डिस्ट्रिक्ट पीजीआरओ ने सदर डीसीएलआर को बीएलडीआर एक्ट में गलत सुनवाई रोकने का दिया निर्देश


सूरज कुमार
गया: दरअसल यह मामला पटना जेसुइट सोसाइटी की तरफ से फादर एन्टो जोसेफ का है.जिसमें उनके द्वारा कहा गया कि उनकी खरीदगी एवं कब्जे की भूमि पर हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद सदर डीसीएलआर बीएलडीआर एक्ट के तहत नापी की सुनवाई कर उन्हें बेवजह परेशान कर रहे हैं.जबकि इस मामले में उच्च न्यायालय, पटना के सीडब्ल्यूजेसी 17883/2014 में विगत 13 अगस्त 2019 को आदेश पारित है.बावजूद इसके सदर डीसीएलआर कोर्ट द्वारा केस नंबर 144/22-23 में नोटिस जारी कर परेशान किया जा रहा है.

इस मामले में जेसुइट सोसाइटी की तरफ से फादर एन्टो जोसेफ ने जिला लोक शिकायत निवारण कार्यालय में एक परिवाद दायर किया.फादर ने आवेदन में लिखा कि 1995 में कुंदन शरण द्वारा मुझे 100 डिसमिल जमीन बोधगया में खरीदवा दिया गया.सभी कागजात को देखते हुए मोटेशन कराते हुए उस जमीन में मेरे द्वारा बाउंड्री कर कब्जा किया जा चुका है, जो अब तक बरकरार है.इस मामले में वर्ष 2011 में ही कुंदन शरण द्वारा सदर डीसीएलआर के कोर्ट में बीएलडीआर एक्ट के तहत मुकदमा दायर कर जमीन को कब्जा कराने का आवेदन दिया गया था, जिस पर डीसीएलआर सदर ने सुनवाई करते हुए कुंदन शरण के पक्ष में आदेश पारित किया.परंतु मेरे द्वारा उनके आदेश के आलोक में मगध प्रमंडल आयुक्त के यहां अपील दायर की गई.जिस पर मगध प्रमंडल आयुक्त ने डीसीएलआर सदर के आदेश को सही ठहराते हुए मेरे अपील को खारिज कर दिया.

हाईकोर्ट ने मगध प्रमंडल आयुक्त एवं सदर डीसीएलआर के आदेश को किया अपास्त.
फादर के द्वारा इस मामले को लेकर पुनः हाईकोर्ट में सी डब्ल्यू जे सी फाइल की गई.जहां हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनते हुए 13/8/2019 को मगध प्रमंडल आयुक्त एवं सदर डीसीएलआर के आदेश को सेट असाइड (अपास्त) यानि रद्द कर दिया.1995 से लेकर आज तक वह जमीन मेरे कब्जे में ही है.परंतु वर्ष 2023 में नए डीसीएलआर ने कुंदन शरण द्वारा दिए गए एक नए आवेदन पर फिर से बीएलडीआर एक्ट के तहत सुनवाई प्रारम्भ कर दिया. जिस पर मेरे द्वारा सदर डीसीएलआर को हाईकोर्ट का आदेश दिखाते हुए निवेदन किया गया कि इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश के आलोक में आप यह मामला नहीं सुन सकते.परंतु, सदर डीसीएलआर द्वारा फादर की बात न सुनते हुए कुंदन शरण के आवेदन को स्वीकार करते हुए नापी संबंधी सुनवाई प्रारम्भ कर दी.जिससे वे(फादर) परेशान होकर जिला लोक शिकायत निवारण कार्यालय में आवेदन दिए.

डीसीएलआर द्वारा मौखिक रूप से कहा गया कि जब कोई मामला किसी न्यायालय में चल रहा है तो लोक शिकायत में यह मामला नहीं चल सकता.
इस संबंध में लोक प्राधिकार सह सदर डीसीएलआर को नोटिस निर्गत कर प्रतिवेदन की मांग की गई.डीसीएलआर द्वारा प्रतिवेदित किया गया कि उनके न्यायालय में वादी कुन्दन शरण पिता- स्व0 त्रिपुरारी शरण, गया द्वारा बाउण्ड्री विवाद के कारण बीएलडीआर एक्ट के अंतर्गत वाद संख्या 144/22-23 दायर किया गया है, जिसके कार्यान्वयन के क्रम में प्रतिवादी को नोटिस निर्गत किया गया है, जिससे कि वाद का कारण स्पष्ट हो सके.यह वाद सम्प्रति प्रक्रियाधीन है.साथ ही, लोक प्राधिकार-सह-DCLR द्वारा मौखिक रूप से यह भी कहा गया कि किसी न्यायालय में चलते रहने के कारण यह मामला बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम, 2015 के तहत नकारात्मक सूची का मामला बनता है, अतएव इसकी सुनवाई समाप्त कर दी जाए.लोक प्राधिकार के प्रतिवेदन से स्पष्ट होता है कि लोक प्राधिकार द्वारा उपर्युक्त वर्णित माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के संबंध में कुछ भी वर्णित नहीं कर उससे बच कर निकलने का प्रयास किया गया है.जबकि परिवादी का आवेदन मुख्यतः माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के इंप्लीमेंटेशन से ही संबंधित था/है.

वादी को 12 साल के बाद इस तरह का मामला सदर डीसीएलआर के न्यायालय में लाने का कोई औचित्य नहीं.
उपर्युक्त मामले को गंभीरता से देखते हुए जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी सुबोध कुमार ने कहा कि 12 वर्षों के बाद वादी कुंदन शरण द्वारा डीसीएलआर के यहाँ बीएलडीआर एक्ट के तहत लाए गए इस प्रकार के वाद 144/22-23 का कोई औचित्य नहीं है.माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुकूल अब वादी (कुंदन शरण) का प्रश्नगत भूमि पर कहीं कोई दावा नहीं बनता है.दोनों पक्ष प्रश्‍नगत भूमि से संबंधित डीड और रसीद का दावा करते हैं, लेकिन माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के आदेश के अनुरूप तो 12 वर्ष के बाद टाइटल सूट में भी कुंदन शरण का दावा बनता नहीं दिखता.12 वर्ष के उपरांत किसी के बाउंड्री के अंदर के हिस्से पर दावा जताना तो राइट, टाइटल और इंटरेस्ट का ही मामला हुआ.फिर माननीय उच्च न्यायालय, पटना के आदेश एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में डीसीएलआर इसकी सुनवाई कैसे कर सकते हैं? वर्तमान संदर्भ में डीसीएलआर के वादी (कुंदन शरण) द्वारा महेश्वर मंडल प्रकरण का मामला भी उठाया गया है.

अगर कोई व्यक्ति 12 साल तक किसी जमीन पर कोई दावा नहीं करता तो उसके बाद उसका दावा गलत माना जाएगा.
उन्होंने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय का एक आदेश है जिसमें अगर कोई व्यक्ति 12 साल तक किसी जमीन पर कोई दावा नहीं करता तो उसके बाद उसका दावा एडवर्स पजेशन के तहत गलत माना जाएगा.कुंदन शरण 1992 में 76 डिसमिल जमीन खरीदने का दावा कर रहे हैं और फादर 1995 में.फादर का यह भी दावा है कि जिस जमीन पर कुंदन शरण दावा कर रहे हैं, उसी जमीन के पटना जेसुइट सोसाइटी की खरीदगी डीड में स्वयं कुंदन शरण गवाह के रूप में हस्ताक्षर किए हुए हैं.कुंदन शरण द्वारा डीसीएलआर के यहां आवेदन में स्वयं अंकित किया गया है कि उनके द्वारा पहली बार वाद लाया गया 2011 में.अर्थात 1995 से 12 वर्ष के बाद.इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद कोई शक-सुबहा की गुंजाइश नहीं बचती कि वादी (कुंदन शरण) का प्रतिवादी (पटना जेसुइट सोसाइटी) की जमीन पर अब कभी कोई दावा नहीं बन सकता.ऐसी स्थिति में डीसीएलआर का वर्तमान वाद 144/22-23 में सुनवाई जारी रखना विधिसंगत नहीं है.

न्यायालय के आदेश के बावजूद डीसीएलआर द्वारा सुनवाई प्रारंभ करना समझ के परे है--डीपीजीआरओ.
उन्होंने सदर डीसीएलआर पर कॉमेंट करते हुए कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश एवं माननीय उच्च न्यायालय, पटना के आदेश से स्पष्ट है कि डीसीएलआर के यहाँ चल रहा मामला लोक शिकायत निवारण कार्यालय में ऊपरी अदालत के आदेश के इंप्लीमेंटेशन से संबंधित है, इसलिए यह नकारात्मक सूची से संबंधित मामला न होकर कृत्यकरण का मामला बन जाता है.कृत्यकरण के आलोक में ही मेरे यहाँ इसकी सुनवाई की गई.साथ ही वरीय न्यायालय के आदेश के बावजूद एवं इतने क्लियर मैटर के बाद भी डीसीएलआर के द्वारा सुनवाई प्रारंभ करना समझ के परे है.डीसीएलआर को तो वाद को एडमिशन के बिंदु पर ही रिजेक्ट कर देना चाहिए था.परंतु अपने यहाँ मनमाने ढंग से मामला चलाकर किसी आम पब्लिक को परेशान नहीं कर सकते.

डीपीजीआरओ ने डीसीएलआर को निर्देश दिया की वर्तमान वाद (144/22-23) में चल रही सुनवाई को रोक दें.
वरीय न्यायालय के आदेश के कृत्यकरण के मद्देनजर लोक प्राधिकार का ऐसा कृत्य बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम, 2015 की मूल भावना के प्रतिकूल है.लिहाजा, लोक प्राधिकार-सह-सदर डीसीएलआर आदेशित हैं कि वर्तमान वाद (144/22-23) में चल रही सुनवाई को तत्काल प्रभाव से रोक दें.परिवादी (पटना जेसुइट सोसायटी की तरफ से फादर एन्टो जोसेफ) के दावे को स्वीकृत करते हुए वाद की कार्रवाई समाप्त की जाती है.साथ ही इस आदेश की कॉपी मगध प्रमंडल आयुक्त, डीएम गया, एडीएम गया, को भेजी जाए.

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