किसान आंदोलन के बीच भारतीय जनता पार्टी पहली बार अपने दम पर पंजाब के सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है. 1996 में अकाली दल के साथ हाथ मिलाने के बाद दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ती आई हैं और अब 24 साल पुराना गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी एकला चलो की राह पर है. इस तरह से बीजेपी को पूरे पंजाब में अपना राजनीतिक आधार बढ़ाने का सियायी मौका नजर आ रहा है.
बीजेपी महासचिव तरूण चुग ने कहा कि उनकी पार्टी ने 2022 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव में सभी 117 सीटों पर लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है. चुग ने कहा कि जमीनी स्तर पर बीजेपी कार्यकर्ताओं को एकजुट करके राज्य के 23000 मतदान केंद्रों पर सांगठनिक ढांचा मजबूत बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि बीजेपी अध्यक्ष 19 नवंबर को पार्टी के दस जिला कार्यालयों का डिजिटल तरीके से उद्घाटन करेंगे.
बीजेपी को आधार बढ़ाने का मौका
पंजाब की कुल 117 सीटों में से बीजेपी अभी तक महज 23 सीटों पर चुनाव लड़ती रही है, लेकिन अकाली दल से अलग होने के बाद अब उसे पूरे राज्य में अपना राजनीतिक आधार बढ़ाने का सियासी मौका मिल गया है. हालांकि, ऐसा नहीं है कि बीजेपी कभी अकाली दल से अलग नहीं होना चाहती थी. ऐसी कोशिश बीजेपी की प्रदेश इकाई की तरफ से कई बार हुई, लेकिन हर बार पार्टी हाईकमान के सियासी दखल के चलते समझौते होते रहे. हालांकि, अब बीजेपी के पास पंजाब में एक बड़ा अवसर है कि सभी 117 सीटों पर राजनीतिक आधार बढ़ाया जा सके.
बीजेपी का लिटमस टेस्ट
बीजेपी 2022 में होने वाला विधानसभा चुनाव में अकेले उतरेगी, लेकिन उससे पहले निकाय चुनाव उसके लिए टिलमस टेस्ट माना जा रहा है. पंजाब में बीजेपी का शहरी मतदाताओं के बीच राजनीतिक आधार रहा है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में उसकी पकड़ नहीं रही है. अकाली दल से बीजेपी के अलग होने का पहला चुनाव इसी साल नवंबर-दिसंबर में होने वाले स्थानीय निकाय के हैं, जो कि पूरी तरह से शहरी और कस्बे के मतदाताओं के हाथ में होगा. ऐसे में बीजेपी को निकाय चुनाव में अकेले किस्मत आजमाना होगा और यह उसके लिए असली परीक्षा होगी.
पंजाब के हिंदू वोटों पर होगी नजर
पंजाब की सियासत में अब तक का इतिहास रहा है कि बीजेपी जब भी कमजोर हुई है, उसका लाभ कांग्रेस को मिला है. यही वजह कि अकाली और बीजेपी के गठबंधन टूटने से कांग्रेस को अपना सियासी फायदा नजर आ रहा है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों के राजनीतिक आधार हिंदू मतदाता है. पंजाब का मालवा इलाका हिंदू वोटों का गढ़ माना जाता है, जहां करीब 67 विधानसभा सीटें आती हैं. यहां बीजेपी के चलते अकाली दल को सियासी फायदा होता रहा है, क्योंकि बीजेपी के चलते हिंदू वोट बैंक अकाली दल के पक्ष में जाता रहा है.
हालांकि, अकाली दल से बीजेपी के गठबंधन होने के चलते हिंदू मतदाताओं की पसंद कांग्रेस बनी हुई है. ऐसे में अब इन वोटों पर सीधे कांग्रेस और बीजेपी के बीच लड़ाई होगी. पंजाब के पांच बार विधानसभा और पांच बार लोकसभा चुनाव अकाली दल और बीजेपी ने मिलकर लड़े. पंजाब की सत्ता में तीन बार गठबंधन काबिज हुआ था.
दरअसल, पंजाब में 1997 के दौरान जब बीजेपी को 18 सीटें मिलीं तो प्रदेश में सरकार अकाली और बीजेपी की बनी. 2002 में बीजेपी तीन सीटों पर सिमट गई और प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी. 2007 में 19 और 2012 में 12 सीटें बीजेपी को मिलीं तो प्रदेश में कांग्रेस सत्ता से दूर रही. 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखें बीजेपी को महज तीन सीटें आईं और सत्ता कांग्रेस को मिली. ऐसे में साफ जाहिर है कि हिंदू वोट के बंटने का फायदा कांग्रेस को होता है.
पंजाब में अकाली दल से वोटरों का मोह भंग हुआ है और पार्टी में दो फाड़ हो गए हैं. अकाली के कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. 2022 के विधानसभा चुनावों में अकाली दल को सत्ता तभी हासिल हो सकती है जब उसको 40 फीसदी से ऊपर वोट मिले. लेकिन बीजेपी के साथ नाता तोड़ने के बाद सुखबीर बादल के लिए बहुत कठिन लक्ष्य हो गया है. दूसरी तरफ बीजेपी के सामने पूरे प्रदेश में राजनीतिक ग्राफ बढ़ाने का मौका जरूर हाथ लग गया है. यही वजह है कि बीजेपी ने अब पंजाब में अपने सियासी आधार को बढ़ाने के लिए सूबे के सभी 117 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया है.
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