Ramdhari Singh Dinkar Birth Anniversary: गांव के हर दीवार पर आज भी लिखी है रामधारी सिंह दिनकर के कविता की पंक्तियां


Ramdhari singh Dinkar: 'तुमने दिया राष्ट्र को जीवन, राष्ट्र तुम्हें क्या देगा। अपनी आग तेज रखने को बस, नाम तुम्हारा लेगा।' लिखने वाले राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) की आज 115वीं जयंती है. 

सुनु क्या सिंधु मैं गर्जन तुम्हारा,
स्वयं युगधर्म का हुंकार हूं मैं।

अपनी इन रचनाओं से आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था. दिनकर के गांव सिमरिया और बेगूसराय में उनकी 115वीं जयंती के मौके पर भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है. गांव वालों को कसक है कि हर साल दिनकर के जयंती और पुण्यतिथि पर भव्य आयोजन किया जाता है. फिर लोग भूल जाते हैं.

गांव के लोग दिनकर को जिंदा रखे हुए हैं. तभी तो गांव के हर दीवार पर उनकी कविता की पंक्तियां आज भी लिखी हुई है. साथ ही उनके घर में आज भी वो बिछावन और उनकी छड़ी मौजूद है. गांव वालों ने कहा कि राजनीतिक लोग सिर्फ दिनकर जी का इस्तेमाल किए. जिस दरवाजे पर दिनकर जी बैठका लगाते थे, वो आज भी जर्जर है. सिमरिया गांव को आर्दश ग्राम घोषित कर दिया गया लेकिन जो विकास होना चाहिए, वो नहीं हुआ. स्थानीय लोगों ने दिनकर के नाम पर बेगूसराय में विश्वविद्यालय खोलने की मांग की.

कठिनाइयों में गुजरा था बचपन

8 साल की उम्र में ही राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर से पिता का साया छिन गया. एक गरीब और मध्यमवर्गीय किसान परिवार में जन्मे रामधारी सिंह दिनकर की प्रारंभिक शिक्षा काफी विपरीत परिस्थितियों से होकर गुजरी. उन्होंने गांव के ही स्कूल से मिडिल स्कूल तक की शिक्षा हासिल की. मोकामा से उन्होंने वर्ष 1928 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की. इस दौरान वो लगातार नाव से गंगा पार कर मोकामा जाते रहे.

रामधारी सिंह दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास से बीए ऑनर्स की परीक्षा 1932 में उत्तीर्ण की. उसके ठीक अगले वर्ष उन्हें एक विद्यालय में प्रधानाचार्य नियुक्त कर दिया गया. इस बीच कई उतार-चढ़ाव को देखते हुए 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद 1952 में उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया गया. 12 वर्ष तक वो राज्यसभा सांसद रहे.

1964 में भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में उनकी नियुक्ति की गई. अपने राज्यसभा के कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई बार सत्तासीन सरकार का भी विरोध किया था. दिनकर की राष्ट्रभक्ति और विद्वता को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने वर्ष 1965 से वर्ष 1971 तक उन्हें भारत सरकार में हिंदी सलाहकार के रूप में नियुक्त किया.

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