चादर खींचता मासूम, ‘ऐ माय उठ न...’ कोरोना काल में गरीबों ने कैसे सितम सहे, पूरी कहानी बयां करने वाली तस्वीर


मुजफ्फरपुरः कोरोना काल में देश के सामने विपदा की एक से बढ़कर एक हृदय विदारक तस्वीर सामने आ चुकी है। इस बार बिहार के मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन की एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जो कोरोना वायरस को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन की पूरी कहानी बयां कर रही है। मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन के एक वीडियो में दिख रहा है कि एक महिला सो रही है, उसका एक-डेढ़ साल का बेटा मां की चादर को खींच रहा है, मानो वह उसे जगाने की कोशिश कर रहा है। इस बच्चे को नहीं मालूम कि उसकी मां अब हमेशा के लिये सो गई है। अबोध मासूम को मालूम नहीं कि हर दिन मां जिस चादर को ओढ़ कर सोती है वह अब उसका कफ़न बन चुका है।

चादर बार-बार खींचने पर भी मां कोई हरकत नहीं करती है। अगर बच्चे को होश होता तो शायद वह समझ पाता कि इतना तंग करने पर भी उसे डांट क्यों नहीं रही, लेकिन वह तो बिल्कुल ही अबोध है। महिला के पति ने बताया कि ट्रेन में भीषण गर्मी में गुजरात से शुरू हुए 4 दिन के लंबे सफर ने मेरी पत्नी की जान ले ली, अब इसे लेकर अपने घर कटिहार कैसे जाऊंगा।

इस महिला की ही तरह पिछले दो दिनों में सिर्फ बिहार में ट्रेन में 5 लोग दम तोड़ चुके हैं। भागलपुर, बरौनी और अररिया स्टेशन पर एक-एक व्यक्ति की मौत भी इसी तरह हुई। मुजफ्फरपुर स्टेशन पर डेढ़ साल के बेटे का शव गोद मे लिए पिता ने बताया कि ट्रेन में 4 दिन तक पत्नी को खाना नहीं मिला तो दूध नहीं उतरा, बच्चा भी भूखा रह गया, ऊपर से भीषण गर्मी। रास्ते में ही तबियत बिगड़ी और यहां आते आते मौत हो गयी। इसी तरह मुंबई से सीतामढ़ी आ रहे एक परिवार में भी एक बच्चे की मौत कानपुर में हो गयी।

जबकि पश्चिमी चंपारण का रहने वाला मृत बच्चा बिहार के बाहर से ट्रेन से पटना पहुंच कर ट्रेन से मुजफ्फरपुर पहुंचा था। इससे जंक्शन पर अफरातफरी मच गई। प्रवासियों में नाराजगी हो गई। इसकी सूचना पर रेल डीएसपी रामकांत उपाध्याय और जीआरपी प्रभारी नंद किशोर सिंह पहुंचे दोनों के शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।

रेल डीएसपी ने बताया कि महिला अहमदाबाद से मधुबनी के लिए अपने रिश्तेदार के साथ आ रही थी। कहीं रास्ते में ही उसकी मौत हो गई। उसके शव को जंक्शन पर उतारा गया। परिजन साथ में थे। उन लोगों का कहना था कि यह पहले से ही बीमार थी। मानसिक रूप से भी बीमार थी। वहीं, पटना से सीतामढ़ी जाने वाली पैसेजर ट्रेन से आये बेतिया के परिवार के साथ आए एक साढ़े तीन साल के बच्चे की मौत हो गई। उसका भी शव जंक्शन पर उतारा गया। शव को परिजन को सौंप दिया गया है। साथ ही एंबुलेंस से उसे बेतिया भेज दिया गया है।

लोगों का कहना है कि इन सबकी मौत कोरोना से होती तो नियति को मानकर संतोष किया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं है। हालांकि मौत की वजह आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं बताई जा रही, लेकिन साथ सफर कर रहे लोगों से बातचीत से ऐसा लगता है कि भीषण गर्मी में खाली पेट लंबा सफर ही मौत का कारण बन रहा है।

रेलवे की जिम्मेदारी सिर्फ पटरी पर ट्रेन दौड़ाना भर नहीं है। शुरू में यदि रेलवे की तरफ से खाने पीने का इंतजाम हो रहा था तो अब क्या हो गया। खाना देने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। नहीं खिला सकते तो कम से कम रास्ते मे कुछ स्टेशनों पर ट्रेन रोककर कुछ वेंडर्स को या एनजीओ को स्टाल लगाने की इजाजत ही दे दें। हर कोई रिस्क ले ही रहा है तो थोड़ा और ले लें। कई ट्रेन में पंखा काम नहीं कर रहा, पानी तक की व्यवस्था नहीं है।

फिर ये भी देखना चाहिये कि मुंबई और गुजरात से बिहार आने में 4 से 5 दिन क्यों लग जा रहा है। रूट जरूरत से ज्यादा लंबा कर अधिक लोगों को पहुंचाने का क्या मतलब जब ये जानलेवा ही साबित होने लगे। आखिर 5 दिनों तक भीषण गर्मी में भूखे प्यासे कोई कैसे सफर कर सकता है। वहीं रेलमंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि कोई भी ट्रेन रास्ता नहीं भटक रही है। लंबा रूट और रूट पर ज्यादा ट्रेनें होने के चलते ट्रेनें देर से पहुंच रही हैं।

मुंबई में अभी भी स्टेशनों पर भारी भीड़ है, रेलवे ने ध्यान नही दिया तो ऐसी घटनाएं और भी हो सकती हैं। लोगों को चाहिये कि वे अपने साथ खाने पीने की चीजें काफी मात्रा में लेकर निकलें। बेहतर तो ये होगा कि इतनी गर्मी में फिलहाल वो अपनी यात्रा ही रद्द कर दें। लेकिन मजदूर अभी किसी की सुनने के मूड में है भी नही। उसे तो हर हाल में घर जाना है। पता नहीं आगे और क्या क्या देखने को मिलेगा।

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