शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोला है. शिवसेना ने सामना के 'कोरोना से भी आगे क्राइम!…ये कैसा सुशासन?' संपादकीय में लिखा है कि ''हाल ही में एक खबर आई कि बिहार के मुजफ्फरपुर में एक शिक्षक के 22 वर्षीय बेटे की बेरहमी से हत्या कर दी गई. पिता स्कूल गए थे और बहन मां का इलाज कराने पटना. इस बीच दबंगों ने घर में घुसकर पढ़ाई कर रहे आशुतोष को जमकर पीटा, फिर उसके हाथ-पैर व प्राइवेट पार्ट पर प्लास्टिक की रस्सी बांधकर उसे उसी के घर में लटका दिया.
कुछ दिन पहले पड़ोस के किसी दबंग परिवार से शिक्षक परिवार का झगड़ा हुआ था. लिहाजा, पीड़ित परिवार का उन पर सीधा आरोप है. दंग करनेवाली बात तो यह है कि मृतक आशुतोष का चचेरा भाई खुद एक आईपीएस अफसर है, तब भी दबंगों ने इस घटना को अंजाम देने से पहले खौफ नहीं खाया. ''
बिहार में बढ़ते क्राइम पर ध्यान दिलाते हुए सामना में लिखा है कि ''मुजफ्फरपुर में ही बदमाशों ने 10वीं की एक छात्रा को कोचिंग से लौटते वक्त पिस्तौल की नोक पर हवस का शिकार बना डाला. किसी तरह लड़की ने बदमाशों के चंगुल से बचकर अपनी जान बचाई और परिजनों सहित थाने में रपट लिखाने पहुंची तो बची-खुची इज्जत पुलिसवालों के शाब्दिक बाणों से तार-तार हो गई. तमाम पीड़ितों की तरह इस पीड़िता की शिकायत को भी गंभीरता से नहीं लिया गया. बिहार में यह तस्वीर केवल मुजफ्फरपुर की नहीं है, बल्कि यही हालत बिहार में हर ओर हैं.''
''फिर वो दरभंगा हो या जहानाबाद, भागलपुर हो या अररिया, सुपौल हो या पूर्णिया या फिर गोपालगंज हो या राजधानी पटना. हर जगह अपराधी बेखौफ होकर डंके की चोट पर अपराध का नंगा नाच कर रहे हैं. बिहार में हत्या, गैंगरेप, डकैती, रंगदारी, अपहरण-विवाह, छेड़खानी और दबंगई के आंकड़े यूपी से होड़ कर रहे हैं, ऐसा जनता को लगने लगा है, तो इसमें तथ्य भी हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हों या सत्ता में सहभागी भारतीय जनता पार्टी, दोनों का इस जमीनी हकीकत से कोई खास सरोकार नजर नहीं आता.''
भाजपा और जदयू पर राजनीति करने का आरोप लगाते हुए सामना में लिखा है कि ''दोनों दल अब भी आपसी राजनैतिक स्कोर सेटल करने में लगे हुए हैं. कोई किसी की सियासी कटाई-छंटाई कर रहा है तो कोई ऑडियो वायरल करके दूसरे की छवि धूमिल. भाजपा एक सूत्री कार्यक्रम के तहत अपने सहयोगी दल के विधायकों को जुटाने में लगी है पर इस कवायद में वो अपने सहयोगी दलों व राज्य की जनता का विश्वास तेजी से खो रही है, ऐसा बिहार के हर नागरिक को लगने लगा है.
बिहार में अराजकता की इस परिस्थिति का फायदा अपराधी और माफिया उठा रहे हैं. पुलिस के संरक्षण में संगठित अपराधों का ग्राफ तेजी से चढ़ रहा है. वहां मार-काट का रेट महामारी को भी मात दे रहा है. ''
''बिहार में हालत यह है कि यहां हर दिन औसतन 9 मर्डर और 4 रेप के मामले दर्ज हो रहे हैं. एससीआरबी यानी स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि गत वर्ष सितंबर माह तक राज्य में कुल 2,406 मर्डर और 1,106 रेप की वारदातें दर्ज हो चुकी थीं. उन 9 महीनों में बिहार क्राइम के बढ़ते आंकड़ों से कराहता रहा और सुशासन बाबू और उनके साथी अपराध मुक्त बिहार का आभासी सपना दिखाकर चुनाव का खेल खेलते रहे.''
''चुनाव के बाद भी क्राइम के आंकड़े बढ़ते रहे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पुलिस अफसरों के साथ हाई लेवल मीटिंग से आगे कुछ नहीं कर पाए. खैर, राजनीति के चतुर खिलाड़ी नीतीश कुमार शायद अब राज्य की बदतर हो चुकी स्थिति भांप चुके हैं. इसलिए अब वे लॉ एंड ऑर्डर पर सीआईडी की नजर होने का डर पुलिस को दिखा रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर प्रोटोकॉल तोड़कर पटना की सड़कों पर जनता से मेल-जोल भी बढ़ा रहे हैं. ''
''इस मेल-जोल से नीतीश बाबू को एक फोटो अपॉर्च्युनिटी तो मिल सकती है, पर जनता का खोया विश्वास दोबारा हासिल करने के लिए उन्हें क्राइम पर कोरोना से भी जबरदस्त वैक्सीन इस्तेमाल करनी होगी क्योंकि बिहार में कोरोना से ज्यादा क्राइम के आंकड़े खतरनाक साबित हो रहे हैं.''
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