नई दिल्ली: एक तरफ 'एक राष्ट्र-एक चुनाव'(One Nation, One Election) को लेकर देश भर में बहस तेज है. इसी बीच पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Former President Ramnath Kovind) की अध्यक्षता में 'एक राष्ट्र-एक चुनाव' समिती की पहली बैठक आज दिल्ली में बुलाई गई है. यह आधिकारिक बैठक रामनाथ कोविंद के आवास पर होने वाली है.
ज्ञात हो कि केंद्र सरकार (Central Government) ने लोकसभा, विधानसभाओं,नगर पालिकाओं और साथ ही पंचायतों चुनावों को एक साथ कराने के मुद्दे पर गौर करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गत शनिवार को 8 सदस्यों की कमेटी गठित की थी.
क्या है 'वन नेशन-वन इलेक्शन '?
'वन नेशन-वन इलेक्शन' का मतलब सभी चुनावों को सिंक्रनाइज करना है, जिससे निश्चित सीमा में एक साथ चुनाव भी हो और चुनाव की लागत में भी कमी आए क्योंकि चुनाव कराने में वित्तीय संसाधनों की प्रचुर मात्रा में जरूरत होती है और काफी खर्चा होता ह. अगर एक साथ चुनाव होंगे तो प्रशासनिक और सुरक्षा बलों पर दवाब भी कम होगा.
हालांकि केंद्र सरकार (Central Government) के इस प्रस्ताव पर विपक्ष उबल पड़ा है. उसका कहना है कि 'ये संघवाद की दादागिरी है जो कि क्षेत्रीय लोकतंत्र को कमजोर कर देगा. इस तरह की व्यवस्था से नेशनल पार्टियों को तो फायदा होगा लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.'
हालांकि जो लोग इसका समर्थन कर रहे हैं वो कह रहे हैं कि इस तरह की व्यवस्था से पैसे और वक्त की बचत तो होगी ही साथ ही पार्टियों का ध्यान शासन पर होगा ना कि चुनावी रैलियों पर, इसमें जनता का ही फायदा है क्योंकि पार्टियों को जनता के लिए काम करने का ज्यादा वक्त मिलेगा.
क्या भारत बनेगा इस मामले में विश्व का चौथा देश?
हालांकि ये इतना आसान नहीं है क्योंकि 'एक राष्ट्र-एक चुनाव' के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है. आपको बता दें कि इस तरह की व्यवस्था अगर सच में भारत में लागू होती है तो ऐसा करने वाला वो विश्व का चौथा देश बन जाएगा. विश्व में दक्षिण अफ्रीका, बेल्जियम और स्वीडन ही ऐसे देश हैं जहां 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के तहत चुनाव होते हैं.
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