जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन अगले छह महीने के लिए बढ़ाने का प्रस्ताव और वहां आरक्षण का दायरा बढ़ाने संबंधी संशोधन विधेयक सोमवार को संसद से सर्वसम्मति से पारित हो गया.
कश्मीर से जुड़े इन मसलों पर विपक्ष पूरी तरह सरकार के साथ खड़ा दिखा. यहां तक कि पश्चिम बंगाल में भाजपा से दो-दो हाथ कर रही तृणमूल कांग्रेस ने भी सरकार का साथ दिया. सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर तो चला और इतिहास के पन्ने भी पलटे गए, लेकिन किसी भी प्रस्ताव का विरोध नहीं हुआ.
सोमवार को लोकसभा से पारित होकर राज्यसभा पहुंचे प्रस्ताव और विधेयक पर चर्चा थी. इसी दौरान, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने प्रस्ताव और विधेयक दोनों पर समर्थन का एलान कर दिया. इसी तरह, समाजवादी पार्टी ने भी जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने के प्रस्ताव पर समर्थन की घोषणा कर दी. इससे सदन से दोनों के पारित होने का रास्ता साफ हो गया था. हालांकि बाद में प्रस्ताव और विधेयक दोनों ही सर्वसम्मति से पारित हुए.
चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर में वर्तमान समस्याओं का ठीकरा तत्कालीन कांग्रेस सरकारों पर फोड़ते हुए कहा कि अब ईमानदारी से इससे निपटने की कोशिश हो रही है. उन्होंने कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद से पूछा, 'एक जनवरी, 1949 को सीजफायर क्यों कर दिया गया था.
यदि यह नहीं होता तो आतंकवाद नहीं होता। झगड़ा भी नहीं होता, फिर यूएन में क्यों गए थे जबकि महाराजा ने ही स्वीकार कर लिया था कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है!