रौंगटे खड़े कर देने वाली घटना है चीन के तियानमेन स्‍क्‍वायर चौक पर हुआ नरसंहार, जानें इसकी वजह

चीन के लोगों के लिए 4 जून का दिन बेहद खास है। 1989 में इसी दिन चीन की बेरहम कम्‍युनिस्‍ट सरकार ने प्रदर्शन कर रहे हजारों छात्रों के ऊपर टैंक चढ़ा दिए थे। इस घटना में जो लोग मारे गए उनके बारे में सरकारी और अनाधिकृत रूप से अलग-अलग आंकड़े सामने आते हैं। चीन की सरकार के मुताबिक इस घटना में करीब 300 लोगों की जान गई थी, जबकि यूरोप मानता है कि इसमें दस हजार से अधिक लोग मारे गए थे। वहीं चीनी मानते हैं कि इसमें 3 हजार लोगों की मौत हुई थी।

इस घटना की शुरुआत कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के उदारवादी नेता हू याओबैंग की मौत से हुई थी। हू कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ऑफ चाइना के सर्वोच्‍च पद पर आसिन हुए थे। वर्ष 1981-1982 तक वो पार्टी के चेयरमेन और फिर 1982-87 तक वो पार्टी के महासचिव रहे थे। माओ की मौत के बाद हू का राजनीतिक कद और रुतबा भी काफी बढ़ गया था। अपने राजनीतिक करियर में उन्‍होंने चीन में कई तरह से सुधार किए। वो देश और सरकार को पूरी तरह से पारदर्शी बनाना चाहते थे। इसके अलावा वो ये भी चाहते थे कि चीन के अपने पड़ोसी देशों से संबंध निर्विवाद रूप से बेहतर बनें। लेकिन उनका यही पक्ष पार्टी के दूसरे नेताओं को पसंद नहीं था। यही वजह थी कि 1987 में जब चीन में बड़े पैमाने पर छात्रों का प्रदर्शन हुआ तो उनके विरोधियों ने इसके लिए उन्‍हें दोष देना शुरू कर दिया था।उन पर पार्टी के महासचिव पद से इस्‍तीफे का दबाव डाला गया।

15 अप्रैल 1989 में जब उनका दिल का दौरा पड़ने के बाद निधन हुआ था तो पार्टी की तरफ से उनको लेकर बेहद सामान्‍य व्‍यवहार किया गया। इससे नाराज उनके समर्थकों ने बड़ी संख्‍या में तियानमेन चौक पर एकत्रित होकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और सरकार को एक ज्ञापन सौंपकर मांग की कि उनका अंतिम संस्‍कार राष्‍ट्रीय शोक के दायरे में रखते हुए करना चाहिए और इसमें पार्टी के नेताओं को शामिल होना चाहिए। हालांकि इसका असर नहीं और उन्‍हें अंतिम विदाई देने तक भी कोई नेता नहीं पहुंचा था। इस घटना के बाद हू की विधवा ने भी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के नेताओं पर उनकी अनदेखी और अवहेलना करने का आरोप लगाया। उन्‍होंने कहा कि हू की मौत के पीछे वहीं लोग हैं।

सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वालों ने 30 मई को तियानमेन चौक पर लोकतंत्र की मूर्ति की स्‍थापित कर दी थी। 2 जून को हर तरफ मार्शल लॉ लगाया गया और 3 जून को सेना को इस चौक से सभी प्रदर्शनकारियों को किसी भी कीमत पर हटाने का आदेश जारी किया गया था। सेना ने प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध फायरिंग की, जिससे वहां पर भगदड़ मच गई थी। इस घटना के बाद चीन के लोगों का गुस्‍सा सरकार के खिलाफ भड़क गया था। इन प्रदर्शनों से सरकार बुरी तरह से बौखला गई थी और उसने इनपर काबू पाने के लिए सड़कों पर सेना और टैंक उतार दिए थे। प्रदर्शनकारियों पर सेना, पुलिस बेहद बर्बरता से पेश आई। इस घटना में हजारों गों की जान गई।

इसके बाद से 4 जून को इस चौक पर सरकार सुरक्षा के अभूतपूर्व इंतजाम करती है जिससे कोई भी प्रदर्शन यहां पर न हो सके। चीन के पूर्व रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंगहे चीन की सरकार की कार्रवाई को सही मानते हैं। उनका कहना था कि ये एक राजनीतिक अस्थिरता थी। चीन पर बार-बार ये भी आरोप लगता रहा है कि वो इस नरसंहार से जुड़े सुबूतों को मिटाता रहा है। 2019 में इस हत्‍याकांड पर टोरंटो यूनिवर्सिटी ने हांगकांग यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर एक सर्वे रिपोर्ट तैयार की थी। इसमें पता चला था कि इस घटना से जुड़े करीब 3 हजार से अधिक सुबूतों को चीन की सरकार नष्‍ट कर चुकी है।

तियानमेन स्‍क्‍वायर चौक पर 4 जून 1989 को हुए प्रदर्शन के दौरान खींची गई ये फोटो न सिर्फ उस वक्‍त की याद दिलाती है बल्कि ये एक आइकॉनिक फोटो है जिसको गॉडेस ऑफ डेमोक्रेसी या लोकतंत्र की देवी कहा जाता है। इस तस्‍वीर को टैंकमेन के नाम से भी जानते हैं। इसमें चीनी टैंकों के आगे एक व्‍यक्ति हाथ में थैला लिए दिखाई दे रहा है।


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