म्यांमार में 1 फरवरी 2021 को देश की लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट करने के बाद वहां के सैन्य शासन ने पहली बार जेल में बंद 700 कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया है। इन कैदियों को यंगून की जेल से आज बुधवार को रिहा किया जाएगा। इसकी जानकारी रॉयटर्स को जेल के प्रमुख जॉजॉ की तरफ से ही दी गई है। जेल प्रमुख ने ये भी कहा है कि उनके पास रिहा किए गए कैदियों की कोई सूची नहीं है। हालांकि बर्मी भाषा की खबर में कहा गया है कि रिहा किए गए कैदियों में वो भी शामिल होंगे जिन्हें सैन्य प्रशासन के खिलाफ लोगों को भड़काने के आरोप में हिरासत में लिया गया था।
म्यांमार सेना द्वारा चलाए जा रहे चैनल मैवेडी टेलीविजन पर अधिकारियों ने बताया है कि करीब 24 ऐसी सेलिब्रिटिज जिन्हें वांटेड घोषित किया गया था, से मामलों को वापस ले लिया गया है। इनमें एक्टर खिलाड़ी, सोशल मीडिया से जुड़ी बड़ी हस्तियां, डॉक्टर्स, टीचर्स शामिल हैं। आपको बता दें कि तख्तापलट से ही देश की प्रमुख आन्ग सान सू की समेत अन्य नेता हिरासत में हैं। सू की के ऊपर कई तरह के गंभीर आरोप सैन्य शासन द्वारा लगाए गए हैं। आज रिहा होने वाले कैदियों में कोई भी राजनीतिक बंदी नहीं है।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक फोटो में कमर्शियल हब यंगून में ब्रिटिश काल के बनाए गए जेल के बाहर काफी संख्या में लोग खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। म्यांमार नाऊ न्यूज पोर्टल की खबर में कहा गया है कि देश भर से करीब 2000 कैदियों को जेल से रिहा किया गया है। हालांकि जेल विभाग ने इस पर किसी तरह का बयान देने से साफ इनकार कर दिया है।
आपको बता दें कि देश में तख्तापलट के बाद से सैन्य शासन के खिलाफ लोग सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इसकी वजह से पूरे देश में लगभग हर जगह सभी कमर्शियल एक्टिविटी पूरी तरह से बंद हो गई है। हर रोज सुरक्षा बलों और नागरिकों के बीच होने वाली झड़पों से सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों को ही भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
सैन्य शासन के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों को देश के पैनल कोड की धारा 505ए (भद्दे और आपत्तिजनक बयान देने और गलत खबरों को प्रसारित करना) जो कि के तहत गिरफ्तार किया गया है। इस अपराध के तहत दोषी को तीन वर्ष की सजा हो सकती है। असिसटेंस एसोसिएशन फॉर पॉलिटिकल प्रिजनर्स एक्टिविस्ट ग्रुप के मुताबिक करीब 5200 लोगों को तख्तापलट के बाद से अब तक सुरक्षाबलों ने अलग-अलग धाराओं ने हिरासत में लिया है। इस ग्रुप को कहना है कि इस दौरान 883 लोगों की मौत सुरक्षाबलों के हाथों हुई है। हालांकि सैन्य शासन की तरफ से इन संख्याओं को गलत बताया गया है।
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