Delhi Violence: 1984 और 1992 के बाद तीसरी बार दिखा तबाही का ऐसा मंजर


दंगाइयों के आतंक और दहशत के बीच वर्षो की मेहनत से बनाए गए आशियाने और दुकानें जल रही थीं और पुलिस असहाय नजर आ रही थी. कहीं बाइकें जल रही थीं तो कहीं कार और शोरूम लपटों और धुएं के गुबार में घिरा हुआ दिख रहा था. यह नजारा मंगलवार को उत्तर-पूर्वी जिले के कई क्षेत्रों का था. हालांकि हिंसा के तीसरे दिन पुलिस प्रवक्ता इलाके में पुलिसकर्मियों व पैरा मिलिट्री की संख्या बढ़ाने के साथ ही हालात नियंत्रण में होने का दावा कर रहे थे. राजधानी में तबाही का ऐसा मंजर 1984 और 1992 के बाद तीसरी बार देखने को मिल रहा है.

दिल्ली झुलस रही है और नेता ट्वीट कर लोगों को दिल्ली में जल्द शांति व्यवस्था बहाल होने का दिलासा दे रहे हैं। हालात पर जल्द काबू के लिए मंगलवार को गृह मंत्रालय में उच्च स्तरीय बैठक भी हुई. इसमें पुलिस आयुक्त व उपराज्यपाल आदि अधिकारी शामिल हुए. दिल्ली के लोगों को उम्मीद थी कि बैठक के बाद कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा, जिससे सुलगती दिल्ली में शांति व्यवस्था बहाल हो सकेगी. लेकिन, नतीजा कुछ नहीं निकला. उत्तर-पूर्वी जिले के लोग जान माल की सुरक्षा को लेकर बेहद डरे सहमे नजर आए. पिछली तीन रातों से वह सोए नहीं और छतों या बालकनी में टहलकर आशियाने की सुरक्षा में जुटे हुए हैं. दर्जनों परिवार अपने घरों में ताला लगाकर रिश्तेदारों के यहां चले गए हैं.

इस घटना ने यमुनापार में रहने वाले लोगों की 1984 और 1992 में हुई सांप्रदायिक हिंसा की यादों को ताजा कर दिया है. उस समय भी यमुनापार ही सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था. 84 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख बाहुल्य इलाकों में भीषण दंगे हुए थे. जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की जान गई थी. वहीं 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़की थी. उस समय तत्कालीन डीसीपी दीपक मिश्रा ने सख्त कार्रवाई करते हुए दंगे पर काबू पा लिया था. वहीं इस बार जिस तरह से सरेआम दंगाई पुलिस की मौजूदगी में तीन दिन से अवैध हथियार लहराकर फायरिंग और उपद्रव कर रहे हैं. उससे दिल्ली में कानून व्यवस्था कायम करने को लेकर पुलिस के रवैये पर सवाल उठ रहे हैं.

Previous Post Next Post