देश भर में आज भगवान महावीर की जयंती मनाई जा रही है। हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को महावीर जयंती मनाई जाती है, जो आज 06 अप्रैल दिन सोमवार को है। भगवान महावीर को वीर, वर्धमान, अतिवीर और सन्मति के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अपने जीवन में तप और साधना से नए प्रतिमान स्थापति किए। उन्होंने जैन समुदाय के अनुयायियों के लिए पांच सिद्धांत या पांचप्रतिज्ञा बताई है, जिनका पालन सभी को करना चाहिए। आज महावीर जयंती के अवसर पर जाने हैं भगवान महावीर के जन्म, जीवन, उपदेश आदि के बारे में।
कौन हैं भगवान महावीर
भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर थे। उनका जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार में वैशाली के कुण्डलपुर में लिच्छिवी वंश में हुआ था। उनके पिता महाराज सिद्धार्थ और माता महारानी त्रिशला थीं। उनके बचपन का नाम वर्धमान था। कहा जाता है कि उनके जन्म के बाद राज्य का तेजी से विकास हुआ, इस वजह से उनका नाम वर्धमान पड़ा था। जैन धर्म के अनुयायियों का मत है कि भगवान महावीर ने 12 वर्षों तक कठोर तप किया और अपनी इंद्रियों को वश में कर लिया, जिससे उनका नाम जिन अर्थात् विजेता भी पड़ा।
भगवान महावीर के जन्म से जुड़े 16 स्वप्न
कहा जाता है कि भगवान महावीर के जन्म से पूर्व उनकी माता त्रिशाला को 16 स्वप्न दिखे थे। उसमें चार दांतों वाला हाथी, सफेद वृषभ, एक सिंह, सिंहासन पर स्थित लक्ष्मी, फूलों की दो मालाएं, पूर्ण चंद्रमा, सूर्य, दो सोने के कलश, समुद्र, सरोवर, मणि जड़ित सोने का सिंहासन आदि उन्होंने अपने स्वप्न में देखे थे। इन सभी स्वप्नों का अर्थ महाराज सिद्धार्थ ने बताया था। जिनका अर्थ था कि उनक पुत्र धर्म का प्रवर्तक, सत्य का प्रचारक, जगत गुरु, ज्ञान प्राप्त करने वाला, अन्य लक्षणों आदि से युक्त होगा।
भगवान महावीर के 5 सिद्धांत
भगवान महावीर ने जैन धर्म के अनुयायियों के लिए 5 सिद्धांत या 5 प्रतिज्ञा का प्रतिपादन किया था। उन पांच प्रतिज्ञाओं को सभी को मानना चाहिए। इससे व्यक्ति को आंतरिक शांति की प्राप्ति होती है। भगवान महावीर के वे पांच सिद्धांत है—
1. अहिंसा
2. सत्य
3. अस्तेय
4. ब्रह्मचर्य
5. अपरिग्रह
अहिंसा: सभी जीवों के प्राणों की रक्षा करें। किसी को भी हिंसा नहीं करनी चाहिए। यदि आप किसी के प्रति हिंसा का भाव रखते हैं या ऐसा सोचते हैं, तो वो भी एक प्रकार की हिंसा है। हिंसा के कारण आप हमेशा तनाव में रहेंगे। अहिंसा का भाव आपको आंतरिक शांति देगा।
सत्य: हमेशा सत्य बोलें, चाहें परिस्थिति कैसी भी क्यों न हो।
अस्तेय: चोरी नहीं करना चाहिए। ऐसे कर्म से बचकर रहें।
ब्रह्मचर्य: व्यभिचार न करें अर्थात् अपने इंद्रियों को वश में करके रखें। ब्रह्मचर्य का पालन करने से व्यक्ति को दर्शन, ज्ञान, उत्तम तपस्या, उत्तम चारित्र, संयम और विनय जैसे गुणों की प्राप्ति होती है। जो महिलाओं से संबंध नहीं रखते हैं, वे मोक्ष की ओर जाते हैं।
अपरिग्रह: परिग्रह का अर्थ आसक्ति से है। आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह न करें। अधिक वस्तुओं के संग्रह करने से तनाव होता है। अपरिग्रह से आप तनाव मुक्त रहेंगे। वस्तुओं के खो जाने पर उसके प्रति आसक्ति आपको बहुत दुख देता है, इसलिए अपरिग्रह के सिद्धांत का पालन करें।