बंगाल चुनाव के बाद जारी हिंसा पर बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों की एक टीम ने केंद्र सरकार को रिपोर्ट सौंपी

बंगाल में जारी हिंसा को लेकर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों के समूह की एक टीम ने बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसक घटनाओं पर अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी है। राज्य में हिंसा अभी भी जारी है। गृह मंत्रालय की अगुवाई वाली समिति ने भी इसी मुद्दे पर रिपोर्ट सौंपी है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) बंगाल में डॉ. भीम राव अंबेडकर के संविधान के खिलाफ सरकार चला रही है और राज्य पुलिस टीएमसी कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही है। लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आने वाले दिनों में केंद्र सरकार इस मुद्दे पर चर्चा करेगी। 

पश्चिम बंगाल से चुनाव के बाद की हिंसा एक राष्ट्रव्यापी अत्यधिक विवादास्पद बहस बन गई है, जिसे तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) द्वारा नकारा और खारिज किया जा रहा है। इस हिंसा में भाजपा के अलावा राज्य के कांग्रेस और वामपंथियों द्वारा समान रूप से प्रकाश डाला गया है। हिंसा के पीछे के तथ्य को उजागर करने के लिए बुद्धिजीवियों का समूह और शिक्षाविद जो नई दिल्ली में एक नागरिक समाज समूह है, पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा के 20 पीड़ितों का साक्षात्कार लिया।

इसमें इनमें से नौ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग की महिलाएं हैं और नौ महिलाएं सामान्य वर्ग और दो पुरुषों का साक्षात्कार लिया गया है। इस टीम में सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट की वकील मोनिका अरोड़ा, जीजीएस आईपीयू की प्रोफेसर प्रो.विजिता सिंह अग्रवाल, दिल्ली विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर सोनाली चितालकर और डॉ श्रुति मिश्रा, उद्यमी मोनिका अग्रवाल शामिल थीं।

राज्य में व्याप्त अराजकता और एक केंद्रीय मंत्री पर टीएमसी कैडर के हमलों के कारण ये साक्षात्कार जूम और गॉगल मीट जैसे प्लेटफॉर्म के साथ-साथ फोन पर ऑनलाइन आयोजित किए गए थे। इस दौरान पीड़ितों के नाम और पहचान गुप्त रखी गई है। टीएमसी कैडर द्वारा संगठित हिंसा से उनके जीवन को गंभीर और लगातार खतरा बना हुआ है। 

टीम का मुख्य निष्कर्ष यह है कि बंगाल में हिंसा को केवल 'राजनीतिक हिंसा' मानने से मुख्य रूप से सामना की जाने वाली भयावहता को कम करना है। हिंदू समाज के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग जिन्होंने भाजपा का समर्थन या वोट किया। इस हिंसा में पीड़ितों की लिंग, जाति, धार्मिक और आर्थिक पहचान परिणाम के रूप में पहचानना होगा।

टीम का कहना कि राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ यह हिंसा एक जनसंहार की प्रकृति में थी। महिलाओं का सबसे भयानक तरीकों से दुष्कर्म किया गया, पीटा गया और उसका डराया गया। क्रूड बम से हमला किया गया, आदमियों की हत्या की गई और उनके राशन कार्ड को लूटा गया। टीम की मुख्य सिफारिश यह है कि बंगाल की महिलाओं और बच्चों की रक्षा के लिए कानून के सभी मौजूदा तंत्र चाहें वह सर्वोच्च न्यायालय हो या विभिन्न राष्ट्रीय आयोगों को अपना कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए। 


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