प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (31 दिसबंर) को अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के जरिए देश के लोगों को संबोधित किया. ये इस साल का आखिरी 'मन की बात' कार्यक्रम है. पीएम मोदी ने कहा कि अपने परिवार से लोगों से मिलकर जैसा लगता है, ठीक ऐसा ही मुझे आप लोगों से इस रेडियो कार्यक्रम के जरिए बात करके लगता है. प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों को 2024 की शुभकामनाएं दीं.
पीएम मोदी ने कहा कि आज हमारी साझा यात्रा का 108वां एपिसोड है. हमारे यहां 108 अंक का महत्व, उसकी पवित्रता एक गहन अध्ययन का विषय है. माला में 108 मन के, 108 बार जप, 108 दिव्य क्षेत्र, मंदिरों में 108 सीढ़ियां, 108 घंटियां... 108 का ये अंक असीम आस्था से जुड़ा हुआ है. इसलिए मन की बात का 108वां एपिसोड मेरे लिए और खास हो गया है. इन 108 एपिसोड में हमने जनभागीदारी के कितने ही उदाहरण देखे हैं.
रेडियो कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा कि ये 140 करोड़ भारतीयों की ताकत है कि इस वर्ष हमारे देश ने कई विशेष उपलब्धियां हासिल की हैं. आज भारत का कोना-कोना आत्मविश्वास से भरा हुआ है. विकसित भारत की भावना से, आत्मनिर्भरता की भावना से ओत-प्रोत है. पीएम मोदी ने कहा कि 2024 में भी हमें इसी भावना और मूमेंटम को बनाए रखना है. उन्होंने लोगों को 2024 नववर्ष की बधाई भी दी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत को इनोवेशन हब बनना, इस बात का प्रतीक है कि हम रुकने वाले नहीं हैं. 2015 में हम ग्लोबल इनोवेश रैंक में 81वें स्थान पर थे, आज हमारी रैंक 40 है. उन्होंने बताया कि इस साल भारत में फाइल होने वाले पेटेंट्स की संख्या ज्यादा रही है, जिसमें करीब 60% घरेलू फंड के थे. क्यूएस एशिया यूनिवर्सिटी रैंकिंग में इस बार सबसे अधिक संख्या में भारतीय यूनिवर्सिटी शामिल हुई हैं.
पीएम मोदी ने बताया कि भारत के प्रयास से 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में मनाया गया. इससे इस क्षेत्र में काम करने वाले स्टार्टअप्स को बहुत सारे अवसर मिले हैं. फिजिकल हेल्थ को लेकर दिलचस्पी जिस तरह से बढ़ रही है, उससे इस क्षेत्र से जुड़े कोच और ट्रेनर्स की मांग भी बढ़ रही है. उन्होंने बताया कि आज फिजिकल हेल्थ और बेहतर स्वास्थ्य की चर्चा तो खूब होती है, लेकिन इससे जुड़ा एक और बड़ा पहलू है मानसिक स्वास्थ्य का है.
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि मैं आपको झारखंड के एक आदिवासी गांव के बारे में बताना चाहता हूं. इस गांव ने अपने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने के लिए एक अनूठी पहल की है. इस स्कूल को शुरु करने वाले अरविन्द उरांव कहते हैं कि आदिवासी बच्चों को अंग्रेजी भाषा में दिक्कत आती थी इसलिए उन्होंने गांव के बच्चों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाना शुरू कर दिया.
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