राष्ट्रवाद का गढ़ रहे बड़ाबाजार में ऐसे हो रहा देशद्रोही कारोबार


आतंकविरोधी नोटबंदी पर पानी फेर रहे हैं यहां के जयचंदी

ओम प्रकाश सिंह
 कोलकाता : 200 सालों तक की गुलामी के दौर में बंगाल का बड़ाबाजार क्रांतिकारियों की शरण स्थली रहा है. यहां के पोर्ट इलाके से लेकर पोस्ता, मौजूदा हावड़ा ब्रिज का साइट हो या मालापाड़ा व भूतनाथ का गढ़, इन सभी इलाकों में बड़े-बड़े गोदाम होने की वजह से अंग्रेजों से लोहा ले रहे क्रांतिकारियों ने यहां छुपकर भारत को आजादी दिलाने का अमिट इतिहास रचा था लेकिन अब यहीं बड़ाबाजार का इलाका नोटबंदी के दौर में देश को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए हरेक हथकंडा अपना रहा है. व्यावसायिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए यहां ब्लैक मनी को व्हाइट करने से लेकर अवैध सोने व चांदी के खरीदारी व बिक्री भी धड़ल्ले से हो रही है. आश्‍चर्य तो इस बात का है कि देर रात दुकानों व दफ्तरों में घूम-धूम कर काले कारोबारियों के बेशर्म एजेंट यह कहते फिरते हैं कि कुछ कमिशन पर करोड़ो का कालाधन सफेद करवा देंगे पर यहां के अधिकतर लोग पुलिस को सूचित किये बिना इन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं. 
अभी कुछ ही दिनों पहले यह खुलासा हुआ था कि यहां के टैक्स कंसलटेंट संजय जैन ने यहां के सैकड़ों काले कारोबारियों के काले धन को बड़ाबाजार की एक्सिस बैंक में जाली खाता खुलवाकर सफेद करवा दिया था. वो तो सीधे तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय से निर्देशित जांच एजेंसियां सतर्क थी कि इन्हें दबोचा जा सका. इसके अलावा पूरे देश के काले कारोबारियों की नैया पार करने वाले पारसमल लोढ़ा के हावाला कारोबार का मुख्य केंद्र भी बड़ाबाजार ही था. इसके साथ ही नोटबंदी की घोषणा होते ही यहां के कारोबारियों ने 500 के पुराने नोट के बदले 400 व 1000 के बदले 800 रुपये देने शुरू कर दिये थे. कुछ दिनों तक ब्लैकमनी का यह गोरखधंधा भी धड़ल्ले से चला लेकिन जब ऑडिट रिपोर्ट को सौंपने की बात आयी और जब इनकम टैक्स ने इन्हें नोटबंदी के बाद जमा करवाये गये रुपयों की संख्या को फाइलिंग रिपोर्ट से मैच किया तो पता चला कि दोनों में काफी भिन्नता है. ऐसे में जब जांच होने पर जेल जाने का एहसास हुआ तो अब यहां के कुछ कारोबारियों ने अलग ही देशद्रोही खेल शुरू कर दिया है. सीमापार आतंकवाद व जालसाजी पर रोक लगाने के लिए केंद्र की नोटबंदी योजना पर पानी फेर रहे इन जयचंदियों की करतूतें अब राज्य के लोगों को शर्मिंदा कर रही हैं.
दरअसल पूरा देश अवैध हो चुके 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों से पीछा छुड़ाने के लिए बैंकों के आगे लाइन लगाकर खड़ा है। ऐसे में इन पुराने नोटों से जुड़ी कोलाकाता की कहानी हैरान कर देनेवाली है। पश्चिम बंगाल की राजधानी का ट्रेडिंग हब बड़ा बाजार में इन पुराने नोटों को इनकी कीमत से ज्यादा पैसे देकर खरीदा जा रहा है। यहां 500 रुपये के पुराने नोट के बदले 550 रुपये मिल रहे ह््ैं। इसी तरह 1000 रुपये के पुराने नोट 1100 रुपये में बिक रहे ह््ैं।
खबर के मुताबिक मंगलवार को बड़ा बाजार के दुकानों में तीन लोगों को नए नोटों के साथ देखा गया। इन लोगों को एक महीने पहले भी यहां देखा गया था, लेकिन तब ये 1000 रुपये के पुराने नोटों को 800 या 850 रुपये में खपा रहे थे। लेकिन, अचानक उलटी हुई इनकी रणनीति आम लोगों के पल्ले नहीं पड़ रही। हालांकि, इस सारे खेल को समझनेवाले बताते हैं कि ये उन छद्म कंपनियों (शेल कंपनीज) के करामात हैं जिन्हें अपनी बैलेंस शीट में कैश इन हैंड बढ़ाने की जरूरत होती है जिसमें बहुत ज्यादा कागजी कार्यवाही होती है। शहर की अकाउंटेंसी बिरादरी की नजर में यह 31 दिसंबर को खत्म हो रही तिमाही से पहले कागजों पर लेनदेन को सही ठहराने का तिकड़म है।
बैलेंस शीट में कैश इन हैंड का मतलब है कि कंपनी के पास नोटों या सिक्कों के रूप में कितने पैसे ह््ैं। आम बोलचाल में कहा जा सकता है कि कैश इन हैंड छोटे-छोटे खर्चों के लिए रखी जानेवाली नकदी रकम है जिसे बैंक में जमा नहीं करवाया जाता। हालांकि, इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि पैसे किसी ड्रॉअर में पड़े नहीं होते। 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की। उसके बाद से कोलकाता के व्यापारी समुदाय ने पुराने नोट को बदलने या इनका कुछ हिस्सा बैंकों में जमा करने की हर कोशिश की। तीसरी तिमाही के खत्म होने में महज 4 दिन बचे ह््ैं। ऐसे में उनके पास कैश इन हैंड दिखाने के लिए नकदी बहुत कम बची है। इनकम टैक्स अधिकारियों को पता चला है कि कई कंपनियों की बैलेंश शीट में बड़ी मात्रा में ’कैश इन हैंड’ दिखाया गया है जबकि हकीकत में उनके पास नकदी बहुत कम पड़ी है। अगर इन कंपनियों ने अपनी बैलेंस शीट में लंबे समय से कैश इन हैंड दिखाया है तो अनुमान लगाया जाता है कि इनके पास 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोट भारी मात्रा में होंगे। लेकिन, आरबीआई के निर्देशों के मुताबिक इन्हें 30 दिसंबर तक बैंकों में पुराने नोट जमा कराने होंगे। यही वजह है कि इनकी मांग अचानक बढ़ गई्।

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