कोलकाता: श्रीमती राममूर्ति बंसल परिवार द्वारा आयोजित सप्ताह व्यापी श्री रामकथा महामहोत्सव के प्रथम दिन संत विजय कौशल महाराज ने महर्षि वाल्मीकि एवं प्रभु श्री राम के संवाद की चर्चा करते हुए कहा कि जब प्रभु ने महर्षि से रहने योग्य स्थान बताने का अनुरोध किया तो महर्षि वाल्मीकि ने कहा, प्रभु आप तो कण-कण में विराजमान हैं फिर भी नर लीला में जब आप पूछ ही रहे हो तो महर्षि ने प्रभु के रहने के 14 स्थान बताए हैं, जो हमारे शरीर में ही विद्यमान हैं। संसारियों को इस प्रसंग से प्रेरणा लेनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्रभु श्री राम ने हमारे कल्याण के लिए आदर्श जीवन स्वयं जी कर बताया है। केवट को भक्ति का वर दिया, माता सीता जी ने गंगा मैया का पूजन किया, आगे यात्रा में प्रभु प्रयागराज में त्रिवेणी स्नान कर ऋषि भारद्वाज जी के आश्रम पहुंचते हैं। रात्रि विश्राम कर भारद्वाज जी से आगे का मार्ग पूछते हैं। प्रभु बताते हैं कि मार्ग हमेशा परमार्थी से ही पूछना चाहिए तब आगे वे महर्षि वाल्मीकि जी के आश्रम पहुंचते हैं, जहां निवास स्थान पूछने पर प्रभु एवं महर्षि में सुंदर ज्ञानदायी संवाद होता है। महर्षि उन्हें चित्रकूट में निवास की बात कहते हैं। प्रभु जानकी एवं लक्ष्मण भैया चित्रकूट निवास करते हैं। यहां कोल भील प्रभु की सेवा में कंद मूल फल लाते हैं। इधर, श्रृंगवेरपुर में सुमंत अयोध्या जाना नहीं चाहते हैं तब निषादराज गुह्य उन्हें समझा बुझाकर अयोध्या वापस भेजते हैं। सुमंत मन भारी कर अयोध्या पहुंचते हैं। सूना रथ देखकर मां कौशल्या विफल हो गई। जैसे ही सुमंत महाराजा दशरथ के पास पहुंचकर बताते हैं कि मेरे साथ कोई नहीं आया, यह सुनकर महाराजा दशरथ व्यथित हो जाते हैं। स्वयं को दोषी मानते हुए कहने लगा कि मेरे जैसा पुत्र किसी का नहीं हो सकता जो आज्ञा पालन के लिए वन को चला जाए। आखिर उसका अपराध क्या है? इतना कहकर राजा दशरथ मूर्छा में चले जाते हैं।
होश आने पर श्रवण कुमार के अंधे माता पिता की याद आती है। मरते समय पुत्र वियोग में दिए गए श्राप का ध्यान करते हैं। अपने जीवन में पूर्व में किए गए कृत्य अंत समय याद आते हैं। महाराजा दशरथ प्रभु राम, जानकी, लक्ष्मण को याद करके विलाप करते हैं। राम राम छः बार राम स्मरण कर प्राण त्याग देते हैं। मानसकार कहते हैं कि महाराजा दशरथ का जीवन धन्य है जिन्होंने जीवन में राम जैसे पुत्र का दर्शन किया और मरे तो राम राम का स्मरण करते रहे।
कोलकाता महानगर के सामाजिक, धार्मिक और औद्योगिक जगत के स्थापित व्यक्तित्वों से खचाखच भरे सभा स्थल पर संत श्री ने भक्ति भाव पूर्ण गायन से सबको सम्मोहित कर दिया। श्री राम और देवाधिदेव महादेव पर गाये भजनों ने सबको भावविभोर कर दिया।
धर्म मूर्ति स्व साधुराम बंसल के तीनों सुपुत्र सर्वश्री राम गोपाल बंसल, सज्जन बंसल, सुनील बंसल एवं पौत्रों सहित परिवार के सभी सदस्य आगत अतिथियों की आवभगत में तल्लीन रहे। परिवार के सदस्यों ने सामूहिक रूप से कथा व्यास एवं श्री रामायण जी की आरती उतारी । सुभाष मुरारका, सुरेश अग्रवाल मनकसिया, सत्यनारायण
देवरालिया, राजेंद्र खंडेलवाल,नीरज हाडोदिया, सुरेश मित्तल, शंकर लाल भट्टूवाला, प्रमोद गुप्ता सहित अनेकों सेवाभावी लोग आयोजन को सुव्यवस्थित करने में लगे रहे।
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