झारखंड विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) को हार मिली है. झारखंड मुक्ति मोर्चा(जेएमएम) की अगुवाई वाली गठबंधन को बहुमत से जीत मिली है. भारतीय जनता पार्टी राज्य की सत्ता से बेदखल होने के बाद अब अपनी हार पर मंथन करेगी.
भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) झारखंड में करारी हार के कारणों की समीक्षा और आत्ममंथन करेगी. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व झारखंड की हार को लेकर प्रदेश नेतृत्व के साथ बैठक भी करेगा. बीजेपी आलाकमान का मानना है कि इन 5 कारणों की वजह से पार्टी को हार मिली है.
1. गठबंधन टूटने का असर
पार्टी का मानना है कि आजसू के साथ अन्य गठबंधन के साथी दलों के साथ समझौता न हो पाना चुनाव हारने की बड़ी वजह है. सुदेश महतो की पार्टी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी रही है लेकिन इस बार दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. वोट बंटने की वजह से पार्टी को बड़े स्तर पर नुकसान हो गया.
2. पार्टी और सरकार के बीच सामंजस्य नहीं
झारखंड में बीजेपी और सरकार के बीच बेहतर सामंजस्य नहीं बैठ सका, जिसकी वजह से पार्टी को हार मिली. प्रदेश नेतृत्व रघुवर दास के नेतृत्व में हुए कामों को जनता तक पहुंचाने में असफल रहा. पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा गया, राष्ट्रीय मुद्दों की जगह प्रादेशिक मुद्दों की अनदेखी की गई. पार्टी के नेताओं की बातें सरकार तक नहीं पहुंच सकीं.
3. भारी पड़ी विधायकों की नाराजगी
पार्टी का मानना है कि विधायकों की मुख्यमंत्री और अधिकारियों से नाराजगी भी बीजेपी हार का बड़ा कारण रहा. विधायक और मंत्री मुख्मंत्री रघुवर दास से खुश नजर नहीं आए. अधिकारियों का नियंत्रण भी मुख्यमंत्री के हाथों में ही रहा यह बात विधायकों को नागवार गुजरी. इससे स्थानीय मुद्दे भी प्रभावित हुए. हार की एक बड़ी वजह यह भी मानी जा रही है.
4. सरयू राय की बगावत से झटका
बीजेपी को इस बात का भी एहसास हो गया है कि अगर सरयू राय जैसे पार्टी के दिग्गज नेताओं को नजरअंदाज नहीं किया गया होता तो शायद नतीजे कुछ और होते. रघुवर दास को शिकस्त देने वाले सरयू राय उसूलों की राजनीति के लिए जाने जाते हैं. रघुवर दास से बगावत करने के बाद वे जमशेदपुर पूर्व सीट से उतरे और सीएम को मात दी. खास बात ये है कि रघुवर दास 1995 से लगातार इस सीट से जीतते आ रहे थे. इस बार वे छठी बार इस सीट से भाग्य आजमा रहे थे.
5. आदिवासी बनाम गैर-आदिवासी का मुद्दा
आदिवासी भी सरकार से खुश नजर नहीं आए. आदिवासियों की जमीन के अधिकार को लेकर नाराजगी और सच्चाई उन तक नहीं पहुंच सकी. इसके साथ ही आदिवासी बनाम गैर-आदिवासी का मुद्दा भी हावी रहा. दरअसल झारखंड में आदिवासी वोट हमेशा से ही निर्णायक भूमिका में रहे हैं. रघुवर दास गैर आदिवासी चेहरा रहे हैं. जबकि दूसरी ओर जेएमएम के हेमंत सोरेन आदिवासी समुदाय से ही आते हैं. हेमंत के पिता शिबू सोरेन भी झारखंड के बड़े नेता हैं. यह भी हार की एक बड़ी वजह है.
25 सीटों पर सिमटी बीजेपी
भारतीय जनता पार्टी अब सरकार बनाने से बेहद दूर हो चुकी है. बीजेपी महज 25 सीटों पर सिमट गई है. पार्टी को मिली करारी हार न केवल झारंखड बीजेपी को बल्कि केंद्रीय राजनीति के लिए झटका है. बीेजेपी ने झारखंड की चुनावी रैलियों में अपने केंद्रीय नेतृत्व के साथ-साथ पूरे मंत्रिमंडल को उतार दिया था लेकिन पार्टी को बड़ा झटका लगा.
झारखंड में बीजेपी के लिए वोट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही पड़े. रघुवर दास से प्रदेश की जनता खुश नजर नहीं आई. शायद यही वजह है कि रघुवर दास अपनी विधानसभा सीट तक बचा पाने में कामयाब नहीं हो सके.