सब रजिस्ट्रार पर 5000 रु अर्थदंड के साथ आरोप पत्र गठन की हुई अनुशंसा, साथ ही प्रधान सहायक पर भी आरोप पत्र गठन की अनुशंसा


न्यायालय से यथास्थिति रखने वाले आदेश के बाद भी जमीन की रजिस्ट्री करने के मामले में डीपीजीआरओ ने की कार्रवाई

सूरज कुमार / युवा शक्ति न्यूज 

गया : जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी सुबोध कुमार ने न्यायालय से यथास्थिति बरकरार रखने वाले आदेश के बावजूद संबंधित जमीन की रजिस्ट्री करने के आरोप में जिला अवर निबंधक पर 5000 रु अर्थदंड के साथ आरोप पत्र गठन की अनुशंसा की है.साथ ही उनके प्रधान सहायक पर भी आरोप पत्र गठन की अनुशंसा की गई है.दरअसल यह मामला राहुल कुमार जो कि नई गोदाम के रहने वाले हैं, ने जिला लोक शिकायत निवारण कार्यालय में एक आवेदन दे कर आरोप लगाया कि खाता संख्या- 2217, प्लाॅट संख्या- 1735 की भूमि केसर-ए-हिन्द भूमि है, जिसकी रजिस्ट्री 07.11.2022 को जिला अवर निबंधक द्वारा कर दी गई है.जबकि इस मामले में तत्कालीन जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी नरेश झा एवं मगध प्रमंडल आयुक्त द्वारा आदेश दिया गया था कि उचित सुनवाई कर जमाबंदी रद्द वाद की कार्रवाई प्रारंभ करें.परिवादी द्वारा अपने दावे के समर्थन में खाता संख्या- 2217, प्लाॅट संख्या- 1735, क्षेत्रफल 1488 वर्ग फीट से संबंधित डीड एवं अन्य विभागीय दिशा निदेश की छायाप्रति दिया गया और बताया गया कि अधिकारी के आदेश और डीड में लिखे होने के उपरांत भी जिला अवर निबंधक द्वारा जमीन की रजिस्ट्री कर दी गई है,जबकि यह जमीन पूरी तरह से सरकारी थी.इस मामले में जिला लोक शिकायत निवारण कार्यालय द्वारा जांच उपरांत उचित कार्रवाई करते हुए प्रतिवेदन की मांग लोक प्राधिकार-सह-जिला अवर निबंधक से की गई.प्रस्तुत परिवाद में लोक प्राधिकार द्वारा प्रतिवेदित किया गया कि कार्यालय में संधारित रोक सूची एवं स्कोर के कम्प्यूटर साॅफ्टवेयर में दर्ज रोक सूची में मौजा-आलमगीरपुर, वार्ड संख्या- 32 के खाता संख्या- 2217 नया एवं प्लाॅट संख्या-1735 नया से संबंधित किसी प्रकार का रोक सूची एवं खेसरा पंजी अंचल से अप्राप्त है.लोक प्राधिकार को निदेशित किया गया कि चूंकि परिवादी द्वारा उक्त भूमि को केसर-ए-हिन्द भूमि बताया जा रहा है, अतः इस संबंध में विस्तृत प्रतिवेदन समर्पित करें.पुनः लोक प्राधिकार द्वारा प्रतिवेदित किया गया कि निबंधन अधिनियम-1908 के अधीन निबंधन के लिए प्रस्तुत किए जाने वाले दस्तावेजों में निबंधन पदाधिकारी स्वत्व की जाँच नहीं करता है.जाँच हेतु सक्षम प्राधिकार नहीं है.यदि निबंधन हेतु प्रस्तुत किया गया दस्तावेज निबंधन अधिनियम एवं इसके अधीन गठित नियमावली की अपेक्षाएँ पूरी करता है तो ऐसे दस्तावेजों का निबंधन करना निबंधन पदाधिकारी का वैधानिक दायित्व है.उक्त खाता-खेसरा रोक सूची में दर्ज नहीं है.अर्थात उक्त खाता-खेसरा पर किसी प्रकार का रोक दर्ज नहीं है.इसके अतिरिक्त दस्तावेज के वेंडर ज्योति नोएल शाह की तरफ से प्रतिवादी साजिद परवेज भी उपस्थित होकर अपना पक्ष रखे और प्रश्नगत जमीन को अपना निजी भूमि बताया.

जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी ने मामले की जांच उपरांत कई महत्वपूर्ण तथ्य पाए
इस मामले में जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी सुबोध कुमार ने सभी कथन/साक्ष्यों के समीक्षोपरांत कुछ महत्वपूर्ण तथ्य पाए जो इस प्रकार हैं-
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के पत्रांक 1048(6)/दिनांक 08.09.2021 के अनुसार पूर्ववर्ती जमींदारों को केसरे-हिन्द भूमि की बंदोबस्ती/बिक्री का अधिकार नहीं था.अगर ऐसा किया गया तो उसे सरकार के स्वामित्व में लेकर भूमि से अतिक्रमण मुक्त करने का निदेश है.वेंडर (बैपटिस्ट मिशन के तरफ से सचिव ज्योति नोएल शाह) द्वारा बार-बार इस बात पर जोर दिया गया है कि प्रश्नगत भूमि सर्वे के पूर्व ही आर्किबल्ड एडविन कॉलर द्वारा खरीद की गई थी.लेकिन वेंडर को यह जानना चाहिए कि केसरे-हिन्द भूमि को बेचने/बंदोबस्ती का अधिकार भूतपूर्व जमींदार को भी नहीं था.अगर भूमि को बेच दिया गया और वेंडर दावा कर रहे हैं कि सर्वे में कर्मचारियों की गलती से केसरे-ए-हिन्द लिख दिया गया तो उस समय बीटी एक्ट,1885 के प्रोविजन के अनुसार उस पर आपत्ति देकर उसे सुधरवा लेना चाहिए था और खतियान में तरमीम करवा लेना चाहिए था.लेकिन ऐसा नहीं किया गया.

इस मामले में तत्कालीन डीपीजीआरओ और मगध प्रमंडल आयुक्त ने भी दिया था आदेश
इस मामले मे तत्कालीन जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी नरेश झा के जमाबंदी रद्द हेतु विधिवत् कार्रवाई के आदेश के साथ ही मगध प्रमंडल आयुक्त-सह-प्रथम अपीलीय प्राधिकार द्वारा आदेश दिया गया था, जिसमें नगर सीओ द्वारा दूरभाष पर बताया गया की उनके द्वारा लिखित रूप से डिमांड कैंसिल हेतु डीसीएलआर सदर को भेज दिया गया था, जिसका अनुपालन न होना किसी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता.साथ ही डीड नंबर 23720 के वेंडर द्वारा नया खाता, नया खेसरा का जिक्र कर दस्तावेज की रजिस्ट्री की गई है, जबकि स्वयं वेंडर द्वारा ही डीड में अंकित किया गया है कि रिविजनल सर्वे नॉट फाइनल है.यह अपने आप में विरोधाभास है.क्योंकि जब रिविजनल सर्वे नॉट फाइनल था/है, तो नया खाता (2217), नया खेसरा (1735 ) का जिक्र ही क्यों किया गया? पुराने खेसरा(14670)(1914-15) का जिक्र क्यों नहीं किया गया? क्योंकि नॉट फाइनल सर्वे के खाता, खेसरा की कोई वैलिडिटी नहीं है.पुराने खेसरा का जिक्र करने पर हो सकता था कि उसकी एंट्री रोक सूची में होती और निबंधन रूक जाता.ऐसा प्रतीत होता है कि जब रिविजनल सर्वे नॉट फाइनल था/है, तो उसके खाता, खेसरा को तो रोक सूची में नहीं ही डाला गया होगा.क्योंकि नया खाता, खेसरा की कोई वैलिडिटी ही नहीं है.स्पष्ट है कि वेंडर द्वारा जान-बूझकर ऐसा किया गया ताकि रोक सूची का कोई प्रश्न ही पैदा न हो.साथ ही लोक प्राधिकार-सह-जिला अवर निबंधक भी नॉट फाइनल सर्वे के नया खाता, नया खेसरा पर किस प्रकार निबंधन की अनुमति दे रहे हैं, यह समझ से परे है.उनको तो नए के साथ पुराने का भी जिक्र दस्तावेज में कराना चाहिए था.क्योंकि जो सर्वे ही नॉट फाइनल है, उसके खाता, खेसरा की जब कोई वैलिडिटी ही नहीं है तो उसका निबंधन किस प्रकार होगा? स्पष्ट है कि पुराने खाता, खेसरा का अंकन अनिवार्य रूप से डीड में कराने के उपरांत ही रजिस्ट्री करनी चाहिए थी, ताकि पुराने खाते, खेसरे की रोक सूची से पकड़ की संभावना बनी रहती, लेकिन लोक प्राधिकार द्वारा ऐसा नहीं किया गया.वेंडर ने सर्टिफाई किया है कि प्रश्नगत भूमि  सरकारी जमीन नहीं है.जबकि खतियान के अनुसार यह केसरे-हिन्द भूमि है.स्वयं वेंडर ने इस बात का जिक्र किया है कि कैडस्ट्रल सर्वे में यह भूमि केसर-ए- हिन्द अंकित थी.फिर प्रश्नगत भूमि को कैसे सर्टिफाई किया जा रहा है कि यह भूमि सरकारी भूमि नहीं है.वह भी तब, जब वेंडर स्वयं ही कह रहे हैं कि प्रश्नगत भूमि के संबंध में उनके द्वारा टाइटल सूट नंबर 606/2020 दायर किया गया है, जिसमें न्यायालय द्वारा यथास्थिति लगाया गया है.अर्थात् प्रश्नगत भूमि का टाइटल अभी फाइनल नहीं हुआ है.फिर किस आधार पर वेंडर द्वारा प्रश्नगत भूमि को सरकारी भूमि नहीं बताया गया, यह समझ से परे है.यह एक विरोधाभास भी है.बड़ी बात यह है कि इतने बड़े बिन्दु को लोक प्राधिकार द्वारा क्यों नहीं पकड़ा गया,जब सब कुछ दस्‍तावेज में ही वर्णित है.

वेंडर द्वारा स्वयं ही प्रश्नगत भूमि के संबंध में टाइटल सूट में यथास्थिति का जिक्र किया गया
विक्रेता (वेंडर) द्वारा स्वयं ही प्रश्नगत भूमि के संबंध में टाइटल सूट में यथास्थिति का जिक्र किया गया है.फिर वेंडर द्वारा यथास्थिति रहते भूमि का बिक्री कैसे कर दिया गया? ऐसा कैसे हो सकता है कि यथास्थिति वेंडर पर लागू न हो और सिर्फ अन्य विपक्षी पक्षकारों पर लागू हो? अगर वेंडर के अनुसार यह बात मान भी ली जाए कि यथास्थिति वेंडर पर लागू नहीं था और सिर्फ अन्य विपक्षी पक्षकारों पर लागू था(उन विपक्षी पक्षकारों में एक समाहर्त्ता, गया भी हैं), फिर समाहर्त्ता,गया जो जिला निबंधक भी होते हैं तो उनके बिहाफ में काम करने वाले जिला अवर निबंधक, गया ने यथास्थिति का उल्लंघन करते हुए दस्तावेज का निष्पादन कैसे कर दिया? क्योंकि जब वेंडर के अनुसार यथास्थिति डीएम सह जिला निबंधक पर लागू था तो उनके बिहाफ में काम करने वाले जिला अवर निबंधक पर भी तो वह लागू था.फिर वेंडर ने जिला अवर निबंधक से यथास्थिति का उल्लंघन क्यों करवाया? स्पष्ट है कि वेंडर के कथनों में गहरा विरोधाभास है और वेंडर पर तो खुद ही न्यायालय की अवमानना का मामला बनता है.दूसरी तरफ, जिला अवर निबंधक ने भी सब कुछ दस्तावेज में स्पष्ट लिखे रहने के बावजूद दस्तावेज की रजिस्ट्री कैसे की? यह भी गंभीर आश्चर्य का विषय है.क्या यथास्थिति का अर्थ जिला अवर निबंधक को मालूम नहीं था/है? क्या सब कुछ जानते हुए भी उनके द्वारा जान-बूझकर सिर्फ रोक सूची को आधार बनाकर दस्तावेज का निष्पादन कर दिया गया? जब केसरे-हिन्द और यथास्थिति की चर्चा स्वयं वेंडर द्वारा दस्तावेज में की गई है तो क्या जिला अवर निबंधक, गया द्वारा इसका अध्ययन किए बिना ही रजिस्ट्री कर दिया गया? ये सारी बातें अगर दस्तावेज में छुपाई गई होतीं तो जिला अवर निबंधक कुछ न जानने का आधार ले सकते थे.लेकिन यहाँ तो दस्तावेज में ही सब कुछ लिखा हुआ था.अगर जिला अवर निबंधक, गया को कोई संशय था तो वे जिला निबंधक से मार्गदर्शन की माँग कर सकते थे.स्पष्ट है कि दस्तावेज जान-बूझकर निहित स्वार्थवश निष्पादित किया गया है, क्योंकि सारे तथ्य स्पष्ट थे/हैं.लोक प्राधिकार सह जिला अवर निबंधक, गया के साथ-साथ उनके प्रधान सहायक(जिनकी जबावदेही सम्पूर्ण दस्तावेज को गंभीरता से पढ़ने की थी) की भी लापरवाही प्रश्नगत मामले में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है.

लापरवाही को देखते हुए सब रजिस्टार पर 5000 रू अर्थदंड के साथ आरोप पत्र गठन की अनुशंसा हुई.साथ ही उनके प्रधान सहायक के विरुद्ध भी आरोप पत्र गठन की अनुशंसा की गई
इस मामले में डीपीजीआरओ ने कृत्यकरण के तहत सुनवाई करते हुए और सरकारी जमीन को बेचने के आरोप में लापरवाही को देखते हुए टिप्पणी कर कहा कि जिला अवर निबंधक का कृत्य अपने पदीय दायित्व के विपरीत है.वे अपने पदीय दायित्वों के निर्वहन में विफल रहे हैं.इतने गंभीर मामले को जिला अवर निबंधक, गया द्वारा बहुत हल्के में लिया जाना जिला अवर निबंधक की इस परिवाद में प्रतिवादी (ज्योति नोएल शाह/साजिद परवेज) के साथ मिलीभगत की ओर इशारा करता है, जो बिहार सरकारी सेवक आचार नियमावली, 1976 की धारा 3(1) के प्रतिकूल है.साथ ही बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम, 2015 की मूल भावना के भी प्रतिकूल है.लिहाजा, लोक प्राधिकार-सह-जिला अवर निबंधक पर रू 5000/- शास्ति की अनुशंसा के साथ आरोप पत्र गठन की भी अनुशंसा की जाती है.साथ ही लोक प्राधिकार के प्रधान सहायक पर भी आरोप पत्र गठन की अनुशंसा की जाती है.इस मामले में डीपीजीआरओ ने जिलाधिकारी से भी अनुरोध किया है कि भविष्य में प्रश्नगत भूमि के निबंधन पर रोक लगाने संबंधी निदेश जिला अवर निबंधक को देने की कृपा की जाए.आदेश की प्रति एडीएम (राजस्व)/डीएम-सह-जिला निबंधक और मगध प्रमंडल आयुक्त को भेजने का भी निर्देश दिया गया है.

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