बहुरेंगे 25,000 मेगावाट की बिजली परियोजनाओं के दिन, पेट्रोलियम और बिजली मंत्रालय मिलकर बना रहे रणनीति

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की लगातार बढ़ती कीमतों को देख केंद्र सरकार ने वर्षों से लंबित गैस आधारित बिजली परियोजनाओं में जान फूंकने की कोशिश तेज कर दी है। करीब 25,000 मेगावाट क्षमता की ढाई दर्जन ऐसी परियोजनाएं अभी गैस की कमी की वजह से बेकार पड़ी हुई हैं। अब पेट्रोलियम मंत्रालय और बिजली मंत्रालय मिलकर एक रणनीति तैयार कर रहे हैं, जिसके तहत बिजली कंपनियों को लंबे समय तक स्थिर कीमत पर गैस की आपूर्ति की जाएगी।

इसके लिए सरकार कई चरणों की रणनीति बना रही है। इस रणनीति को सफल बनाने में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआइएल) और सरकारी उपक्रम ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) जैसी घरेलू कंपनियों पर भारी दारोमदार होगा।

पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस सचिव तरुण कपूर ने बताया कि गैस आधारित बिजली कंपनियों को दोबारा शुरू करना पूरी तरह से सरकार के एजेंडे में है। अगले दो वर्षों के भीतर ये सारी बिजली परियोजनाएं पूरी क्षमता से काम कर सकती हैं।

सरकारी कंपनी गेल को कहा गया है कि वह इन बिजली प्लांट्स को लंबे समय तक गैस उपलब्ध कराने की योजना बनाए। रणनीति यह है कि इन्हें बेहद प्रतिस्पर्धी दर पर लंबे समय तक गैस उपलब्ध कराई जाए। कपूर ने बताया कि वर्ष 2023 तक रिलायंस के केजी बेसिन स्थित फील्ड से गैस उत्पादन में बड़ी वृद्धि होने के संकेत हैं।

वहां से गैस उत्पादन मौजूदा 1.7 मिलियन स्टैंडर्ड घन मीटर प्रतिदिन (एमएमएससीएमडी) से बढ़कर तीन एमएमएससीएमडी होने से इन बंद पड़ी परियोजनाओं को गैस आपूर्ति बढ़ जाएगी। साथ ही ओएनजीसी के गैस उत्पादन में भी इस वर्ष और अगले वित्त वर्ष में अच्छी बढ़ोतरी संभावित है। इसके अलावा इन परियोजनाओं के लिए कुछ मात्रा में गैस का आयात भी किया जाएगा।

कपूर ने बताया कि उनका मंत्रालय लगातार इस कोशिश में है कि प्राकृतिक गैस को जीएसटी के दायरे में लाया जाए। इस बारे में उच्च स्तर पर विमर्श चल रहा है। यह कदम देश में गैस की ढुलाई को सस्ता करेगा, जिसका फायदा बिजली संयंत्रों को मिलेगा। सरकार इन संयंत्रों को गैस आपूर्ति की व्यवस्था करेगी, लेकिन कुछ बोझ संयंत्र लगाने वाली कंपनियों को भी उठाना पड़ेगा।

वर्ष 2030 तक देश के ऊर्जा खपत में गैस की हिस्सेदारी मौजूदा छह फीसद से बढ़ाकर 15 फीसद करने का लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखा है। यह काम इन गैस से चलने वाली बिजली परियोजनाओं के बिना संभव नहीं है। कुछ बोझ पेट्रोलियम मंत्रालय की कंपनी गेल को भी उठाना होगा। माना जा रहा है कि गेल को इन संयंत्रों को गैस की आपूर्ति स्थिर दर पर करनी होगी।

वर्ष 2019 में एक संसदीय समिति ने गैस आधारित बिजली संयंत्रों को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट दी थी। इसके मुताबिक निजी क्षेत्र की 24, राज्य सरकारों की छह और केंद्र सरकार की एक गैस आधारित बिजली परियोजना शुरू नहीं हो पा रही है। इनकी कुल बिजली उत्पादन क्षमता 23,813 मेगावाट है। इन्हें 85 फीसद पीएलएफ (प्लांट लोड फैक्टर) पर चलाने के लिए 10 करोड़ स्टैंडर्ड घन मीटर गैस प्रतिदिन यानी 100 एमएमएससीएमडी आपूर्ति चाहिए, जबकि इन्हें मुश्किल से तीन एमएमएससीएमडी गैस ही मिल पा रही थी।

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि आरआइएल की केजी बेसिन स्थित गैस फील्ड से उत्पादन में भारी कमी आने की वजह से भी इन बिजली संयंत्रों को गैस नहीं मिल सकी। समिति ने रिलायंस की केजी बेसिन गैस फील्ड में उत्पादन को लेकर पूरी तरह से गलत साबित होने वाले आकलन पर फटकार भी लगाई थी। इन गैस बिजली परियोजनाओं में बैंकों का 1.74 लाख करोड़ रुपये का बकाया फंसा हुआ (एनपीए) है। कई बैंक इन परियोजनाओं को दी गई कर्ज की राशि का समायोजन पूरी तरह से अपने खाते में कर चुके हैं।

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