के अंतिम दिनों में या यूं कहें इस त्यौहार के अंतिम दिन में ससुराल से आये रुई की बाती जिसे हम मैथिली भाषा में टेमी कहते है उस टेमी को जलाकर नवविवाहिता को दागने का रस्म किया जाता है जिसे हम टेमी दागने की प्रथा कहते हैं। टेमी के नाम से प्रचलित ये रस्म ऐसी मान्यता है कि नवविवाहिता के लिये ये रस्म अग्निपरीक्षा के समान है। ये 13 दिन का पर्व वाकई मिथिला का बहुत खूबसूरत पर्व में से एक मानते है या यूं कहें कि माना जाता है। लेकिन ये "टेमी दागने की प्रथा सोचनीय है जो कि इस पर्व के अंतिम दिनों में होता है।यह प्रथा मानवता के विपरीत है साथ ही साथ ऐसा प्रतीत होता है कि आज भी नवविवाहिता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है।इसलिए इस प्रथा को बिल्कुल बंद कर देना चाहिए जिससे इतना खूबसूरत पर्व मधुश्रावणी से बदनुमा दाग सदा के लिए हट सके।(नोट:लेखिका गायन के माध्यम के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों पर अपनी बात को बेबाकी से रखती हैं एवं सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं)
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