जब मिथुन चक्रवर्ती ने सारदा के करोड़ों रुपये लौटा दिये

 विवादों से है महागुरू का पुराना नाता

बंगाल में बन सकते हैं बीजेपी का चेहरा

नक्सल-वाम-टीएमसी के बाद अब बीजेपी की डगर पर

लोकनाथ तिवारी

कोलकाताः महागुरू और डिस्को डांसर के नाम से मशहूर बॉलीवुड के स्टार मिथुन चक्रवर्ती इस समय पश्चिम बंगाल चुनाव में छाये हुए हैं. बीजेपी के कुछ नेता तो उनको सीएम उम्मीदवार तक मान रहे हैं. लेकिन यह कम लोग ही जानते हैं कि मिथुन चक्रवर्ती का नाम भी सारदा घोटाले के आरोपियों में शामिल था. उन्होंने अपना समाचार पत्र खबरेर कागज को सारदा समूह को बिक्री किया था. यहीं नहीं वह सारदा समूह के ब्रांड एम्बेसडर भी थे. इस मामले में साल 2014 में सीबीआई जांच कराई गई. ईडी से पूछताछ में मिथुन ने कंपनी से मिले सारे पैसे लौटाने की बात कही थी. मिथुन को शारदा कंपनी की ओर से करीब 2 करोड़ रुपए की पेमेंट की गई थी. मिथुन ने टैक्स का पैसा छोड़कर बाकी पूरा अमाउंट ईडी के पास जमा करा दिया था. कहा जाता है कि इसी घोटाले की वजह से मिथुन ने टीएमसी से इस्तीफा दे दिया.

बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच मिथुन पिछले महीने संघ प्रमुख मोहन भागवत से मिले. इसके बाद कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में आयोजित सभा में पीएम नरेंद्र मोदी के मंच पर वह बीजेपी में औपचारिक रूप से शामिल हो गये हैं. मिथुन हमेशा से विवादों में रहे हैं. बहुत कम लोग जानते हैं कि अभिनेता बनने से पहले वो एक नक्सली नेता थे. वामदल के प्रति उनका झुकाव सर्वविदित है. लेकिन बाद में ममता बनर्जी से प्रभावित होकर टीएमसी में शामिल हो गए; और अब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मिलने के बाद बीजेपी  का दामन थाम लिया है. इस तरह उनका सियासी सफर अति वाम से वाममोर्चा फिर टीएमसी और अब बीजेपी तक हो गया है.

मिथुन चक्रवर्ती का जन्म 16 जून, 1950 को कोलकाता में हुआ था. उनका असली नाम गौरांग चक्रवर्ती है. मिथुन बॉलीवुड की उन शख्सियतों में शुमार हैं, जिनका कोई फिल्मी बैकग्राउंड रहा और ही इंडस्ट्री में कोई गॉडफादर, लेकिन फिर भी उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी मेहनत से एक अलग पहचान बनाई है. पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने से पहले मिथुन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) के सदस्य थे. वे 60 के दशक में स्थापित हुए नक्सली आंदोलन में सक्रिय थे. बंगाल में नक्सलियों पर पुलिस की सख्ती के कारण, उनको कई दिनों तक छिप कर रहना पड़ा. बहुत समय तक वो भगोड़ा बने रहे. इसी बीच परिवार के दबाव में आकर उन्होंने एफटीआईआई में दाखिला ले लिया. लेकिन कई बार हमारे पिछले कर्म आगे चलते हैं. मिथुन के साथ भी वही हुआ. फिल्म इंडस्ट्री में उनके वाम समर्थक होने की बात पहले ही पहुंच गई.

फिल्म इंडस्ट्री के लोग भी कलकत्ता में नक्सली आंदोलन में मिथुन की भागीदारी और नक्सलियों के नेता चारू मजूमदार के साथ उनके करीबी संबंधों के बारे में जानते थे. हालांकि पारिवारिक कारणों से मिथुन ने नक्सल आंदोलन को छोड़ दिया था, लेकिन नक्सली होने का लेबल उन पर सदा लगा रहा. शायद यही कारण है कि फिल्म निर्माता ख्वाजा अहमद अब्बास ने साल 1980 में उन्हें अपनी फिल्म ' नक्सलाइट' में लीड रोल की पेशकश कर दी. अपनी जिस पहचान को छिपाने के लिए मिथुन चक्रवर्ती फिल्मों में आए, वही उनके सामने आकर खड़ी हो गई. उन्होंने फिल्म में एक नक्सली के जीवन को निभाया.

मिथुन ने अपनी फिल्मी करियर की शुरुआत 1976 में आई फिल्म 'मृगया' से की थी इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसके बाद उन्होंने कई हिट फिल्में दी थी. इस दौरान उनका बंगाल से राजनीतिक कनेक्शन बना रहा. वो माकपा के नेता सुभाष चक्रवर्ती के बहुत करीबी थे. साल 1986 में कलकत्ता के साल्ट लेक स्टेडियम में बाढ़ पीड़ितों के लिए फंड जुटाने के लिए मिथुन ने एक शो किया था. होप-86 नामक इस शो में अमिताभ बच्चन और रेखा भी आए थे. मिथुन के कहने पर मुख्यमंत्री ज्योति बसु भी शरीक हुए थे.

साल 2014 की बात है. बंगाल की मशहूर अभिनेत्री सुचित्रा सेन का निधन हुआ था. कोलकाता के केवड़ातला श्मशान में अंतिम संस्कार की रस्में निभाई जा रही थीं. उस वक्त सियासी गलियारे में राज्यसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज थी. तभी ममता बनर्जी ने फैसला किया कि वो मिथुन को अपनी पार्टी से राज्यसभा भेजेंगी. तुरंत मिथुन को संदेश भेजा गया. उस वक्त वो श्मशान में ही मौजूद थे. इसके बाद मिथुन पहले टीएमसी के सदस्य बने, फिर उनको राज्यसभा सदस्य के रूप में संसद में भेज दिया गया. लेकिन शारदा चिटफंड घोटाले में नाम आने के बाद राज्यसभा से इस्तीफा देना पड़ा. वह करीब दो साल सांसद रहे. अब एकबार फिर वह सक्रिय राजनीति में उतर चुके हैं. उन्होंने कहा भी है कि बीजेपी उनको जो जिम्मेदारी सौंपेगी उसे निभाने के लिए तैयार हैं. अब देखना है बंगाल के घर-घर में पैठे मिथुन चुनावी दंगल में कितने असरदार साबित होते हैं.

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