जल्द बाजार में मिलेगा बैगनी रंग का आलू 'नीलकंठ', एंटी आक्सीडेंट से भरपूर, स्वाद भी बेहतर...


कृषि वैज्ञानिकों ने आलू की नीलकंठ प्रजाति तैयार की है, जो बैगनी रंग का होगा. एंटी आक्सीडेंट तत्वों से भरपूर आलू की यह प्रजाति देश के उत्तरी मैदानी क्षेत्रों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बोने के लिए उपयुक्त है. लगभग एक दशक की लंबी अवधि में तैयार हुआ नायाब प्रजाति का यह आलू भंडारण के लिए बेहद उपयुक्त माना गया है. स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर इस आलू का स्वाद भी लाजवाब कहा जा रहा है.

आलू की खेती के लिए सबसे बड़ी चुनौती आमतौर पर उसमें लगने वाला झुलसा रोग है. शिमला के आलू अनुसंधान संस्थान ने इस नायाब प्रजाति को झुलसा रोधी बनाया है. झुलसा रोग आलू के लिए सबसे बड़ी मुश्किल पैदा करता है. खेत में तैयार खड़ी आलू की फसल पर इस रोग के लगते ही वह झुलस जाता है. मिट्टी के नीचे पड़ा आलू या तो सड़ जाता है या उसका उत्पादन बहुत कम हो जाता है.

इस प्रजाति में कई नायाब खूबियां हैं

नीलकंठ आलू की प्रजाति तैयार करने वाली टीम के मुखिया डॉक्टर एसके लूथरा ने बताया कि वैसे तो बाजार में पीला, सफेद और लाल किस्म के आलू की प्रजातियां हैं. लेकिन नीले रंग वाले आलू की इस प्रजाति में कई नायाब खूबियां हैं. यह सूखा रोधी भी है। आलू की पिछैती खेती के रूप में यह बहुत लाभप्रद साबित हो सकता है. इस पर तापमान के बढ़ने का बहुत असर नहीं पड़ता है. इस प्रजाति का आलू जल्दी खराब नहीं होता है. इसकी सेल्फ लाइफ बहुत अच्छी है, जिससे इसके भंडारण में बहुत सहूलियत होती है.

बारिश और कुहासे का नहीं होता असर

आकार में यह अंडाकार है, जबकि इसके भीतर का गूदा पीले रंग का है. डाक्टर लूथरा ने एक सवाल के जवाब में बताया कि मौसम में आ‌र्द्रता अधिक हो जाने, बारिश और कुहासा होने की दशा में आलू पर झुलसा रोग के पकड़ने की संभावना बढ़ जाती है. आलू के लिए ऐसा मौसम सबसे खतरनाक होता है. लेकिन नीलकंठ प्रजाति के आलू पर इसका कोई असर नहीं होता है. केंद्रीय आलू संस्थान शिमला के अधीन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मोदीपुरम केंद्र पर इस प्रजाति को तैयार किया गया है. यह 75 से 90 दिनों में पककर तैयार हो जाता है. उत्पादकता के स्तर पर भी किसी अन्य प्रजाति से पीछे नहीं है.
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