कोलकाता: वर्ष 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले पश्चिम बंगाल की सियासत एक बार फिर ऐतिहासिक जख्मों की यादें ताज की जाने लगी है। भारतीय जनता पार्टी की राज्य इकाई ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की मांग को लेकर प्रदेशभर में एक बड़ा अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है। इस अभियान में 1947 के देश के विभाजन और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान से आए बांग्ला हिंदू शरणार्थियों की पीड़ा को केंद्र में रखा जाएगा।
भाजपा के एक पदाधिकारी के अनुसार, शुक्रवार को हुई पार्टी बैठक में जिलास्तरीय नेताओं को इस फैसले की आधिकारिक जानकारी दी गई है। इससे पहले राज्य कोर कमेटी की बैठक में यह निर्देश दिया गया था कि हर जिले में सेमिनार और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएं। एक वरिष्ठ नेता ने बताया, “हम यह सवाल हर बूथ तक पहुंचाएंगे कि क्या विभाजन के पीड़ितों को नजरअंदाज कर उन घुसपैठियों को मतदाता सूची में जगह दी जानी चाहिए, जिन्होंने फर्जी दस्तावेज़ों के दम पर बंगाल की लोकतांत्रिक व्यवस्था में घुसपैठ की है?”
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य ने भी जिला इकाइयों से स्पष्ट कहा है कि जो लोग दशकों पहले अपने घर-बार छोड़कर भारत आए थे, वे मतदाता सूची में स्थान पाने के वास्तविक अधिकारी हैं, न कि वे जो हाल के वर्षों में सीमा पार करके आए हैं।
भाजपा का दावा है कि उत्तर 24 परगना, मालदा, नदिया और मुर्शिदाबाद जैसे सीमावर्ती जिलों में बड़ी संख्या में फर्जी मतदाताओं के नाम दर्ज हैं और उन्हें हटाने के लिए वार्षिक आधार पर सघन जांच वाली एसआईआर प्रक्रिया जरूरी है। पार्टी रणनीतिकार इस अभियान को बंगाल की लोकतांत्रिक व्यवस्था में ‘वास्तविक भागीदारी’ बनाम ‘फर्जी घुसपैठ’ के जनमत संग्रह के रूप में पेश कर रहे हैं।
भाजपा पदाधिकारियों का कहना है कि यह केवल दस्तावेजों का मुद्दा नहीं, बल्कि गरिमा और पहचान की लड़ाई है। अभियान को हर गांव, हर बूथ और हर ब्लॉक तक पहुंचाया जाएगा। भाजपा को उम्मीद है कि यह अभियान बंगाल के उन हिंदू परिवारों को भावनात्मक रूप से जोड़ सकता है, जिनकी पहचान और नागरिकता का मुद्दा दशकों से सामाजिक विमर्श का हिस्सा रहा है।
हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने इस पूरे अभियान को चुनाव पूर्व ध्रुवीकरण की साजिश बताया है। पार्टी के एक प्रवक्ता ने कहा, “भाजपा जानबूझकर विभाजन की पुरानी पीड़ा को कुरेद रही है ताकि समाज में डर और बंटवारे का माहौल बनाया जा सके। यह ‘बैकडोर एनआरसी’ है, जिसे जनता नकार देगी।”
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