न्याय हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू


राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 76वें गणतंत्र की पूर्व संख्या पर देश को संबोधित किया. राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में शामिल भारत को ज्ञान और विवेक का उद्गम माना जाता था लेकिन भारत को एक अंधकारमय दौर से गुजरना पड़ा. आज के दिन हम सबसे पहले उन सूर वीरों को याद करते हैं जिन्होंने देश को आजाद करने में बड़ी से बड़ी कुर्बानी दी. इस साल हम भगवान बिरसा मुंडा की 150 जयंती मना रहे हैं.

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के गणतांत्रिक मूल्यों का प्रतिबिंब हमारी संविधान सभा की संरचना में भी दिखाई देता है. उस सभा में देश के सभी हिस्सों और सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व था. सबसे अधिक उल्लेखनीय बात यह है कि संविधान सभा में सरोजिनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, सुचेता कृपलानी, हंसाबेन मेहता और मालती चौधरी जैसी 15 असाधारण महिलाएं भी शामिल थीं.

मुर्मू ने कहा कि देश ने विश्व व्यवस्था में उचित स्थान पाया है. बाबा साहब ने देश को मजबूत संविधान दिया. न्याय हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है. हमारे देश का ये सौभाग्य था कि यहां महात्मा गांधी हुए. संविधान सभा में सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व था. नैतिकता हमारे जीवन का प्रमुख तत्व है.

राष्ट्रपति ने संबोधन में आगे कहा कि देश में विकास की ये रफ्तार आगे भी बनी रहेगी. भारत का आर्थिक विकास तेजी से हुआ है. महिलाएं और बच्चे विकास के केंद्र में हैं. अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का कद भी बढ़ा है. देश में ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के लोगों के समग्र विकास के प्रयास किए जा रहे हैं. सड़क, बंदरगाह का तेजी से विकास हो रहा है.

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