सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में हुए जातिगत सर्वे को लेकर सुनवाई के दौरान मंगलवार (2 जनवरी) को राज्य सरकार को अहम निर्देश दिए. कोर्ट ने सरकार से कहा कि वो जाति सर्वेक्षण का पूरा विवरण सार्वजनिक करे, ताकि असंतुष्ट लोग निष्कर्षों को चुनौती दे सकें.
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने उन याचिकाकर्ताओं को कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया, जिन्होंने जाति सर्वेक्षण और इस तरह की कवायद करने के बिहार सरकार के फैसले को बरकरार रखने वाले पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है.
बेंच ने कहा, 'अंतरिम राहत का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि उनके (सरकार के) पक्ष में हाई कोर्ट का आदेश है. अब, जब विवरण सार्वजनिक मंच पर डाल दिया गया है तो दो-तीन पहलू बचे हैं, पहला कानूनी मुद्दा है-हाई कोर्ट के फैसले का औचित्य और इस तरह की कवायद की वैधता के बारे में.’’
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने कहा कि चूंकि सर्वेक्षण का डाटा सामने आ गया है, अधिकारियों ने इसे अंतरिम रूप से लागू करना शुरू कर दिया है और एससी, एसटी, अन्य पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण को मौजूदा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया है.
पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर विस्तार से सुनवाई की जरूरत है. पीठ ने रामचंद्रन से कहा, ‘‘जहां तक आरक्षण बढ़ाने की बात है तो आपको इसे हाई कोर्ट में चुनौती देनी होगी.’’
रामचंद्रन ने कोर्ट से कहा कि इसे पहले ही हाई कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है. उन्होंने कहा कि मुद्दा महत्वपूर्ण है और चूंकि राज्य सरकार डेटा पर काम कर रही है, इसलिए मामले को अगले सप्ताह सूचीबद्ध किया जाना चाहिए, ताकि याचिकाकर्ता अंतरिम राहत के लिए दलील दे सकें. पीठ ने कहा, ‘‘कैसी अंतरिम राहत? उनके (बिहार सरकार के) पक्ष में हाई कोर्ट का फैसला है.’’
बिहार में मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ने नीतीश कुमार सरकार पर जाति सर्वेक्षण कराने में अनियमितताओं का आरोप लगाया है और एकत्र किए गए आंकड़ों को 'फर्जी' बताया है. इसके बाद बेंच ने दीवान से जाति सर्वेक्षण पर एक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई के लिए पांच फरवरी की तारीख निर्धारित कर दी.
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