बिहार दिवस : बिहार की ही मिट्टी से बनी हैं देश की मजबूत बुनियाद की अधिसंख्य ईंटें, आइए डालते हैं नजर

बिहार की गौरवशाली यात्रा महज 109 साल पुरानी नहीं है। इसका अतीत हजारों वर्षों से बेहद समृद्ध रहा है। बिहार ने देश-दुनिया को शताब्दियों से रास्ता दिखाया है। कई मोर्चे पर अब भी दिखा रहा है। आगे भी दिखाएगा। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने बिहार की आत्मा में झांककर देखा था। उन्होंने कह रखा है कि शिक्षा की स्थिति में अगर सुधार आ जाए तो भारत का नेतृत्व फिर से बिहार ही करेगा। कलाम के शब्दों को देशभर में फैली इस प्रदेश की मेधा से जोड़कर देखा जा सकता है। बिहार सब जगह है। कश्मीर से कन्या कुमारी तक निर्माण की सभी कहानियों का हीरो है। बुनियाद का पत्थर है। राजनीति का प्राण है। नेतृत्व की प्रेरणा है।

आज ही के दिन 1912 में विधिवत मिला था राज्य का दर्जा

अतीत से वर्तमान तक बिहार के पहुंचने की प्रक्रिया की सीमा नहीं है। इसी में अपनी मिट्टी पर गर्व करने के कई क्षण भी छुपे हैं। 22 मार्च 1912 को बंगाल से अलग करके बिहार को विधिवत राज्य का दर्जा दिया गया था। उस वक्त उड़ीसा (अब ओडिशा) और झारखंड भी बिहार के साथ थे। तभी से बिहार पुनर्निर्माण के रास्ते पर चल रहा है।

दोनों सदनों के सदस्यों नेलिया सामूहिक शराबबंदी का संकल्प

नीति-न्याय के साथ सियासत के जरिए बिहार की दशा बदलने की कोशिश जारी है। सड़क और बिजली से आगे बढ़कर बिहार अब सामाजिक बदलाव के लिए बेताब है। शराबबंदी की सफलता-असफलता पर राजनीतिक बहस को अगर दरकिनार कर दें तो बहुमत का मानना है कि समाज को बचाने का इससे बेहतर रास्ता दूसरा नहीं हो सकता। इसीलिए 30 मार्च 2016 को बिहार में दोनों सदनों के सदस्यों ने सामूहिक रूप से शराबबंदी का संकल्प लिया। दलीय सीमा तोड़कर सबने कहा- न पीयेंगे, न पीने देंगे। इसी संकल्प से प्रेरित दूसरे कई प्रदेशों में भी शराबबंदी की मांग आज उठती रहती है।

आधी आबादी की हिफाजत में भी बिहार ने पेश की नजीर

आधी आबादी की हिफाजत में भी बिहार ने दूसरों के लिए नजीर पेश किया है। राज्य सरकार की सभी नौकरियों में महिलाओं को क्षैतिज रूप से 35 फीसद आरक्षण देकर बिहार सामाजिक क्रांति का अगुआ बना। यह कदम अचानक नहीं उठाया गया। 17 वर्ष पीछे लौटते हैं। महिला उत्थान के एक बड़े फैसले से इस प्रदेश ने देश को प्रभावित किया है। 2005 में जब सत्ता परिवर्तन हुआ और नीतीश कुमार के नेतृत्व मेें राजग की नई सरकार बनी तो एक वर्ष के भीतर देश में पहली बार बिहार में पंचायती राज के सभी पदों पर आधी आबादी को 50 फीसद आरक्षण दिया गया। इसका अनुकरण दूसरे कुछ राज्यों ने भी किया। बेटियों को नि:शुल्क साइकिल देकर स्कूल तक पहुंचाने की परंपरा भी सबसे पहले बिहार ने ही डाली। आज इसी का नतीजा है कि स्कूलों में बेटों से ज्यादा बेटियों की संख्या है।

देश को पहली बार दिया जमींदारी प्रथा पर ब्रेक का फॉर्मूला

आज सबके लिए मकान की बात की जा रही है। जबकि, 1947 में ही बिहार ने भूमिहीनों के लिए अधिनियम बनाकर सबके लिए आवास की व्यवस्था की। आजादी के बाद देश की सबसे बड़ी समस्या से निजात के लिए रोडमैप बिहार ने ही बनाया था। भूमि सुधार के प्रयासों का पहला अध्याय 1950 में तब लिखा गया, जब बिहार भूमि सुधार अधिनियम पारित कर जमींदारी व्यवस्था पर ब्रेक लगाया गया। फैसला उस वक्त का है, जब देश का अपना संविधान भी लागू नहीं हुआ था। श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व वाली बिहार की संविद सरकार ने कानून बनाकर देश को रास्ता दिखाया। बाद में इसी तर्ज पर केंद्र सरकार ने चकबंदी एक्ट लाया और अधिकतम जमीन रखने की सीमा तय कर दी गई।

चंपारण में पड़ी थी गांधी युग की बुनियाद 

गांधी युग की बुनियाद भी बिहार में ही पड़ी थी। सत्याग्रह के विचारों को जमीन और हवा-पानी चंपारण ने दिया। बिहार ने मोहनदास को इतनी ताकत दी कि दुनिया उन्हें महात्मा मानने लगी। आजादी की लड़ाई में बिहार के महत्व को समझते हुए सुभाषंचद्र बोस ने 1940 में एक वर्ष के दौरान 450 सभाएं की थीं। बिहार के ही शीलभद्र याजी को अपने आंदोलन का प्रमुख साथी बनाया। राष्ट्रकवि दिनकर की कविताएं आजादी की चिनगारियां बिखेर रही थीं।

सच्चिदानंद व राजेंद्र ने संभाली संविधान बनाने की जिम्मेवार

अपना संविधान बनाने की बात आई तो सच्चिदानंद सिन्हा और डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने आगे बढ़कर जिम्मेवारी संभाली। देश को राजेंद्र प्रसाद की मेधा की जरूरत पड़ी तो उन्हें पहला राष्ट्रपति बनाया गया।

लपटें उठीं तो देश की राजनीति की दशा-दिशा बदल गई।

जेपी के आदोलन ने बदल डाली थी देश की सियासत

सफर यहीं नहीं थमा। दिल्ली की तानाशाही से जनता जब ऊबने लगी तो जयप्रकाश नारायण के रूप में समाधान नजर आया। संपूर्ण क्रांति की आग बिहार से शुरू हुई और आहूति भी बिहार ने ही डाली। लपटें उठीं तो देश की राजनीति की दशा-दिशा बदल गई।

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