अक्सर ऐसा देखा गया है कि अव्यावहारिक कर्ज नीति के कारण बैंक अक्सर कर्ज वसूली करने में तो अक्षम रहते ही हैं, बंधक संपत्ति भी उचित बाजार मूल्य पर बेचने में विफल रहते हैं। ऐसा भी नहीं है कि केवल बैंक ही घाटे में रहते हैं, बकायेदार भी अपनी बंधक संपत्ति का बाजार मूल्य नहीं मिलने के कारण नुकसान में रहता है। यह नौबत इसलिए भी आती है कि कर्जदार अपनी संपत्ति की सही स्थिति बैंक को नहीं बताता है। इसके अपने नुकसान हैं।
किसी भी कर्ज खाते के एनपीए होने कि स्थिति में कर्ज की वसूली सरफेसी कानून के प्रावधानों के तहत बंधक संपत्ति बेचकर की जाती है। लेकिन बंधक संपत्ति को उसके उचित बाजार भाव से न बेच पाने के कारण हुए नुकसान से बैंको की लाभप्रदता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसका असर उनकी बैलेंस शीट और आर्थिक स्थिति और प्रकारांतर से देश के अर्थव्यवस्था पर स्पष्ट दिखता है।
इसके अलावा ये भी देखा गया है कि बैंक अक्सर संपत्ति को बिना अपने कब्जे में लिए ही अखबारों में बिक्री के विज्ञापन दे देते हैं। ऐसी दशा में कई बार ऐसा होता है कि संपत्ति पर काबिज ब्यक्ति (संपत्ति का मालिक, किरायेदार या कोई भी तीसरा ब्यक्ति) खरीदार को संपत्ति का कब्जा लेने में बाधा उत्पन्न करते हैं। इससे खरीदार का पैसा भी फंस जाता है और फिजूल की मुकदमेबाजी भी झेलनी पड़ती है। ऐसी संपत्तियों में इतने झंझट होते हैं कि खरीदार इन्हें बेहद मामूली दाम में ही खरीदने को तैयार होते हैं।
साथ ही एनपीए से संबंधित इस तरह की संपत्तियों पर खरीदार को भी नया कर्ज मुश्किल से मिलता है और खरीदार को पूरी रकम अपने स्रोतों से जुटानी पड़ती है। इन सब कारणों से धीरे-धीरे बाजार में ऐसी धारणा बनती जा रही है कि बैंको से संपत्ति खरीदने में बहुत समस्याएं हैं। अत: लोग बैंक से संपत्तियां खरीदना नापसंद करने लगे हैं।
बैंको को अपने बारे में बनी ऐसी धारणा को बदलना होगा। बंधक संपत्ति का पूरा मूल्य मिले, यह सुनिश्चित करने के लिए बैंको को सामान्य खरीदार के बीच में अपनी साख बढ़ानी होगी। बैंको को संपत्ति की सभी देनदारियों की जानकारी देनी होगी और बताना होगा कि वह उसके निर्वहन के लिए तैयार रहे। फिर, अगर खरीदार की साख अच्छी है तो बैंको को इन संपत्तियों को बंधक रखकर दोबारा कर्ज देने में एतराज नहीं करना चाहिए।
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