श्री भगवान बुद्ध ने बौद्ध योग के पाँच ध्यान की शिक्षा दी है

 बौद्ध योग के पाँच ध्यान



🌏पहला योगाभ्यास - यह 'प्रीति' या 'प्रेम' का ध्यान है। इस ध्यान में अपने मन को इस प्रकार साधा जाता है कि जीव मात्र का भला चाहते हो, यहाँ तक कि अपने शत्रुओं से भी भ्रातृभाव रखते है। इसी का नाम 'सत्वेषु मैत्री' है। इसमें निरंतर  यही भावना रहती है कि सबका भला हो

🌏दूसरा योगाभ्यास- यह ध्यान 'दया' और 'करुणा' का है। इसमें यह चिंतन है कि सब जीव दुःख में है और अपनी कल्पना शक्ति के द्वारा उनके दु:खों का चित्र भी अपने हृदयपटल पर खींचते है कि जिससे  मन में उनके प्रति दया का भाव उत्पन्न हो और जो कुछ बन सके, उनकी सहायता करे।


🌏तीसरा योगाभ्यास - यह ध्यान 'हर्ष' और 'सुख' का है। इसमें दूसरों के कल्याण का विचार करना और उनकी प्रसन्नता से प्रसन्न होकर उनकी मंगल-कामना की भावना करते है।


🌏चौथायोगाभ्यास–'अपवित्रता' का ध्यान है। इसमें  रोग, शोक और पाप के बुरे परिणामों पर विचार करना और यह सोचना कि इंद्रियजन्य सुख बहुधा कैसे तुच्छ होते हैं और उनके कैसे भयंकर फल होते हैं।


🌏पाँचवाँ योगाभ्यास - 'शांति' का ध्यान है। इसमें  मन से राग-द्वेष, हानि-लाभ, निष्ठुरता और पीड़ा, ऐश्वर्य और दरिद्रता, संपत्ति और विपत्ति न्याय और अत्याचार के विचार निकल जाते हैं। अपनी वर्तमान दशा पर सब प्रकार संतुष्ट रहते है। न  किसी वस्तु की चाह होती है और न किसी की आवश्यकता होती है। प्रत्येक दशा में  परमात्मा के अनुगृहीत और कृतज्ञ हो। अपने भीतर क्रमश: इन पाँचों ध्यानों का अभ्यास करने से मनुष्य मुक्ति पद को पाता है।



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