✍ डॉ. मनोज मुरारका
देश में खाना बनाने से लेकर शरीर की त्वचा पर लगाने के लिए भी आज भी लोग शुद्ध सरसों का तेल ही उपयोग करते हैं। बाजार में विगत दो सालों से सरसों के तेल की कीमतें काफी ज्यादा हैं। ऐसे में मिलावटखोर सरसों के तेल में मिलावट खूब करने लगे हैं, जिससे हमारी सेहत को नुकसान होने का खतरा भी बढ़ गया है। मिलावटी खाद्य तेल के उपयोग के कई दुष्प्रभाव भी हैं। मिलावटी सरसों के तेल के उपयोग से हमारी सेहत पर गंभीर दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं। सबसे पहले जी मिचलाना और पेट खराब होना जैसी समस्या होती है। इसके अलावा पेट में सूजन यहां तक कि दिल और सांस की बीमारी तथा एनीमिया का खतरा भी बढ़ जाता है।
पहले सरसों के तेल में (राइस ब्रान) धान की भूसी का तेल बहुतायत में मिलाया जाता था, लेकिन अब पाम ऑयल मिलाया जाने लगा है। पाम ऑयल तेल से सस्ता होने के कारण दुकानदार को अधिक मुनाफा होता है। राइस ब्रान ऑयल का भी नकली सरसों का तेल बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। इन तेलों में रंग, खुशबू और मिर्च का अर्क, सिंथेटिक एलाइल आइसोथायोसाइनेट, प्याज का रस व फैटी एसिड की मिलावट करते हैं। खाने में सरसों के तेल का स्वाद तीखा व कड़वा होता है। इसकी सुगंध तेज होती है। मिलावटी तेल खासकर पामोलिन मिले तेल को फ्रिज में रखने पर वह वनस्पति की तरह जमने लगता है। शुद्ध सरसों का तेल कभी भी जमता नहीं है। इसे जांचने के लिए तेल के नमूने में गाढ़ा यानी सांद्र नाइट्रिक एसिड मिलाकर मिश्रण को खूब हिलाएं। थोड़ी देर बाद मिश्रण में अगर लाल-भूरे रंग की परत दिखाई दे तो यह मिलावटी होने का संकेत है।
खाने के तेल में मिलावट की शुरुआत पश्चिम बंगाल से मानी जाती है। बंगाल तेल का बड़े उपभोक्ता वाला राज्य है। साल 1998 में कोलकाता स्थित बेहाला इलाके में एक दुकान ने टीओसीपी युक्त रेपसीड तेल बेचा, जो कि खाद्य तेल जैसा सस्ता रसायन था। लोगों ने उसे बड़े चाव से खरीदा। उन्हें नहीं पता था कि उसमें किसी तरह की मिलावट है, लेकिन उपभोक्ताओं ने जल्द ही अपने शरीर में इसके जहरीले प्रभावों को महसूस करना शुरू कर दिया। नतीजतन वहां काफी लोग बीमार पड़ गए, साथ ही कुछ लोगों को दिल का दौरा भी पड़ा। हाल ही में बंगाल फिजिशियन जर्नल में प्रकाशित लेख फ्राइंग पैन में जहर का उल्लेख भी सामने आया है। इसमें कहा गया है कि पहले लक्षण उल्टी और दस्त के साथ फूड पॉइजनिंग से शुरू हुए, लेकिन यह तेजी से बढ़ते हुए दिल के दौरों में बदल गया।
मिलावट का खेल वैसे तो पूरे साल चलता है, लेकिन त्योहारों और शादियों के सीजन में मांग बढ़ने से मिलावटखोरी और बढ़ जाती है। इस दौरान सबसे ज्यादा रिफाइंड व सरसों के तेल की मांग होती है। महंगाई की वजह से सरसों के तेल में मिलावट की जड़ें देश में मजबूती से फैली हुई हैं। बाजार में नकली सरसों का तेल भी खूब बिकता है। यह तेल बड़े ब्रांड के मिले-जुले नाम से बेचा जाता है। सरसों के तेल में मिलावट करने वाले अधिक मुनाफे के चक्कर में लोगों की जान से खिलवाड़ करते हैं। नकली खुला सरसों का तेल तो बिकता ही है, विभिन्न ब्रांड के नाम पर भी नकली खुला तेल बेचा जाता है। इसमें पाम ऑयल, राइस ब्रान, सोया ऑयल मिलाकर सरसों का तेल बनाते हैं। इसके बाद असली से तीस-चालीस रुपए कम दामों में बेचते हैं। सस्ते दामों में मिलने वाले इन तेलों की खासियत यह होती है कि इनमें किसी तरह की खुशबू नहीं होती है और मिलावटखोर इसी बात का फायदा उठाते हैं।
असल में मिलावटी सरसों या खाने का कोई भी तेल स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि केमिकल व ग्लिसरीन युक्त तेल से लीवर संबंधी रोग की आशंका रहती है। वहीं मिलावटी तेल में मिले हानिकारक तत्व एल्डिहाइड, पॉलीमर आदि बेहद नुकसानदेह हैं। पॉलीमर ऐसा तत्व है, जो तले जाने के बाद कार्बोहाइड्रेट के साथ मिलकर कैंसर की कोशिकाएं तक विकसित कर सकता है। वहीं फैटी एसिड हृदय की धमनियों में जमता है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। ड्राप्सी से पीड़ित मरीज के शरीर में सूजन के साथ ही फेफड़ों में पानी जमा होने का खतरा रहता है, जबकि रसायन युक्त तेल लंबे समय तक इस्तेमाल करने से स्वसन तंत्र भी प्रभावित होता है। वहीं ट्राई-ऑर्थो-क्रेसिल फॉस्फेट एक मिलावटी तत्व है, जो खाद्य तेल के रंग के समान होता है। यह देखने पर आसानी से पकड़ में नहीं आता है। यह तेल में घुलनशील है और इसका स्वाद भी खाद्य तेल से ज्यादा अलग नहीं होता।
एक सर्वे के अनुसार, खाने का तेल खरीदने वाले एक चौथाई लोग रोजाना भोजन में जहर का सेवन कर रहे हैं। कंपनियां भले ही विटामिन ए से लेकर विटामिन डी तक होने के दावे कर देती हों, लेकिन टेस्ट करने पर इनमें मात्रा से अधिक नशीले केमिकल पाए गए हैं। यह टेस्ट किसी और ने नहीं, बल्कि सरकारी फूड रेगुलेटर एफएसएसएआई ने किए हैं। नियामक ने पिछले साल देश भर से खाने के तेल के हजारों सैम्पल जुटाए। इनमें ब्रांडेड और खुले में बिकने वाले तेल दोनों शामिल रहे। नियामक ने सरसों तेल, नारियल तेल, पाम ऑयल, ब्लेंडेड ऑयल, सोयाबीन तेल, राइस ब्रान ऑयल, मूंगफली तेल समेत खाने वाले 15 तेलों के नमूनों को टेस्ट किया। इनमें से 25 फीसदी स्टैंडर्ड से नीचे पाए गए। असल में उपभोक्ताओं को खाने के तेलों पर भरोसा करने से पहले पूरी छानबीन कर लेनी चाहिए और मानक वाले तेल ही खरीदने चाहिए। आखिर में सवाल आपकी सेहत का है, जिस पर ध्यान देना बहुत जरूरी है।
(लेखक ऑयल रिसर्चर हैं.)
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