पटना/भागलपुर:एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि के तहत बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय द्वारा मखाना (Euryale ferox) में एक नवीन जैव-सक्रिय यौगिक N-(2-iodophenyl)methanesulfonamide की पहचान के लिए पेटेंट प्रदान किया गया है। यह खोज कृषि नवाचार और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, और बिहार के किसानों के लिए नए आर्थिक अवसरों का द्वार खोलती है।
यह क्रांतिकारी शोध माननीय कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह के दूरदर्शी नेतृत्व में संपन्न हुआ, जिनके नवाचारशील शोध को प्रोत्साहन देने के सतत प्रयासों ने विश्वविद्यालय को एक अग्रणी कृषि संस्थान के रूप में स्थापित किया है। यह सफलता अनुसंधान निदेशक डॉ. ए.के. सिंह के मार्गदर्शन में विकसित मजबूत अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र के कारण संभव हो पाई।
इस शोध कार्य का नेतृत्व पादप जैवप्रौद्योगिकी विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. वी. शाजिदा बानो, मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रीतम गांगुली तथा उद्यान विभाग के डॉ. अनिल कुमार ने किया। यह शोध कार्य बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की NABL प्रमाणित प्रयोगशाला में किया गया।
खोज का वैज्ञानिक महत्व
यह पहली बार हुआ है जब N-(2-iodophenyl)methanesulfonamide, जो iodobenzene का sulfonamide डेरिवेटिव है, किसी प्राकृतिक स्रोत में पाया गया है। अब तक यह यौगिक केवल प्रयोगशाला में संश्लेषित रूप में ही उपलब्ध था, जो जटिल रासायनिक प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है जिसमें 2-iodoaniline और methanesulfonyl chloride का उपयोग होता है।
अब यह यौगिक मखाना के पेरीस्पर्म में स्वाभाविक रूप से पाए जाने के बाद, पोषण और औषधीय शोध के लिए नई दिशाएं खोलता है। इसका आणविक सूत्र C₇H₈INO₂S है, औसत आणविक भार 297.110 डॉल्टन और एकल समस्थानिक भार 296.932047 डॉल्टन है।
यह यौगिक एंटीमाइक्रोबियल और कैंसररोधी गतिविधियों के लिए संभावित रूप से उपयोगी है। इसकी क्रियाविधि में हाइड्रोजन और हैलोजन बॉन्ड बनाना शामिल है, जो विभिन्न जैव-रासायनिक मार्गों को प्रभावित कर सकता है।
बिहार के किसानों को लाभ
इस पेटेंट से जुड़े अनुसंधान का लाभ बिहार के उन किसानों को विशेष रूप से मिलेगा जो मिथिलांचल और सीमांचल क्षेत्रों में मखाना की खेती करते हैं। इससे:
मखाना की व्यावसायिक कीमत में वृद्धि होगी और इसके कच्चे व प्रसंस्कृत उत्पादों के लिए प्रीमियम बाजार बनेंगे।
एग्रीप्रेन्योरशिप और स्टार्टअप्स को पोषण-आधारित उत्पादों के क्षेत्र में प्रोत्साहन मिलेगा।
बिहार में उद्योगों और निवेशकों को आकर्षित किया जाएगा जो मखाना से मूल्यवर्धित उत्पादों का निष्कर्षण और निर्माण करें।
किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त होगी, विशेष रूप से भागीदारी, अनुबंध कृषि और मूल्य श्रृंखला में एकीकरण के माध्यम से।
बिहार के GI-टैग प्राप्त मखाना की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान और सुदृढ़ होगी।
डॉ. डी.आर. सिंह, माननीय कुलपति ने कहा:
"यह पेटेंट केवल एक वैज्ञानिक खोज नहीं, बल्कि हमारे किसानों की आजीविका के लिए एक बदलाव की घड़ी है। बिहार को मखाना के लिए जाना जाता रहा है, और अब यह प्राकृतिक जैव-सक्रिय यौगिकों के माध्यम से आधुनिक स्वास्थ्य सेवा में योगदान के लिए भी जाना जाएगा।"
भविष्य की दिशा:
इस खोज के लिए मिला पेटेंट यह दर्शाता है कि कैसे उन्नत शोध पारंपरिक फसलों को वैश्विक महत्व का स्रोत बना सकता है। आगे के अनुसंधान और औद्योगिक सहयोग से यह पेटेंट नई दवाइयों, पोषण अनुपूरक (न्यूट्रास्यूटिकल्स) और प्राकृतिक उपचारों के विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर विज्ञान में उत्कृष्टता, किसान-केंद्रित नवाचार, और सतत कृषि विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर कायम है, और देश भर में अन्य संस्थानों के लिए एक आदर्श मॉडल के रूप में उभर रहा है।
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