कल की करतूत से,शर्मसार है लोकतंत्र



 -देश की राजधानी का उपद्रव,सियासी साजिश या अन्नदाता के नाम पर गदर

विश्व के सर्वोच्च लोकतंत्र की स्थापना का महोत्सव 72 वां गणतंत्र दिवस पर सियासी साजिश ने देश के मुंह पर एसी कालिख पोत दी,जिससे हर भारतवासी देशभक्त शर्मसार है ! देश में अन्नदाता के नाम से ख्याति अर्जित करने वाले किसानों के साथ जनता की हमदर्दी ख़त्म होती नजर आ रही है। दिल्ली में जो हुआ उसने कुछ तथाकथित किसानों का असली चेहरा साफ़ कर दिया। करदाता और अन्नदाता के बीच अंतर सड़कों पर साफ साफ नजर आया। अब करदाता सरकार से मांग कर रहे है कि किसानों की नहीं बल्कि उनकी सुध ले। क्योंकि उन्ही के करों से मिलने वाली सब्सिडी से ये किसान अन्नदाता कहलाने लगे। असल में वे अन्न उत्पादक है, अन्नदाता तो सिर्फ परमात्मा है! 

विश्वपटल पर अपनी ताकत और लोकतंत्र का लोहा मनवा चुके भारतीय गणतंत्र का चीरहरण कई सवाल खडे कर गया !

📌पिछले वर्ष शाहीनबाग में गच्चा खाने के बावजूद आंदोलन के नाम पर अय्याशियां कर रहे व गुलछर्रे उड़ा रहे कुछ उत्पातियों को अन्नदाता कहकर पलकों पर बैठाया गया,दुलार-पुचकार कर उनकी प्रोटेस्ट की सभी बातें मानी गयी, उन्हें तय रूट के साथ सीमित संख्या में निहत्थे होकर टैक्टर मार्च की अनुमति दी गयी और परिणाम विश्वभर के समक्ष है!

📌लेकिन उन उत्पातियों द्वारा तय रूट नही लिया गया,भारी संख्या वाली अराजक उत्पाती भीड़ द्वारा तलवारों व कील-गड़ासे से बंधे डंडों और रॉड से पुलिसकर्मीयों पर आक्रमण किया गया,पुलिसकर्मियों को टैक्टर से कुचलने का प्रयास हुआ, सरकारी सम्पत्ति व बसें तोड़ी गयीं और लाल किला जहां राष्ट्रीय ध्वज के आलावा कोई अन्य ध्वज लगाने की अनुमति नही है वहां गणतंत्र दिवस के दिन खलिस्तानी ध्वज फहराया गया,(याद रखिये सिख-फ़ॉर-जस्टिस आतंकी संगठन द्वारा लाल किले पर खलिस्तानी झंडा लगाने वाले के लिए 2.5 लाख डॉलर के इनाम की घोषणा की गयी थी) लाल किला परिसर में ही कई पुलिसकर्मियों पर तलवारों से हमला किया गया!

उन तथाकथित "अन्नदाताओं" ने राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों और उस लाल किले जिसकी प्राचीर पर भारत का प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर भाषण देता है और राष्ट्र ध्वज फहराता है पर वह किया जिसने विश्वभर में भारतीय लोकतंत्र को उपहास का पात्र बना दिया है जिसका जवाब,देश की जनता हर भारत वासी जानना चाहता है! 

विगत 60 दिनों से शांतिपूर्ण तरिके से किया जा रहा,किसान आंदोलन,जिसे देश की सर्वोच्च न्याय पालिका सहित सामाजिक संगठनों ने भी सराहा,आखिर कैसे साजिश का हिस्सा बनकर हिंसा पर उतारू हो गया?

 📌धरती का सीना चीरते हुए खून पसीना बहा कर सच्चा किसान अन्न पैदा करने वाला अन्नदाता, उपद्रवी,दहशतगर्द,उन्मादी कैसे हो सकता है?

📌अन्नदाता के हक कि लड़ाई सियासी दहशतगर्दो की साजिश का हिस्सा कैसे बनी...?

📌आखिर,वो कौन लोग है ,जो देश कि एकता, अखंडता को भंग करने के लिए अन्नदाता के शांतिपूर्ण आंदोलन को हथियार बनाकर,अपने नापाक मंसूबों से देश को तोडना चाहते हैं?

📌हमारे ही देश की आस्तीन में पल रहे कुछ सपोलों के नापाक मंसूबों को ताडनें खुफिया तंत्र और देश की इंटेलिजेंसी एजेंसिया नाकाम क्यों हो गई?

📌कही ये,एक देशभक्त कौम को भारतीय जनता के मन में घृणा का पात्र बनाकर, देश को खंड-खंड करने की साजिश तो नही...?

📌सवाल तो बहुतेरे है,,, मगर जवाबदेही की जिम्मेदारी कौन लेगा...?

🇮🇳🚔गलती व चूक तो हुई है किंतु यदि गलती सुधारनी है तो 'फ्यूचर कोर्स ऑफ एक्शन"के अंतर्गत

  📌"अन्नदाताओं" के आंदोलन का प्रतिनिधित्व कर रहे सभी किसान संगठन और उनके किसान नेताओं कि प्रत्येक चल-अचल संपत्ति जब्त और बैंक खाते फ्रीज़ कर NSA के अंतर्गत उनपर कार्यवाही की जानी चाहिए, और इन खरबपति किसान नेताओं को टके टके का मोहताज करवाने की आवश्यकता है!

📌 "अन्नदाताओं" के उपद्रव की पूरी वीडियो फुटेज निकाल प्रत्येक उपद्रवी की पहचान कर उनपर उनकी हरकतों के अनुरूप उचित कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए!

📌 जितनी भी लग्जरी गाड़ियां, SUV, ट्रैक्टर, लग्ज़री क्रूज़र मोटरसाइकिल इस मार्च में सम्मिलित थी उन सबको जब्त कर नीलाम कर नुकसान की भरपाई की जानी चाहिये!

📌तत्काल सभी प्रदर्शन स्थलों पर खड़े सम्पूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर को जब्त व् ध्वस्त करने की आवश्यकता है!

📌यह आंदोलन की आढ़ में खलिस्तानी रिफ्रेंडम 2021का ड्राई रन था,आज लाल किला था,कल को संसद भवन,साउथ ब्लॉक, नार्थ ब्लॉक या 7 लोक कल्याण मार्ग भी हो सकता है,इसीलिए इसे गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है!

📌साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे राकेश टिकैत और वीएम सिंह जैसे भारतीय किसान यूनियन के लोग कांग्रेस और यूपीए के सहयोगी दलों के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं और भारतीय किसान यूनियन खुलकर लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के समर्थन में वोट मांगते देखा गया है और यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह किसान नेता वही लोग हैं !जो इन्हीं कृषि रिफॉर्म्स की मांग दशकों से कर रहे थे और जब वह कृषि रिफॉर्म लागू हो गए तो वह इसका विरोध कर रहे हैं यह पाखंड वह दोहरा आचरण समझने का विषय है!

📌इस सबके अतिरिक्त दिल्ली की राज्य सरकार की भूमिका की भी जांच हो,अब समय आ गया है की राजधानी दिल्ली को स्टेट बनाने की गलती को सुधाकर उसे पुनः यूनियन टेरिटरी बनाया जाय, अन्यथा हर वर्ष लगने वाला यह आंदोलनों का मेला ऐसे ही जारी रहेगा और इस नौटंकी का कोई अंत नहीं होगा।

✍बहरहाल,विश्व समुदाय में 71 वर्ष तक गर्वोक्ति का परिचायक भारतीय गणतंत्र कल साजिश का शिकार होकर अपनी लुटती अस्मिता पर आँसू बहा रहा है,तथा भारतीय लोकतंत्र की  ताल ठोकने वाले गण और तंत्र दोनो स्तब्ध है!

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