प्रचंड के खिलाफ याचिका दायर करने के सुप्रीम आदेश पर भड़के माओवादी


काठमांडू : नेपाल के प्रधानमंत्री एवं सीपीएन (एमसी) के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ द्वारा तीन साल पहले काठमांडू में दिए गए एक आपराधिक कबूलनामे पर याचिका दायर करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ माओवादियों ने आवाज उठाई है. एमसी के महासचिव देव गुरुंग का रविवार को जारी बयान कोर्ट के लिए चेतावनी है.

पार्टी द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि माओवादियों द्वारा की गई दस वर्षों की हिंसक गतिविधियों (माओवादी के भाषा मे जनयुद्ध) के आधार पर, प्रमुख शांति समझौते, अंतरिम संविधान, प्रथम और द्वितीय संविधान सभा के चुनाव संपन्न हुए और एक संघीय, धर्मनिरपेक्ष, समावेशी, आनुपातिक संविधान सभा के माध्यम से लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया गया है. बयान में लिखा है कि प्रचंड द्वारा 5000 लोगों की मौत की जिम्मेदारी लेना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत है.

बयान में कहा गया है कि ग्रेटर पीस एग्रीमेंट के निर्देशानुसार माओवादियों की दस साल की सशस्त्र हिंसा के दौरान हुई घटनाओं के संबंध में बमोजिम ट्रुथ एंड डिस अपियरेंस इन्वेस्टिगेशन कमीशन का गठन किया गया है और इस परिप्रेक्ष्य में कि ये आयोग संक्रमण काल के दौरान न्यायिक कार्यवाही को पूरा करने के लिए लंबे समय से सक्रिय हैं, वे किसी भी अधिकार क्षेत्र को ग्रहण नहीं करेंगे, जो उक्त आयोग के अधिकार क्षेत्र के मामलों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता हो. हम आपको याद दिलाना चाहते हैं कि हम इस संबंध में कोई निर्णय नहीं ले सकते हैं.

माओवादियों ने प्रतिगामी प्रवृत्तियों के विरुद्ध परिवर्तन के समर्थकों को एकजुट होने का आग्रह किया. यह दावा किया गया है कि प्रचंड पर दायर याचिका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है, क्योंकि प्रचंड ने संविधान द्वारा प्रदान की गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का लाभ उठाया है और विभिन्न सार्वजनिक कार्यक्रमों में व्यक्त किए गए विचारों की व्याख्या और तर्क अतिशयोक्तिपूर्ण ढंग से किया है, उन अभिव्यक्तियों को कार्रवाई का विषय बनाया जाए.

इसी तरह आज (रविवार) राजधानी में एक कार्यक्रम में वर्तमान और पूर्व माओवादी नेताओं को देखा गया. जहां उन्होंने उनके खिलाफ साजिश और घेराबंदी का मुद्दा उठाया. प्रधानमंत्री प्रचंड ने कहा कि प्रतिक्रियावादी साजिश रचने और उन्हें घेरने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि इस तरह की साजिशों के खिलाफ सभी को जागरूक और एकजुट होना चाहिए.

प्रचंड ने कहा, ‘‘प्रतिक्रियावादी तरह–तरह के षड्यंत्र और घेराव कर रहे हैं। ऐसा ही कल जनयुद्ध के अंत में देखा गया. उन्होंने दावा किया कि उनके नेतृत्व में सरकार ने सार्वजनिक अवकाश कैलेंडर में जनयुद्ध को शामिल कर और सशस्त्र गतिविधियों में मारे गए लोगों को शहीदों के रूप में राजपत्र में रखकर एक महत्वपूर्ण काम किया है.’’

पूर्व माओवादी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. बाबूराम भट्टाराई ने प्रचंड के भाषण के खिलाफ रिट याचिका दायर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की. उन्होंने अभिव्यक्ति को सामान्य बताकर माओवादी जनयुद्ध को आपराधिक बनाने की प्रवृत्ति का आरोप लगाया.

भट्टाराई ने कहा, ‘‘तीन साल बाद मौजूदा प्रधानमंत्री प्रचंड को साधारण सी बात पर गिरफ्तार किया जाएगा? उन्होंने कहा कि इसे सामान्य के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. बाबूराम माओवादियों से अलग हो कर नई पार्टी चलाते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि जो अलग हो गए हैं, उन्हें एक हो जाना चाहिए.’’

प्रचंड ने माघी त्योहार में संघर्ष के दौरान मारे गए केवल 5000 लोगों को मारने की जिम्मेदारी ली थी, तब सर्वोच्च प्रशासन ने याचिका के कारण पंजीकरण को रोक दिया था. हालांकि, 3 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर करने का आदेश दिया.

प्रचंड के नेतृत्व में माओवादी सशस्त्र गतिविधियों के दौरान 17000 से अधिक लोग मारे गए थे. माओवादियों के शांतिपूर्ण राजनीति में आने के बाद उनकी मांगों के अनुसार नेपाल गणतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के साथ संघवाद में चला गया है.

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