ए.एन.कॉलेज पटना में औपनिवेशिक भारत में प्रतिरोध के स्वर पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन


युवाशक्ति न्यूज 

पटना: इतिहास विभाग, ए. एन. कॉलेज, पटना तथा स्नातकोत्तर इतिहास विभाग, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय द्वारा औपनिवेशिक भारत में प्रतिरोध के स्वर पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन आज गुरुवार को ए.एन. कॉलेज पटना के एस.एन. सिन्हा सभागार में किया गया। यह दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा संपोषित है। 

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. बाल मुकुंद पाण्डेय,राष्ट्रीय संगठन सचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली ने अपने बीज व्यक्तव्य में कहा कि भारत की प्रतिरोध की क्षमता है कि यह हमेशा सही को सही और गलत को गलत कहता है। आज जब दुनिया की कई प्राचीन सभ्यता विलुप्त हो गई है, कई देशों की सभ्यताएं मंद पर रही है उस समय में भी भारत की प्राचीन सभ्यता विकास की ओर अग्रसर है। भारत देश देवनिर्मित है।हमने कई वर्षों तक सघंर्ष किया है और प्रतिरोध के कारण हीं हम जिंदा हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे डीएनए में औपनिवेशिकता नही हैं। भारत वसुधैव कुटुंबकम को जीने वाला राष्ट्र है।हम व्यक्तिगत या पारिवारिक हितों पर सामूहिक कल्याण को प्राथमिकता देते हैं।भारत का निर्माण बलिदान और त्याग से हुआ है। हमें अपने स्वाभिमान को जगाने की आवश्यकता है।उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास संकलन समिति का कार्य सभी हिंदू पुराणों को एक विश्वकोश में संकलित करना, विद्वानों से इसके मूल अर्थ की व्याख्या करवाना और इसे भारत के वास्तविक इतिहास के रूप में सामने रखना है। 

अपने अध्यक्षीय भाषण में पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर. के. सिंह ने कहा कि पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में निरंतर सेमिनार तथा कॉन्फ्रेंस के आयोजन किया जा रहा है। इससे शिक्षक तथा शोधकर्ताओं को लाभ मिल रहा है। उन्होंने कहा कि हमें स्वतंत्रता के 78 वर्षों के विकास की समीक्षा करने की आवश्यकता है तथा उन पहलुओं और आधारों को कार्य करने की जरूरत है जो हमें 2047 तक विकसित राष्ट्र बना सकती है। साथ ही उन्होंने कहा कि विकसित होने के लिए हमें अपने उत्पादकता बढ़ाने पर बल देना चाहिए। प्रो. एस.पी.शाही, कुलपति, मगध विश्वविद्यालय ने कहा कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन ए.एन. कॉलेज के एस.एन. सिन्हा सभागार में हो रहा है। इस संगोष्ठी के विषय का जुड़ाव अनुग्रह बाबू के नाम से है जिनके नाम पर इस महाविद्यालय के नाम पर है। बिहार में प्रतिरोध के स्वर के अग्रणी अनुग्रह बाबू थे। औपनिवेशिक काल भारत के लिए संक्रमण का काल रहा है। 

प्रो. शाही ने कहा कि डॉ. बाल मुकुंद पांडेय विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रचार तथा प्रसार कर रहे हैं जो एक सराहनीय कार्य है।मगध विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास के लिए क्लासरूम की शिक्षा के साथ अन्य अकादमिक गतिविधियों का विकास भी अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में शोध पर सराहनीय कार्य हुआ है जो बिहार के सभी विश्वविद्यालयों के लिए अनुकरणीय है। प्रो. राजेश रंजन, कुलपति, सीआईबीएस, लेह ने कहा कि हमारे संस्कृति में आपत्ति का पुराना इतिहास है।बुद्ध काल में बुद्ध के घर से ही आपत्ति की शुरुआत हो गई थी। आपत्ति बौद्ध धर्म के विकास का कारण रहा है। प्रतिरोध की पृष्ठभूमि हमारे संस्कृति में समाहित है।

अपने स्वागत भाषण में महाविद्यालय के प्रधानाचार्य प्रो. प्रवीण कुमार ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि औपनिवेशिक प्रतिरोध के स्वर के अग्रणी अनुग्रह बाबू रहे हैं।महात्मा गांधी के सानिध्य में अनुग्रह बाबू के द्वारा बिहार में किसान आंदोलन समेत अन्य कई आंदोलन किए गए। प्रधानाचार्य ने कहा कि हमारे इतिहास के कई अप्राप्त कड़ी है जिन्हें जोड़ने की आवश्यकता है।संगोष्ठी की आयोजन अध्यक्ष प्रो. माला सिंह ने विषय प्रवेश में कहा कि राष्ट्रीयता, सम्प्रुभता, और स्वायत्तता को पुनः प्राप्त करने की लिए अधिकतम आबादी द्वारा किया गया प्रतिरोध ही औपनिवेशिक प्रतिरोध है।

भारतीय संस्कृति की उदारता, लचीलापन हमें विशिष्ट बनाती है। उन्होंने कहा कि आज ऐसे लेखन की आवश्यकता है जो हमारे संस्कृति का वास्तविक चित्रण कर सके। आयोजन उपाध्यक्ष प्रो. अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि विरोध के कई ऐसे स्वर हैं जिसे हमने अभी तक अन्वेषित नहीं किया है। आवश्यकता है कि हम इन सभी अनछुए पहलुओं पर बारीकी से नजर डालें।आयोजन के समन्वयक डॉ. संजीत लाल कहा कि इस कार्यक्रम में 6 राज्यों के और बिहार के सभी विश्वविद्यालयों से लगभग 250 आलेख आए हैं तथा इस कार्यक्रम में 400 प्रतिनिधि सम्मिलित हो रहे हैं।कार्यक्रम के सभी अतिथियों के द्वारा स्मारिका का लोकार्पण किया गया। 

कार्यक्रम का संचालन डॉ. रत्ना अमृत ने किया। धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव डॉ. राजीव रंजन ने किया। इस कार्यक्रम में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य आनंद शंकर सिंह,प्रो.रत्नेश्वर मिश्रा, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो.एन. के.झा, डीन स्टूडेंट वेलफेयर प्रो.ए. के.नाग, प्रो.रणविजय सिंह, प्रो.अमरनाथ सिंह, प्रो.भारती एस.कुमार, प्रो.माया शंकर, प्रो.हितेंद्र पटेल, डॉ. नंदिता बनर्जी, प्रो.गिरीश चंद्र पांडेय समेत कई गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति रही।

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