लॉकडाउन में झारखंड लौटे 75 फीसदी प्रवासी श्रमिकों को चाहिए मनरेगा में काम, 52.71 फीसदी के पास जॉब कार्ड नहीं


रांची : झारखंड सरकार की पहल पर लॉकडाउन के दौरान अपने घर लौटे लोगों में अब परदेस जाकर कमाने की ललक नहीं रही. ये लोग चाहते हैं कि इन्हें अपने ही राज्य में, अपने जिले में और हो सके, तो गांव में काम मिल जाये, ताकि अपनों के बीच रहें. करीब 7 लाख लोग अलग-अलग राज्यों से झारखंड लौटे हैं और इनमें से कम से कम 2,26,603 लोग ऐसे हैं, जो महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MNREGA) के तहत रोजगार चाहते हैं.

ग्रामीण विकास विभाग के ‘मिशन सक्षम’ के आंकड़ों से यह जानकारी मिली है. ‘मिशन सक्षम’ ने झारखंड आये कुल प्रवासी श्रमिकों में से 3,01,987 लोगों से बातचीत के आधार पर एक डाटाबेस तैयार किया है. इसके मुताबिक, इन 3,01,987 प्रवासी श्रमिकों में से 75.04 फीसदी यानी 2,26,603 लोग मनरेगा योजना के तहत काम करने के लिए तैयार हैं. ये लोग अन्य राज्यों में दिहाड़ी मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते थे.

झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग की सचिव आराधना पटनायक की मानें, तो विभाग की कई ऐसी योजनाएं हैं, जिसके जरिये ऐसे लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान महज एक-डेढ़ महीने के भीतर 3 लाख से ज्यादा लोगों के जॉब कार्ड बनाये गये हैं. इन्हें इनके घर के आसपास की ही योजना में काम दिया जायेगा.

श्रीमती पटनायक ने बताया कि ग्रामीण विकास विभाग के पास जो योजनाएं हैं, उसके जरिये इन लोगों की बेरोजगारी दूर की जायेगी. उन्होंने बताया कि ये जो आंकड़े जुटाये गये हैं, वह पलायन रोकने का बेहद कारगार हथियार साबित होगा. अब सरकार को मालूम हो चुका है कि राज्य में कितने लोगों को किस प्रकार के रोजगार की जरूरत है और कितने लोग उसके पास उपलब्ध हैं. इस आंकड़े को ध्यान में रखकर योजनाएं शुरू होंगी और लोगों को काम मिलेगा.

ग्रामीण विकास विभाग की सचिव ने बताया कि बड़े पैमाने पर लोगों के जॉब कार्ड बनाये गये हैं. बावजूद इसके, बाहर से आये जिन 3.02 लाख श्रमिकों का सर्वेक्षण किया गया है, उनमें से 52,71 फीसदी यानी 1,59,191 लोगों के पास जॉब कार्ड नहीं हैं. इनका भी जॉब कार्ड बनाया जायेगा और सरकार की कोशिश है कि इन सभी लोगों को उनके घर के आसपास ही काम मिल जाये.

उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण में पता चला है कि बहुत से लोग स्किल्ड लेबर (कुशल श्रमिक) हैं. ये लोग किसी न किसी उद्योग में ही काम कर सकते हैं. उनको भी काम दिलाने की व्यवस्था सरकार करेगी. ऐसे लोगों को ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं में समाहित नहीं किया जा सकेगा. ऐसे लोगों को राज्य में संचालित हो रहे उद्योगों से जोड़ा जायेगा, ताकि कंपनियों को कुशल कामगार मिल जायें और प्रदेश के लोगों को अपने घर में रोजगार.

उल्लेखनीय है कि 1 मई से 14 जून, 2020 के बीच 238 स्पेशल ट्रेनें अलग-अलग राज्यों से झारखंड पहुंचीं. इनमें 6.89 लाख से अधिक लोग आये. 6.89 लाख में 5,11,663 (5 लाख 11 हजार 663) लोगों को प्रवासी मजदूर के रूप में चिह्नित किया गया. इनमें से 3,01,987 लोगों के सर्वेक्षण में पता चला कि इनमें से 69.31 फीसदी यानी कुल 2,09,295 लोग कुशल श्रमिक हैं, जबकि 30.69 फीसदी यानी कुल 92,692 लोग अकुशल श्रमिक हैं.

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