शोरगुल में गुम हो जाता है जनता का सवाल - डॉ लक्ष्मी नारायण सिंह पटेल
फतुहा:संसद जनता के पैसे से चलती है, जनता के लिए चलती है ,इसका मूल उद्देश्य देशभर से चुने गए जनप्रतिनिधियों के माध्यम से देश की हर गरीब, वंचित, शोषित और हर वर्ग का सर्वांगीण विकास और कल्याण, यह संसद का मूल दायित्व है। लेकिन भारी हंगामे के कारण बजट सत्र हंगामे की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है। खासकर संसद में होने वाले हंगामे और बहिष्कार को लेकर खराब होने वाली समय को लेकर संसद में एक घंटे की कार्यवाही पर कितना खर्च होता है। करीब 1-5 करोड़ रूपया यानी हर मिनट की कार्यवाही पर 2- 5 लाख रुपए। पूरे एक दिन का खर्च 9 लाख रुपए। संसद की कार्यवाही के लिए जो इतने पैसे खर्च किए जाते हैं और कहां से आते हैं? वह आते हैं हमारी और आपकी कमाई से। दिन-रात हम और आप जी तोड़ मेहनत करके पैसा कमाते हैं फिर सरकार उस पर टैक्स सुनती है, जिससे सरकारी खजाना भरता है, उसी खजाने से संसद की कार्यवाही पर पैसा खर्च होता है। लोकसभा और राज्यसभा सदस्यों को वैसे तो वेतन एवं भत्ते मिलते हैं, उसके बावजूद सदन की कार्यवाही पर पैसे क्यों दी जाती है? यह प्रश्न तो जनता जानना चाहेगी ही। संसद सत्र के दौरान उन्हें सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए दो हजार रुपए मिलते हैं। यदि सांसद संसद भवन जाकर वहां रजिस्टर में हस्ताक्षर करते हैं तो उन्हें यह राशि मिलनी तय है। जन समस्याओं से कोई मतलब नहीं, शायद हंगामा करने में मजा आता है। अपराध भ्रष्टाचार पर कैसे नियंत्रण हो यह कोई चर्चा भी नहीं करना चाहता। अपराध में भले ही हथियार नकली होती है परंतु कारतूस लाइसेंसी से ही अपराध होती है और लाशों की कतारें सजती है। वैज्ञानिकों द्वारा निर्माण किया गया नारको टेस्ट मशीन है जिससे भ्रष्टाचार पर पूरा नियंत्रण किया जा सकता है। सचमुच में रामराज लाने वाला यह मशीन है। नारको टेस्ट मशीन इस्तेमाल करने के लिए विपक्ष हंगामा करता तो शायद सरकार मिनटों में पास कर देता है।
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