पैसों के अभाव में अस्पताल ने बच्ची के ऑपरेशन के बाद बिना टांका लगाए ही बाहर निकाल दिया, मौत


प्रयागराजः यूं तो देश में गरीबों के इलाज के लिए आयुष्मान भारत से लेकर कई स्वर्णिम योजनाएं हैं लेकिन पैसे के अभाव में प्रयागराज में 3 साल की बच्ची ने जो झेला उसे सुनकर कलेजा मुंह को आ जाएगा। बच्ची को पेट में तकलीफ थी, परिवार के पास इलाज के पैसे नहीं थे लिहाजा अस्पताल ने बच्ची के साथ ऐसी अमानवीयता दिखाई कि उसकी तड़प-तड़पकर जान चली गई। आरोप है कि अस्पताल ने बच्ची के ऑपरेशन के बाद बिना टांका लगाए फटे पेट के साथ ही बाहर निकाल दिया। 

अस्पताल की संवेदनहीनता सामने आने के बाद प्रशासन की ओर से जांच कमिटी बिठाई गई है। एडीएम सिटी और सीएमओ इस मामले की जांच करेंगे। दोषियों पर जल्द-से-जल्द कार्रवाई की बात कही जा रही है। वहीं, राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने प्रयागराज कलेक्टर से 24 घंटे के अंदर कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है।

एनसीपीसीआर ने जांच करने की मांग के साथ अस्पताल के डॉक्टर और स्टाफ के खिलाफ आईपीसी की सख्त धाराओं के खिलाफ केस दर्ज करने को कहा। आयोग ने बच्ची के परिवार को मुआवजा देने को भी कहा। उधर बच्ची की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हैं, लेकिन वह इतनी दर्दनाक हैं कि किसी का भी दिल दहल जाए।

प्रयागराज के करेली थाना क्षेत्र के करेंहदा निवासी तीन साल की खुशी मिश्रा को पेट में दर्द था। मां-बाप ने इलाज के लिए प्रयागराज के धूमनगंज के रावतपुर स्थित यूनाइटेड मेडिसिटी अस्पताल में भर्ती कराया। आंत में इन्फेक्शन बताकर कुछ दिन बाद बच्ची के पेट का ऑपरेशन किया गया लेकिन टांके वाली जगह पर पस की समस्या हो गई थी।

चार-पांच दिन बाद उसी जगह पर एक और ऑपरेशन किया गया। बच्ची के पिता के मुताबिक इस ऑपरेशन के लिए डेढ़ लाख रुपये ले लेने के बाद भी हॉस्पिटल प्रशासन ने पांच लाख रुपये की डिमांड की। जब रुपए नहीं दे पाए तो हॉस्पिटल प्रशासन ने बच्ची को फटे पेट के साथ ही परिवार समेत बाहर भेज दिया और कहा कि अब इसका इलाज यहां नहीं हो पाएगा।

इसके बाद पिता अपनी बेटी को लेकर कई हॉस्पिटल तक गए। लेकिन सभी हॉस्पिटलों में बच्ची को लेने से मना कर दिया गया। कहा गया कि बच्ची की हालत बहुत क्रिटिकल है, वह नहीं बच पाएगी। बच्ची जिंदगी की जंग हार गई और उसने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया। मृतक बच्ची के पिता का आरोप है कि डॉक्टर्स ने बच्ची के ऑपरेशन के बाद सिलाई, टांका नहीं किया और परिवार को ऐसे ही सौंप दिया। इसी वजह से दूसरे हॉस्पिटल ने बच्ची को लेने से मना कर दिया। बाद में इलाज के अभाव में बच्ची ने दम तोड़ दिया।

यह भी बताया जा रहा है कि बच्ची के पिता ने इलाज के लिए अपने हिस्सा का दो बिस्वा खेत भी बेच दिया था। रिश्तेदारों से भी पैसे उधार लिए लेकिन बच्ची को नहीं बचा सका। 3 साल की बेटी की मौत के बाद परिवार बदहवास है।

उधर, अस्पताल ने अपनी सफाई में आरोपों में बेबुनियाद बताया। अस्पताल ने कहा कि माता-पिता की सहमति से 24 फरवरी को ऑपरेशन हुआ था और आगे के उपचार के लिए एसआरएन के लिए रेफर किया गया था, लेकिन परिजन बच्ची को लेकर चिल्ड्रन अस्पताल गए थे। अस्पताल ने दावा किया था चिल्ड्रन अस्पताल में ही बच्ची की मौत हुई। साथ ही यह भी दावा किया कि बच्ची के इलाज का खर्च 1।25 लाख रुपये था लेकिन परिवार से महज 6 हजार रुपये लिए गए थे। 

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