तीस्ता सीतलवाड़ को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक


गोधरा कांड के बाद हुए दंगों से जुड़े मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को शनिवार को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई. कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के उस फैसले को खारिज करते हुए सीतलवाड़ को जमानत दे दी, जिसमें उन्हें तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया था. देर रात तक चली सुनवाई में शीर्ष अदालत ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले पर तल्ख टिप्पणी भी की.

मालूम हो कि अदालत ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा की सीतलवाड़ को अगर अंतरिम संरक्षण दिया गया तो क्या इससे आसमान गिर जाएगा…उच्च न्यायालय ने जो किया है उससे हम आश्चर्यचकित हैं.

मालूम हो कि इससे पहले सीतलवाड़ मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों में मतभेद हो गया, जिसके बाद इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा दिया गया था. सीजेआई ने इस मामले में सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया था, जिसमें जस्टिस बीआर गवई, एएस बोपन्ना और दीपांकर दत्ता शामिल थे.

सीतलवाड़ के मामले को अस्थायी सुरक्षा देने पर दो न्यायाधीशों के बीच मतभेद के बाद तीन न्यायाधीशों वाली पीठ के गठन के लिए देश के मुख्य न्यायाधीश के पास तत्काल समीक्षा के लिए भेजा गया था. इससे पहले सीतलवाड़ की जमानत याचिका खारिज करते हुए गुजरात उच्‍च न्‍यायालय ने उन्हें तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था.

एक विशेष सुनवाई में, न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने सुनवाई के बाद कहा कि सीतलवाड़ को अंतरिम संरक्षण देने पर हमारे फैसले अगल-अलग हैं. पीठ ने एक बड़ी पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए इस मामले को न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के पास भेज दिया. हालांकि, इस मामले में सुनवाई की शुरुआत में न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि सीतलवाड़ को आत्मसमर्पण करने के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए था.

मालूम हो कि अहमदाबाद अपराध शाखा ने जून 2022 को तीस्‍ता सीतलवाड़ को दंगों के दौरान फर्जी शपथ पत्र व झूठे गवाह बनाकर कई निर्दोष लोगों को जेल भेजने के आरोप के चलते गिरफ्तार किया था. पूर्व आईपीएस आर बी श्रीकुमार व पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को भी इस मामले में सहआरोपी बनाया गया था.

आरोपियों पर गुजरात सरकार को बदनाम करने, गुजरात की छवि खराब करने तथा तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री को जेल भेजने की साजिश रचने का भी आरोप है. इनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 468 (कूट दस्‍तावेज तैयार करने, धोखाधडी) व धारा 194 (झूठे गवाह बनाकर कठोर सजा की साजिश रचने) के मामले दर्ज हैं.

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