पितृ पक्ष में अपने पितरों को जल देने का विशेष महत्त्व माना जाता है, पितृपक्ष में जल देने से पीतर होते हैं प्रशन्न

 हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं।



 जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं.



जिनके माता या पिता या दोनों इस धरती से चले गए हैं, उन्हें पितृपक्ष में अपने पूर्वजों को जल, तिल, फूल अर्पित करना चाहिए।

इस बार पितृ पक्ष 25 सितंबर तक चलेगा। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण और श्राद्ध करते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि आपके पूर्वज, जिनकी मृत्यु हो चुकी है, वे आपसे नाराज हो जाते हैं, तो आपको जीवन में सफलता नहीं मिलती है। पितृ दोष के कारण घर में रोग और आर्थिक परेशानी भी आती है। इसलिए पितृपक्ष के दौरान पितरों को प्रसन्न करने के लिए  पितरों का तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान किया जाता है। 


पितरों को जल चढ़ाने की विधि तर्पण कहलाती है। तर्पण कैसे करें, तर्पण के समय कौन से मंत्रों का जाप करना चाहिए और पितरों को कितनी बार जल देना चाहिए, इन सब के बारे में विस्तार से जानते हैं --


हाथ में कुश लेकर हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करना चाहिए और उन्हें आमंत्रित करें:- ‘ॐ आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम’ इस मंत्र का अर्थ है, हे पूर्वजों, आइए और हमारे द्वारा दिए गए जल को ग्रहण करें।


         **पिता को जल देने के लिए मंत्र**


अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः बोलकर तर्पण के समय गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलाकर तीन बार पिता को जलांजलि दें। जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों।


         **दादा को जल देने के लिए मंत्र**


अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः बोलकर तर्पण के समय गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलाकर तीन बार पिता को जलांजलि दें। जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों।


         **मां को जल देने के लिए मंत्र**


मां को जल देने का मंत्र पिता और दादा से अलग है। इन्हें पानी देने का नियम भी अलग है। चूंकि मां का कर्ज सबसे बड़ा माना जाता है, इसलिए उन्हें पिता से ज्यादा बार पानी दिया जाता है। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें। मां को जल देने का मंत्रः (गोत्र का नाम लें) गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः


          **दादी को जल देने का मंत्र**


मां को जितनी पर जल दिया है ठीक उसी तरह इस मंत्र का जाप करते हुए दादी को भी जल दें। श्राद्ध में श्रद्धा का महत्व सबसे अधिक होता है, इसलिए जल देते समय माता-पिता और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का ध्यान रखना चाहिए। पितरों द्वारा श्रद्धापूर्वक दिया गया अन्न और जल ही ग्रहण किया जाता है। यदि श्राद्ध न हो तो पितरों को यह स्वीकार नहीं होता। दादी को जल देने का मंत्रः (गोत्र का नाम लें) गोत्रे पितामां (दादी का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः

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