रामसेतु को ऐतिहासिक स्मारक के रूप में मान्यता देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अपना रूख बताने के लिए चार हफ्ते का वक्त दिया था. इसपर केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि 'रामसेतु' को राष्ट्रीय विरासत स्मारक घोषित करने की प्रक्रिया अभी संस्कृति मंत्रालय में चल रही है. दरअसल, याचिकाकर्ता सु्ब्रमण्यम स्वामी ने 2020 में भी रामसेतु को ऐतिहासिक स्मारक के रूप में मान्यता देने की याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी को कहा है कि वो भी मंत्रालय के साथ इस मुद्दे से संबंधित कोई भी दस्तावेज या अन्य सामग्री दाखिल कर सकते हैं. अदालत ने स्वामी से कहा कि अगर वो चाहे तो केन्द्र से मिल सकते हैं और जांच कर सकते हैं लेकिन इस पर स्वामी ने कहा, 'मैं किसी से नहीं मिलना चाहता, हम एक ही पार्टी में हैं, यह हमारे घोषणापत्र में था. उन्हें छह सप्ताह या जो भी हो, में फैसला करने दीजिए। मैं फिर आऊंगा."
याचिकाकर्ता स्वामी ने कहा है कि वह मुकदमे का पहला दौर जीत चुके हैं, जिसके तहत केंद्र सरकार ने राम सेतु के अस्तित्व को स्वीकार किया था. स्वामी ने विवादास्पद सेतुसमुद्रम पोत मार्ग परियोजना के खिलाफ अपनी जनहित याचिका में रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने का मुद्दा उठाया था. इसके बाद मामला शीर्ष अदालत पहुंच गया जिसके बाद रामसेतु पर परियोजना के लिए काम रोक दिया गया था. इसके बाद केन्द्र ने कहा था कि वो रामसेतु को बिना नुकसान पहुंचाए पोत मार्ग परियोजना का दूसरा मार्ग खोजना चाहती है.
इसके बाद कोर्ट ने सरकार से नया हलफनामा दाखिल करने को कहा. सेतुसमुद्रम शिपिंग चैनल परियोजना को कुछ राजनीतिक दलों, पर्यावरणविदों और कुछ हिंदू धार्मिक समूहों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. राम सेतु, जिसे आदम के पुल के रूप में भी जाना जाता है, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट से पंबन द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट से दूर मन्नार द्वीप के बीच चूना पत्थर की एक शृंखला है.
तीन-न्यायाधीशों के संयोजन में बैठी पीठ ने कहा कि न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा कार्यवाही का हिस्सा नहीं होंगे क्योंकि वह पहले इस मामले में एक वकील के रूप में पेश हुए थे. नतीजतन, मामले में दो न्यायाधीशों, सीजेआई और न्यायमूर्ति परदीवाला द्वारा आदेश पारित किया गया था. इससे पहले शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह फरवरी के दूसरे सप्ताह में स्वामी की याचिका पर सुनवाई करेगी.
शीर्ष अदालत ने 13 नवंबर, 2019 को केंद्र को रामसेतु पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था. इसने स्वामी को केंद्र की प्रतिक्रिया दायर नहीं होने पर अदालत का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता भी दी थी.
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