महाराष्ट्र के राजनैतिक घमासान की धमक सुप्रीम कोर्ट में दी सुनाई, दोनों तरफ से हुई गरमागरम बहस


महाराष्ट्र में दो दिन से चल रहे राजनैतिक घमासान की धमक रविवार को सुप्रीम कोर्ट में भी सुनाई दी. दोनों ओर के वकीलों में गरमागरम बहस हुई. एक दूसरे की दलीलें काटने वाली बहस के बीच कोर्ट ने भी टिप्पणियां की. कोर्ट ने कहा कि यहां मांग की कोई सीमा नहीं है। यहां कोई भी कुछ भी मांग कर सकता है.

महाराष्ट्र के राज्यपाल की कार्यवाही पर गंभीर सवाल उठे

शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने महाराष्ट्र के राज्यपाल की कार्यवाही पर गंभीर सवाल उठाए. सिब्बल ने कहा कि शुक्रवार को शाम सात बजे शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन ने घोषित किया कि वह सरकार बनाने जा रहे हैं और इसके बाद रातोरात सब हो गया. सुबह 5.17 पर राज्य से राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया और सुबह 8 बजे राज्यपाल ने देवेन्द्र फडनवीज को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी.

सिब्बल ने राज्यपाल की भूमिका पर उठाए सवाल

उन्होंने कहा कि ये सही है कि सरकार गठन के लिए आमंत्रित करने में राज्यपाल का विवेकाधिकार रहता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि किस वक्त राज्यपाल ने संस्तुति की और किस समय कैबिनेट ने उस पर विचार किया और कैसे राष्ट्रपति शासन हटा. इसके अलावा कब राज्यपाल ने फडनवीज को सरकार बनाने का न्योता दिया और फडनवीज ने सरकार बनाने का जो दावा किया उसकी राज्यपाल ने कब जांच की. ये कोई भी बात आम जनता के सामने नहीं है। ये सारी चीजें पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाती हैं.

सिब्बल ने कहा- ऐसा लगता है कि राज्यपाल किसी के निर्देश पर चल रहे हों

ऐसा लगता है जैसे कि राज्यपाल किसी के निर्देश पर चल रहे हों. सिब्बल ने कहा कि हमारी मांग है कि कोर्ट रविवार को ही सदन में बहुमत साबित करने का आदेश दे.

सिंघवी ने कहा- महाराष्ट्र में हुई लोकतंत्र की हत्या

सिंघवी ने कहा कि जो हुआ वह एक तरह से लोकतंत्र की हत्या करने के समान है. एनसीपी के 54 में से 41 विधायकों ने हस्ताक्षर करके कहा है कि वह एनसीपी के साथ हैं। अजीत पवार ने हाजिरी के लिए दिये गए विधायकों के हस्ताक्षरों को राज्यपाल के पास समर्थन के तौर पर पेश किया है. सिंघवी ने कहा कि एनसीपी के 41 विधायकों के हस्ताक्षर वाला यह पत्र उनकी ओर से राज्यपाल को भी दिया गया है.

कोर्ट 24 घंटे के अंदर बहुमत साबित करने का आदेश दे

दोनों वकीलों ने सदन मे बहुमत साबित करने के बारे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश का जगदंबिका पाल का मामला और कर्नाटक के मामले में दिये गए पूर्व आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में भी कोर्ट 24 घंटे के अंदर बहुमत साबित करने का आदेश दे. उन फैसलों में कोर्ट ने न सिर्फ बहुमत साबित करने बल्कि कैसे होगा यह भी आदेश दिया था.

राज्यपाल की कार्यवाही को नहीं दी जा सकती चुनौती- मुकुल रोहतगी

कुछ भाजपा विधायकों और दो निर्दलीय विधायकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने याचिका का जोरदार विरोध करते हुए कहा कि अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है. उन्हें संविधान में छूट मिली है. यह भी कानून का तय सिद्धांत है कि प्रधानमंत्री नियुक्त करने में राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री नियुक्त करने में राज्यपाल अपने विवेकाधिकार से काम करते हैं. उस समय मंत्रिपरिषद नहीं होती और वे किसी की सलाह से बंधे नहीं होते.

रोहतगी ने कहा- राज्यपाल को कोई आदेश नहीं दिया जा सकता

रोहतगी ने कहा कि याचिका में जिस तरह की मांग की गई है वह स्वीकार किये जाने लायक नहीं है. याचिका में मांग है कि देवेन्द्र फडनवीज को सरकार बनाने का निमंत्रण देने का राज्यपाल का आदेश रद किया जाए. दूसरी मांग है कि कोर्ट राज्यपाल को आदेश दे कि वह इनके गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करे. कोर्ट राज्यपाल को कैसे आदेश दे सकता है। राज्यपाल को कोई आदेश नहीं दिया जा सकता.

राजनैतिक दल नहीं दाखिल कर सकते जनहित याचिका

मुकुल रोहतगी और सालिसिटर जनरल तुषार मेहता दोनों ही ने शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की ओर से संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल की गई याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि राजनैतिक दल जनहित याचिका कैसे दाखिल कर सकते हैं। इस याचिका पर सुनवाई नहीं की जा सकती.

ऐसी क्या अर्जेन्सी कि रविवार को हुई सुनवाई

मुकुल रोहतगी ने छुट्टी वाले दिन रविवार को मामले पर सुनवाई किये जाने पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार गठित हो चुकी है. इन लोगों के पास कोई दस्तावेज भी नहीं हैं ऐसे में इतनी क्या जल्दी थी कि तुरंत याचिका दाखिल कर दी जाए और रविवार को ही सुनवाई की जाए.

न्यायाधीशों ने कहा- मुख्य न्यायाधीश ने गठित की है पीठ

इस दलील पर पीठ के न्यायाधीशों ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश ने पीठ गठित की है उनके आगे केस लगा है इसलिए वे सुन रहें हैं. रोहतगी ने कहा कि याचिका पर जवाब देने के लिए दो तीन दिन का समय दिया जाए और चार पांच दिन बाद मामले पर सुनवाई हो. इस तरह सबका सन्डे खराब करने का क्या मतलब है. रविवार को सुनवाई के मसले पर शुरुआत में ही कपिल सिब्बल ने कोर्ट से छुट्टी वाले दिन सुनवाई के लिए परेशान करने पर माफी मांगी थी.

रोहतगी के जवाब में जज ने कहा- यहां मांग की कोई सीमा नहीं है

सुनवाई के दौरान जब मुकुल रोहतगी ने राज्यपाल को शिवसेना और गठबंधन को आमंत्रित किये जाने का राज्यपाल को निर्देश देने की याचिका में की गई मांग पर आपत्ति उठाई और कहा कि यह मांग कैसे की जा सकती है. कोर्ट राज्यपाल को किसी दल को सरकार बनाने के लिए निमंत्रण देने का आदेश कैसे दे सकता है. इस पर टिप्पणी करते हुए पीठ के न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि स्काई इज द लिमिट (यहां मांग की कोई सीमा नहीं है). कल को कोई याचिका दाखिल कर यह भी कह सकता है कि उसे प्रधानमंत्री नियुक्त करने का आदेश दे दो.

क्या ये आदेश हो सकता है कि दो साल में सारे मुकदमे निपटा दे कोर्ट

मुकुल रोहतगी ने कोर्ट द्वारा विधानसभा को आदेश देने की मांग का विरोध करते हुए कहा कि संविधान में सबके काम बंटे हुए हैं. कोई किसी दूसरे के काम में दखल नहीं देता। कोर्ट को भी विधानसभा को निर्देश नहीं देना चाहिए. क्या विधानसभा आदेश दे सकती है कि सुप्रीम कोर्ट दो साल में सारे मुकदमे निपटा दे. इस दलील पर पीठ ने टिप्पणी मे कहा कि ऐसी भी दलीलें हम सुनते हैं.

क्या हैं याचिका की मांगें?

-कोर्ट देवेंद्र फड़नवीस को सरकार बनाने का न्योता देने का राज्यपाल का आदेश असंवैधानिक घोषित कर रद करे.

- राज्यपाल को निर्देश दिया जाए कि वह शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के गठबंधन को सरकार बनाने का निमंत्रण दें. उद्धव के नेतृत्व में इस गठबंधन में 144 से ज्यादा विधायकों के होने का दावा किया गया है.

- याचिका में अंतरिम मांग की गई है कि महाराष्ट्र में 24 घंटे के अंदर सदन में बहुमत साबित करने का आदेश दिया जाए.
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