डीपीजीआरओ के निर्देश के आलोक में एएनएमएमसीएच के प्राचार्य ने गठित की टीम, मृत्यु का कारण को किया स्पष्ट


जांच कमेटी ने सौंपी रिपोर्ट,रिपोर्ट में पूर्व डॉक्टर का पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट गलत हुआ साबित

सूरज कुमार / युवा शक्ति न्यूज 

गया : जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी सुबोध कुमार के निर्देश के आलोक में के प्राचार्य ने 4 डॉक्टरों की टीम गठित की थी.डॉक्टरों की टीम ने रिपोर्ट सौंपते हुए मृत्यु के कारण को स्पष्ट किया. साथ ही एफएमटी के डॉ अविनाश रंजन विद्यार्थी के अधूरे एवं गलत रिपोर्ट को एएनएमएमसीएच के प्राचार्य ने सही किया है. दरअसल यह मामला एक परिवादी सरिता देवी द्वारा जिला लोक शिकायत निवारण कार्यालय में परिवाद दायर कर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में डॉक्टर द्वारा हेराफेरी करने का आरोप लगाया था, जिसको जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी ने गंभीरता से लेते हुए एएनएमएमसी के प्राचार्य को नोटिस भेजते हुए परिवादी के पत्र के आलोक में जांच कर प्रतिवेदन की मांग की थी. तदालोक में एफएमटी विभाग के डॉक्टर द्वारा अपने कार्यालय से प्रतिवेदन समर्पित कर मृतक नन्दलाल यादव उर्फ बुगल यादव, पिता-स्व॰ रामदेव यादव, ग्राम-रेवदा, थाना-धनगाईं, जिला-गया का पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट दिया गया था. इस पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में संबंधित डॉक्टर द्वारा मृतक नन्दलाल यादव उर्फ बुगल यादव की मृत्यु के कारण के सम्बन्ध में अपना मंतव्य दिया गया था, जिसमें शरीर पर दिखाई पड़ने वाले जख्म सर, नाक, कान एवं गला में दिखाई देने वाले जख्मों को दर्शाया. दिखाई देने वाले जख्मों के आधार पर ही पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट संबंधित डॉक्टर द्वारा तैयार किया जाता है. इस पोस्टमार्टम रिपोर्ट में घूस लेकर हेरा-फेरी की बात बिल्कुल निराधार और गलत बताई गई थी.साथ ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु के कारण में भी हेवी एंड ब्लंट फोर्स का जिक्र किया गया, जो कि वाहन दुर्घटना में भी देखा जाता है. इसी कारण से रिपोर्ट में भी ईट मे बी ड्यू टू रोड ट्रैफिक एक्सीडेंट लिखा गया है.
 
डीपीजीआरओ ने एएनएमएमसीएच के प्राचार्य को जांच कमेटी बनाकर सुधारात्मक कार्यवाही करने का दिया था निर्देश
इस मामले में ऐसा प्रतीत हो रहा था कि एफएमटी के डॉ अविनाश रंजन विद्यार्थी द्वारा तैयार किए गए पोस्टमाॅर्टम रिपोर्ट का अध्ययन किए बिना ही अधूरा प्रतिवेदन दे दिया गया था. इस पोस्टमाॅर्टम रिपोर्ट के ओपिनियन में लिखा गया था कि ईट मे बी ड्यू टू रोड ट्रैफिक एक्सीडेंट (आरटीए) और उसके नीचे कॉज ऑफ डेथ में हेड एंड ब्रेन इंजरी ड्यू टू रोड ट्रैफिक एक्सीडेंट अर्थात कॉज़ ऑफ डेथ में मे बी शब्द हटा दिया गया था. सुनवाई में डॉ अविनाश रंजन विद्यार्थी ने बताया कि रोड ट्रैफिक एक्सीडेंट भी एक कारण हो सकता है.जिस पर डीपीजीआरओ सुबोध कुमार द्वारा पूछे जाने पर कि अन्य कारण भी तो हो सकता है, तो उसका उल्लेख क्यों नहीं किए? इसका कोई जवाब डॉक्टर ने नहीं दिया. डॉक्टर के शब्दों में ही बात करें तो भी ओपिनियन में ईट मे बी ड्यू टू रोड ट्रैफिक एक्सीडेंट और सम अदर काउज लिखा जाना चाहिए था. साथ ही कॉज ऑफ डेथ भी ओपिनियन के अनुरूप होना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं करना डॉ अविनाश रंजन विद्यार्थी की गलत मंशा को दर्शाता था. अतएव लोक प्राधिकार सह प्राचार्य को इस स्पष्ट गलत पोस्टमाॅर्टम रिपोर्ट में कमिटी गठित कर नियमानुसार सुधारात्मक कार्रवाई करने का निदेश दिया गया था.

एएनएमएमसी के प्राचार्य ने 4 डॉक्टरों की कमिटी की थी गठित
इस मामले में डीपीजीआरओ के आदेश के आलोक में एएनएमएमसीएच के प्राचार्य द्वारा 4 डॉक्टरों जिसमें डॉ नंदकिशोर पासवान सह प्राध्यापक अध्यक्ष मेडिसिन विभाग, डॉ ए के झा सुमन सह प्राध्यापक सर्जरी विभाग, डॉ असीम मिश्रा सह प्राध्यापक पैथोलॉजी विभाग, डॉ जयेंद्र कुमार, सहायक प्राध्यापक न्यूरो सर्जरी, विभाग सभी एएनएमएमसी के शामिल थे, की कमिटी गठित कर मामले की जांच कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया था.

डॉक्टरों की कमेटी ने मृत्यु के कारण को किया स्पष्ट
इस मामले में 4 डॉक्टरों की कमिटी ने जांच के उपरांत अधूरे एवं गलत रिपोर्ट को पूरा कर मृत्यु के कारण को स्पष्ट किया. रिपोर्ट में लिखा गया कि अबाउट इंजरीज मेंशन इन पीएम रिपोर्ट इट मे बी ड्यू टू रोड ट्रैफिक एक्सीडेंट और सम अदर काउज.दूसरा लिखा गया कि कॉज ऑफ़ डेथ इज हेड इंजरी एंड कार्डियोपलमोनरी अरेस्ट है. यानि कि मृत्यु का कारण माथे में चोट लगने के चलते हृदय की गति रुक जाने से हुई.

डॉ अविनाश रंजन विद्यार्थी के अधूरे एवं गलत रिपोर्ट को किया डॉक्टर की कमिटी ने किया पूरा
इस मामले में परिवादी के द्वारा जो आरोप लगाया गया और डॉक्टरों की जो रिपोर्ट दी गई, उससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि डॉ अविनाश रंजन विद्यार्थी की रिपोर्ट गलत रिपोर्ट थी. साथ ही परिवादी द्वारा जो आरोप लगाया गया वह बिल्कुल सही था. अगर परिवादी के द्वारा जिला लोक शिकायत निवारण कार्यालय में आवेदन नहीं दिया जाता तो शायद ही या मामला स्पष्ट हो पाता. चुकी कई ऐसे मामले होंगे जिनमें डॉक्टर की इस तरह की शिथिलता और लापरवाही देखी जाती होगी. परंतु कई लोग इस मामले को इतना गंभीरता से ना लेकर डॉक्टर के भरोसे छोड़ देते हैं.

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