मर्यादा लांघते रिश्तों से कलंकित होता समाज


डॉ. सुधाकर आशावादी

भारतीय समाज में रिश्तों का समृद्ध संसार सामाजिक मर्यादा और नैतिकता का उत्कृष्ट अध्याय हुआ करता था। तुलसीकृत रामचरित मानस केवल धार्मिक ग्रन्थ नहीं, अपितु रिश्तों की नियमावली प्रस्तुत करने वाली आचार संहिता का बोध कराने में समर्थ रही है, किन्तु वर्तमान में रिश्तों की मर्यादा तार तार करते कुछ प्रसंग प्रकाश में आये हैं, जिनसे ऐसा प्रतीत होता है कि भौतिक युग में आत्मीय रिश्तों के बीच स्थापित मर्यादा की लकीर नष्ट हो चुकी है। यदि ऐसा  होता, तो बुआ-भतीजे, दादी-पोते, सास-दामाद, समधी-समधन जैसे सम्मानजनक रिश्तों के बीच प्रेम प्रसंगों  के किस्से प्रकाश में न आते। पति और पत्नी के प्रेम में इतनी नीरसता न आती। 

पति अपनी पत्नी का अथवा पत्नी अपने पति की हत्या करने से पहले हजार बार सोचते। मर्यादा लांघते रिश्तों से ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, कि आत्मीय रिश्तों में भी संदेह की खटास उत्पन्न हो चुकी है। विचारणीय बिंदु है कि जिन रिश्तों को जन्म जन्मांतर का रिश्ता बताकर गृहस्थ  जीवन की स्थापना की जाती है. वही रिश्ते आजकल संदेह के घेरे में आने लगे हैं। स्त्री पुरुष संबंधों में स्वच्छंदता की अवधारणा ने समाज द्वारा स्थापित मर्यादित आचरण को तार तार कर दिया है। कारण चाहे कुछ भी रहा हो। 

सोशल मीडिया, यू ट्यूब, वेब सीरीज पर कत्ल जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने के तरीके दिखाए जाने का मसला हो या दैहिक अवैध संबंधों में पति और पत्नी के मध्य किसी दूसरे किरदार का आ धमकना। ऐसी स्थिति में पति और प्रेमी के मध्य किसी एक के प्रति अधिक आकर्षण लोमहर्षक जघन्य अपराध की पृष्ठभूमि तैयार करने अहम भूमिका निभाता है।

देश में आए दिन पति द्वारा पत्नी का कत्ल या पत्नी द्वारा प्रेमी  साथ मिलकर पति के कत्ल की घटनाएं प्रकाश में आती रहती हैं। इस प्रकार की घटनाओं  का कारण स्पष्ट नहीं हो पाता। फिर भी हत्या के बाद लाश के साथ की जाने वाली दरिंदगी समाज में आदिम युग जैसी बर्बरता का बोध कराती है। विगत दिनों उत्तर प्रदेश के मेरठ में पत्नी द्वारा प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या के समाचार देश भर के मीडिया  सुर्खियां बने रहे। पति का कत्ल करके उसकी लाश को पंद्रह टुकड़ों में विभक्त करके प्लास्टिक के ड्रम में डालना तथा सीमेंट के घोल से लाश को जमाने का प्रयास वीभत्स क्रूरता का परिचायक था। इसके उपरांत भी पत्नी का प्रेमी के साथ पर्वतीय क्षेत्र में जाकर रंगरेलियां मनाना यही सिद्ध कर गया कि रिश्तों का कत्ल करके कोई किस प्रकार से बेखौफ रह सकता है। 

बहरहाल यह रिश्तों का एक उदाहरण है। इसके ठीक विपरीत भी ऐसे प्रसंग प्रकाश में आते रहे हैं, कि जिनमें पति द्वारा अपनी पत्नी का कत्ल करके शव के साथ इसी प्रकार की क्रूरता की गई। लाश को अनेक टुकड़ों में विभक्त करके फ्रिज में रखा गया तथा लम्बे अरसे बाद हत्याकांड का राजफाश हुआ। प्रथम दृष्टया ऐसी आपराधिक वारदातों को देखकर आम आदमी की यही प्रतिक्रिया होती है, कि यदि वैवाहिक संबंधों में निभाव संभव नहीं था, तब भी रिश्ता निभाने का क्या औचित्य था, समय से विवाह विच्छेद क्यों नहीं कराया। 

नि:संदेह समाज में ऐसी वारदातों का होना मानव समाज में गृहस्थी की आधारशिला विवाह जैसी संस्था को ही संदेह के घेरे में खड़ा करने में समर्थ है, सास और दामाद पवित्र रिश्ता, बुआ- भतीजे का आत्मीय पवित्र रिश्ता, ससुर पुत्रवधु का बाप बेटी सरीखा पवित्र रिश्ता, बाप बेटी का रिश्ता जिस प्रकार संदेह के घेरे में आ गया है, उससे एक छत के नीचे रहने वाले लोगों को संदेह और असुरक्षा की स्थिति में ला खड़ा किया है, जिसका समुचित निदान खोजा जाना समाज और पारिवारिक संबंधों की गरिमा बनाये रखने के लिए नितांत अनिवार्य है।

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