केंद्रीय वित्तीय मंत्रालय के आर्थिक मामलों के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम का मानना है कि जब तक कोरोना की महामारी की स्थिति में सुधार नहीं होता है तब तक औद्योगिक विकास या आर्थिक प्रगति मुमकिन नहीं है। कोलकाता में मंगलवार को मर्चेंट्स चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की ओर से आयोजित वेबिनार में हिस्सा लेते हुए डॉ सुब्रमण्यम ने कहा कि मौजूदा स्थिति में मांग नहीं है।
उन्होंने कहा कि इसकी वजह ये है कि आम आदमी आज बचत की सोच रहा है। वह केवल जरूरी सामग्रियों व जरूरतों पर ही खर्च कर रहा है। उसे लगता है कि वक्त की जरूरत बचत करने की है। महामारी को लेकर अनिश्चितता के बादल जब तक छंट नहीं जाते तब तक औद्योगिक या आर्थिक सुधार मुमकिन नहीं है। यह हालात महामारी की हालत के सुधरने या वैक्सिन आने तक जारी रह सकते हैं। उन्होंने कहा कि जहां तक जाना है कि वैक्सिन के आने में दिसंबर तक का वक्त लग सकता है।
आयात को देना होगा बढ़ावा, तभी बढ़ेगा निर्यात
चीन से आयात बंद करने संबंधी सवाल पर डॉ सुब्रमण्यम का कहना था कि बगैर आयात को बढ़ावा दिए, निर्यात को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। चीन का विश्व के निर्यात के कुल बाजार के एक तिहाई हिस्से पर कब्जा है, जबकि भारत के पास बमुश्किल दो फीसदी है। आत्मनिर्भरता तब तक नहीं आ सकती जब तक हम अपनी काबलियत को नहीं बढ़ाएं। यह काबलियत हर नागरिक से लेकर हरेक एमएसएमई को बढ़ानी होगी। जहां तक चीन के साथ व्यापारिक संबंधों का सवाल है तो यह जरूर है कि सीमा पर चल रहे तनाव के चलते हमें चीन के साथ अपवाद कायम करके उनके निर्यात पर सख्ती दिखानी चाहिए लेकिन बतौर नीति, आयात को बंद करना सही नहीं होता क्योंकि उसके बिना निर्यात नहीं हो सकता। चीन इसलिए दुनियाभर में निर्यात कर सकता है, क्योंकि उसने आयात को भी खुली छूट दी है।
अन्य देशों की तुलना में भारत का आर्थिक पैकेज बेहतर
आर्थिक सुधार के भारतीय पैकेज के संबंध में उनका कहना था कि किसी भी अन्य देश के साथ तुलना की जाये तो भारतीय पैकेज बेहतर है। इंग्लैंड ने भले अपनी जीडीपी के 15 फीसद के बराबर का पैकेज दिया लेकिन वित्तीय उपाय महज 3.5 फीसद का था। बाकी का हिस्सा लिक्विडिटी सपोर्ट, ऋण आदि के लिए था। विदेशों में भारत की तरह जन वितरण प्रणाली नहीं है। इसलिए उनके पैकेज में मुख्यतः खाद्यान्न के लिए पैसे दिये गये। डॉ सुब्रमण्यम का कहना था कि एमएसएमई सेक्टर को मिलने वाले ऋण की मात्रा इतनी अधिक होगी कि पिछले चार-पांच वर्षों के कुल कर्ज को मिला देने से भी ये अधिक होगा।
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