चिराग पासवान बने LJP अध्यक्ष, पिता से ली पार्टी की कमान


लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे चिराग पासवान के हाथों में सौंप दिया है. मंगलवार को एलजेपी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की दिल्ली बैठक में दलित सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हाजीपुर सांसद पशुपति कुमार पारस ने चिराग पासवान को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसे पूर्ण समर्थन से पारित कर दिया गया है.

एलजेपी की राष्ट्रीय कार्यमिति की बैठक आज यानी मंगलावर को रामविलास पासवान के आवास 12 जनपथ में हुई. बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय कमेटी के सभी पदाधिकारी के साथ सभी प्रदेशों के अध्यक्ष भाग लिया. इसमें मुख्यरूप से पार्टी की कमान युवा हाथों में चिराग पासवान को दिए जाने का प्रस्ताव रखा गया, जिसे एकमत से पारित कर दिया गया. अब एलजेपी के अध्यक्ष चिराग पासवान बन गए हैं.

पूरी तरह से युवाओं के हाथ में कमान

चिराग पासवान एलजेपी के अध्यक्ष बनाने जाने के बाद पार्टी पूरी तरह से युवा हाथों मे है.. बिहार प्रदेश की कमान पहले ही नवनिर्वाचित सांसद व पूर्व सांसद स्व. रामचन्द्र पासवान के बेटे प्रिंस राज को सौंपी जा चुकी है. ऐसे में चिराग और प्रिंस की जोड़ी क्या सियासी गुल खिलाती है ये तो वक्त ही बताएगा.

जेपी आंदोलन से मिली रामविलास को पहचान

बाबू जगजीवन राम के बाद बिहार में दलित नेता के तौर पर पहचान बनाने के लिए उन्होंने 2000 में अपनी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना की. हालांकि रामविलास पासवान ने राजनीतिक सफर की शुरुआत 1960 के दशक में बिहार विधानसभा के सदस्य के तौर की और जेपी आंदोलन से उन्हें राष्ट्रीय पहचान मिली. आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनावों में वह हाजीपुर सीट पर चार लाख मतों के रिकार्ड अंतर से जीत हासिल कर सुर्खियों में आए. इसके बाद वह जनता दल से जुड़ गए.

यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों में केंद्रीय मंत्री

1989 में जीत के बाद वह वीपी सिंह की कैबिनेट में पहली बार शामिल किए गए और उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया. एक दशक के भीतर ही वह एचडी देवगौडा और आईके गुजराल की सरकारों में रेल मंत्री बने. 1990 के दशक में जिस 'जनता दल' धड़े से पासवान जुड़े थे, उसने बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का साथ दिया और वह संचार मंत्री बनाए गए और बाद में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में वह कोयला मंत्री बने. इसके बाद यूपीए सरकार में भी मंत्री रहे और मौजूदा समय में मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री है. अब वो अपनी राजनीतिक विरासत बेटे चिराग पासवान को सौंपने की तैयारी में हैं.

मुंबई जाने के लिए चिराग ने बीच में छोड़ी पढ़ाई

बता दें कि राम विलास पासवान की दूसरी पत्नी रीना पासवान के बेटे चिराग का जन्म 31 अक्टूबर 1982 को बिहार के खगड़िया में हुआ. चिराग ने नई दिल्ली के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग से 10वीं और 12वीं की पढ़ाई की. इसके बाद वह बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी से कम्प्यूटर साइंस में बीटेक करने पहुंचे, लेकिन यहां उन्होंने तीसरे सेमेस्टर तक की ही पढ़ाई की.

2011 में किया था बॉलीवुड में डेब्यू

बीटेक की पढ़ाई बीच में छोड़ने के बाद चिराग पासवान मुंबई निकल गए. यहां वह फिल्मों में अपना करिअर बनाना चाहते थे. 2011 में उनकी फिल्म आई 'मिले न मिले हम'. तनवीर खान की इस फिल्म में चिराग के अलावा कंगना रनौत, नीरु बाजवा, सागरिका घाटगे थे. इस फिल्म में चिराग का श्वेता तिवारी के साथ एक आइटम नंबर भी था.

पिता की मुश्किल की थी आसान

बॉलीवुड से लौटकर चिराग अपने पिता राम विलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी का काम देखने लगे. 2014 का चुनाव सिर पर था. राम विलास पासवान फैसला नहीं कर पा रहे थे कि वह यूपीए के साथ जाएं या एनडीए के साथ. कहते हैं कि चिराग पासवान ने एनडीए का हिस्सा बनने की सलाह दी. एनडीए से गठबंधन के बाद लोजपा बिहार की 7 सीटों पर लड़ी. खुद चिराग जमुई लोकसभा सीट से लड़े. लोजपा 6 सीटों पर जीतने में कामयाब रही. इसमें जमुई की भी सीट थी, जहां से चुनाव मैदान में चिराग थे. इस तरह राम विलास पासवान के 'चिराग' का सितारा चमक गया. इसके बाद 2019 में वह फिर जमुई से दोबारा सांसद चुने गए हैं.
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