अभी तो हमें ये छठ मना लेने दीजिए...


छठ महापर्व आज फिर देहरी पर आ चुका है। चमकते घाट, गंगा का पानी, भगवान भास्कर के उदित और अस्ताचलगामी स्वरूप, केले के घौद, नारियल के ढूह, ठेकुँए की सोंधी सुगंध, लौकी की पकौड़ी, गुड़ का रसिया.....थोड़ा ठहरिए...इन सबको भावनात्मक रूप में समझने के लिए आपको पल भर के लिए बिहारी होना होगा। देखिए हँसिएगा नही, बहुत हँस चुके हैं हम पर। पता है...दूसरे राज्यों में जाकर हम लात-जूते खाकर, बात-गाली सुन कर भी जो अपना हांड़ -मांस गलाते हैं न, फिर भी जी लेते हैं...वो इसी छठ के इंतजार में। हमे पता है, एक दिन छठ आएगा और हमारी छठी मैया हमें बुला लेंगी। अपने आँचल से हमारा सिर पोंछ देंगी और बोलेंगी- 'घबड़ा मत, थोड़ा आराम कर ले, मैं हूँ न...' और हम मुस्कुरा उठेंगे, अगले पूरे एक वर्ष के लिए। सच मानिएगा, अपने चौखट से दूर जाते हुए हमें जरा भी खुशी नही होती, हम भी सिसक-सिसक कर खूब रोते हैं, बिल्कुल आप ही की तरह.....बूढ़ी मैया से चार दिनों से आंख तक मिलाना छोड़ देते हैं...बाबूजी की लंबी लंबी खांसी को न सुनने का बहाना करते हैं...हम क्या करें, मजबूर हैं। ये राजनीति की अकर्मण्यता है या समाज की अगतिशीलता जिसके कारण ये हुआ, ये हम नहीं जानते। हम तो बस यही जानते हैं कि मार खाकर मजदूरी करना हमारी नियति बन चुकी है। रुकिए, हमे इतने भी हल्के में मत लीजिएगा। हम वही लोग हैं जिन्होंने कमोवेश एक हजार सालों तक न सिर्फ भारत अपितु पूरे विश्व पर अप्रत्यक्ष शासन किया। पाटलिपुत्र में बैठे मौर्यों ने जो भौगोलिक सीमा प्राप्त की उसे आधुनिक तकनीक से लैस अंग्रेज भी न प्राप्त कर सकें। नंद वंश से लेकर गुप्तों तक हमारा सानी कोई नहीं रहा। ये जो भारत को विश्वगुरु बोलते हैं न आप...थोड़ा हमें हटा कर बोलिए...झिझक महसूस होगी। भारत के इतिहास के चमकदार पृष्ठ हमने ही लिखे हैं...और हाँ, एक बात और, ये बुद्ध महावीर चाणक्य जीवक चंद्रगुप्त अशोक आर्यभट्ट गौतम अश्वघोष आदि-आदि की हम डींगें नही हांक रहे। बस यही बताना है कि हम वही लोग हैं। उत्थान-पतन इतिहास का हिस्सा है...दिन उलटते-पलटते रहते हैं। यकीन मानिए, हमारा पतन पूरे भारत का पतन है और हमारा उत्थान भी पूरे भारत का उत्थान होगा। ये जो हम छठ मनाते हैं न, ये उसी की तलाश है। हम ज्यादा नहीं जानते और न जानना चाहते हैं। बस हमे अच्छा लगता है। जैसे आप सबको अपने पर्व अच्छे लगते हैं  न, वैसे ही हमें भी लगते हैं। आप ही की तरह हम भी हैं। अलग मत समझिए। भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं। उन्हें नमन करने दीजिए। यकीन मानिए, बिहारी होना अपराध नहीं है। थोड़ा समय तो दीजिए...जो गिरा है, उठता भी वही है। अभी तो हमें ये छठ मना लेने दीजिए...हमें अच्छा लगता है...और हो सके तो थोड़ी श्रद्धा आप भी दिखा दीजिएगा।

- आशीष कुमार वर्मा, आईडीएएस

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