जानिए- वह 'कौन' है जिससे परेशान हैं केजरीवाल समेत पूरी दिल्ली, डरते थे मुगल व अंग्रेज भी


तो लोग अब बहुत साफ सफाई रखने लगे हैं और जागरूकता के कैंपेन भी खूब चला जा रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री हर सप्ताह अपने घर आंगन में सफाई कर डेंगू के मच्छर पनपने से बचने की अपील करते हैं. फिर भी दिल्ली मच्छरों से बेहद डरती है, लेकिन यह सब आज ही नहीं हो रहा मच्छरों के प्रकोप से तो मुगल और अंग्रेज भी भयभीत हो गए थे.

मुगल मच्छरों को भगाने के लिए अपनाते थे कई तरीके

इतिहासकार डॉ. फैजान अहमद कहते हैं कि लालकिला के ठीक पीछे यमुना नदी बहती थी. वहीं एक तरफ पूरा रिज एरिया था. ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि मच्छरों से परेशानी तो होती ही थी, लेकिन मच्छरों से परेशानी पर विशेष रूप से नहीं लिखा गया है. कुछ किताबों में इसका जिक्र मिलता है. मसलन, आइने अकबरी, अकबरनामा में लिखा गया है कि मच्छरों को भगाने की पूरी कोशिश की जाती थी. दवा, अर्क का छिड़काव किया जाता था. उस समय की परशियन किताबों में मच्छरों के भगाने के नुस्खे भी लिखे मिलते हैं. जैसे फूलों से जर्द बनाते थे, उसी तरह फूलों से मच्छर भगाने की चीजें भी इस्तेमाल की जाती थीं. दवाकुश बनाते थे. यही नहीं महलों में धुआं भी किया जाता था. बाकि हकीम थे ही जो इलाज करते थे.

अब बात अंग्रेजों की करें तो जब 1857 में अंग्रेजों ने लालकिला पर कब्जा जमाया तो अंदर का नजारा देखकर वे परेशान हो गए. अंदर पानी आपूर्ति की नालियां और बाग थे. अंग्रेजों ने इन्हें मच्छर पनपने की दुरुस्त जगह मान बहुत बदलाव किया. इतना ही नहीं उन्होंने बहुत से भवन तोड़कर नए बनवाए.

बकौल आरवी स्मिथ दिल्ली के भारत की आधिकारिक राजधानी बनने की घोषणा के बाद जब 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार हुआ जिसमें हजारों लोगों की भीड़ थी. तब ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम ने घोषणा की थी कि-हमें भारत की जनता को यह बताते हुए बेहद हर्ष हो रहा है कि सरकार और उसके मंत्रियों की सलाह पर देश को बेहतर ढंग से प्रशासित करने के लिए ब्रितानिया सरकार भारत की राजधानी को कलकत्ता (कोलकाता) से दिल्ली स्थानांतरित करती है. इस घोषणा के साथ ही दिल्ली इतिहास के एक अन्य अध्याय की तरफ अग्रसर हो गई. हालांकि इस फैसले की आलोचना भी हुई थी.

द इंग्लिशमैन अखबार ने लगभग चेताते हुए लिखा कि जो दिल्ली जा रहे हैं वो दलदल, गर्मी, मच्छर, फोड़े, फुंसी, सांप, कीड़े से परेशान हो जाएंगे. आजादी से पहले लोग किस तरह मच्छरों से बचते थे. इसकी एक बानगी हर्बर्ट चाल्र्स फांसवे की किताब 'दिल्ली: पास्ट एंड प्रजेंट' में मिलती है. जिसमें वो आजादी के पहले दिल्लीवालों के रहन सहन को बड़ी संजीदगी से बयां करते हैं. वो लिखते हैं कि लोग पिकनिक मनाना पसंद करते थे. महरौली के आम के बागान पिकनिक के लिए मुफीद थे. वहां रात भी गुजारते थे लोग। वह ²श्य बड़ा अद्भुत था. करीब एक साथ 20 बेड लगते थे। सभी बेड पर मच्छरदानी लगती थी.

आर्किटेक्ट एके जैन कहते हैं कि कोलकाता से देश की राजधानी दिल्ली को बनाने के एलान के चार दिन बाद यानी 15 दिसंबर,1911 को जॉर्ज पंचम ने नई दिल्ली की नींव का पत्थर किंग्सवे कैंप, कोरेनेशन पार्क के पास में रखा. पहले भावी नई दिल्ली में वाइसराय आवास (अब राष्ट्रपति भवन) संसद भवन, साऊथ ब्लॉक, नार्थ ब्लॉक, कमांडर-इन चीफ आवास (तीन मूर्ति भवन) वगैरह का डिजाइन तैयार करने के लिए हेनरी वॉगन लैंकस्टर का नाम भी चल रहा था एडविन लुटियन के साथ, पर अंत में लुटियन को नई दिल्ली का मुख्य आर्किटेक्ट का पद सौंपा गया. एक कमेटी का गठन हुआ सन 1913 में. इसका नाम था 'दिल्ली टाउन प्लेनिंग कमेटी'. इसके प्रभारी एडविन लुटियन थे। लुटियन ने कोरेनेशन पार्क को भव्य राजधानी के लिहाज से खारिज कर दिया. उसने कहा कि यहां जगह कम है। मच्छर भी ज्यादा हैं. हालांकि यहां सचिवालय वगैरह बना दिए गए थे. इन्हीं भवन में वर्तमान दिल्ली विधानसभा है. बाद में लुटियन को रायसीना हिल्स पसंद आई. आजादी के बाद भी मच्छरों से बचने के लिए जागरूकता की अलख जगाई जाती रही.

Previous Post Next Post