समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर बैकफुट पर विपक्ष, कई दलों ने किया समर्थन


समान नागरिक संहिता के मुद्दे से जहां एक ओर विपक्षी एकता की धार कुंद होती दिख रही है, वहीं छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में नरम हिंदुत्व के सहारे भाजपा को चुनौती देने में जुटी कांग्रेस की कोशिशों को भी झटका लग सकता है. शिवसेना, बीआरएस और बसपा ने खुले तौर जहां समान नागरिक संहिता का समर्थन कर दिया है, वहीं कांग्रेस इस मुद्दे पर अपने पत्ते खोलने से हिचक रही है.

वैसे तो विपक्षी एकता के लिए पटना में हुई बैठक में बीआरएस और बसपा को आमंत्रित नहीं किया गया था, लेकिन शिवसेना उद्धव गुट न सिर्फ इसमें शामिल हुआ, बल्कि विपक्षी एकजुटता के सहारे भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में हराने का दावा भी किया था. कांग्रेस के लिए समान नागरिक संहिता का खुला विरोध करने वाले वामपंथी दलों और शिवसेना जैसे दलों के बीच समन्वय बिठाना आसान नहीं होगा.

17-18 जुलाई को बेंगलुरु की विपक्षी दलों की बैठक में इसका हल ढूंढने की कोशिश हो सकती है. दूसरी ओर छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस नरम हिंदुत्व के सहारे भाजपा को पटखनी देने की कोशिश में है. कांग्रेस इन तीनों राज्यों में हिंदुओं से जुड़े मुद्दों का खुलकर समर्थन कर रही है. 

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की तरह इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की कोशिश भाजपा के पक्ष में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने की है. हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे और मौजूदा सरकार में मंत्री विक्रमादित्य सिंह के समान नागरिक संहिता के समर्थन से साफ है कि कांग्रेस के लिए इसका विरोध करना आसान नहीं होगा.

हरियाणा सरकार अपने यहां समान नागरिक संहिता को लागू करने की पक्षधर है. मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मंगलवार को कहा कि समान नागरिक संहिता होनी चाहिए. एक जैसी नागरिक संहिता नहीं होने से विवाद होते हैं. समाज में एकरूपता और एकरसता जरूरी है.

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