केंद्र सरकार माल एवं सेवा कर (जीएसटी) राजस्व में कमी की भरपाई के लिए राज्यों को कर्ज दे रही है. इस बीच, वित्त सचिव अजय भूषण पांडेय का एक अहम बयान आया है. अजय भूषण पांडेय ने कहा कि केंद्र विपक्ष शासित राज्यों से प्रस्तावित ऋण योजना का विकल्प चुनने का आग्रह करता रहेगा. वहीं, राज्यों के कर्ज पर वित्त सचिव ने कहा कि उचित स्तर तक ही पैसे लिए जाएं, वर्ना ब्याज का बोझ बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा.
क्या कहा वित्त सचिव ने
अजय भूषण पांडेय ने कहा, ‘‘जहां तक कर्ज का सवाल है, किसी को भी महत्तम स्तर तक ही कर्ज लेना चाहिए. इसका फैसला अनुच्छेद 292 और 293 के दायरे में होना चाहिए. ’’ संविधान का अनुच्छेद 292 कहता है कि भारत सरकार संसद द्वारा समय-समय तय सीमा के तहत कर्ज जुटा सकती है. वहीं अनुच्छेद 293 कहता है कि राज्य सरकारें सिर्फ आंतरिक स्रोतों से कर्ज जुटा सकती हैं. पांडेय ने कहा कि कर्ज का स्तर उचित होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि यदि कर्ज देने में संतुलित रुख नहीं अपनाया जाता है, तो ब्याज का बोझ बढ़ेगा, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. पांडेय ने कहा, ‘‘यही वजह है कि एफआरबीएम के तहत तीन प्रतिशत की सीमा तय की गई है. कुछ शर्तों के साथ इसे पांच प्रतिशत किया जा सकता है. यदि इन सीमाओं के पीछे कोई वजह नहीं होती, तो ये सीमाएं नहीं होतीं. चूंकि संविधान के तहत संतुलित रुख अपनाने की जरूरत है, इस वजह से वहां अनुच्छेद 292-293 हैं.
केंद्र सरकार माल एवं सेवा कर (जीएसटी) राजस्व में कमी की भरपाई के लिए राज्यों को कर्ज दे रही है. इस बीच, वित्त सचिव अजय भूषण पांडेय का एक अहम बयान आया है. अजय भूषण पांडेय ने कहा कि केंद्र विपक्ष शासित राज्यों से प्रस्तावित ऋण योजना का विकल्प चुनने का आग्रह करता रहेगा. वहीं, राज्यों के कर्ज पर वित्त सचिव ने कहा कि उचित स्तर तक ही पैसे लिए जाएं, वर्ना ब्याज का बोझ बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा.
क्या कहा वित्त सचिव ने
अजय भूषण पांडेय ने कहा, ‘‘जहां तक कर्ज का सवाल है, किसी को भी महत्तम स्तर तक ही कर्ज लेना चाहिए. इसका फैसला अनुच्छेद 292 और 293 के दायरे में होना चाहिए. ’’ संविधान का अनुच्छेद 292 कहता है कि भारत सरकार संसद द्वारा समय-समय तय सीमा के तहत कर्ज जुटा सकती है. वहीं अनुच्छेद 293 कहता है कि राज्य सरकारें सिर्फ आंतरिक स्रोतों से कर्ज जुटा सकती हैं. पांडेय ने कहा कि कर्ज का स्तर उचित होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि यदि कर्ज देने में संतुलित रुख नहीं अपनाया जाता है, तो ब्याज का बोझ बढ़ेगा, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. पांडेय ने कहा, ‘‘यही वजह है कि एफआरबीएम के तहत तीन प्रतिशत की सीमा तय की गई है. कुछ शर्तों के साथ इसे पांच प्रतिशत किया जा सकता है. यदि इन सीमाओं के पीछे कोई वजह नहीं होती, तो ये सीमाएं नहीं होतीं. चूंकि संविधान के तहत संतुलित रुख अपनाने की जरूरत है, इस वजह से वहां अनुच्छेद 292-293 हैं.
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