डॉ. ललित कुमार
पटना में 23 जून को विपक्षी पार्टियों की पहली बैठक हुई, जिसमें 16 दलों ने हिस्सा लिया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है अगर नया गठबंधन 450 सीटों पर चुनाव लड़ता है इस गठबंधन की जीत आसान हो सकती है। बेंगलुरु में विपक्षी दलों की दूसरी बैठक में 2004 में बने यूपीए गठबंधन का नाम बदलकर ‘इंडिया’ कर दिया गया। नए गठबंधन ‘इंडिया’ -‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव एलाइंस’ जोकि 26 दलों से मिलकर बना है। जिसको लेकर NDA खेमे में बेचैनी बढ़ने लगी है। इस नए गठबंधन की पूरे देश की राजनीति में चारों ओर चर्चाएं शुरू होने लगी हैं। नए गठबंधन 'इंडिया' का उद्देश्य लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए है, साथ ही 2024 के चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने के लिए सभी विपक्षी पार्टियां, लोकतंत्र की हत्या करने वाली सत्तारूढ़ पार्टी को रोकने के लिए एक मंच पर आ चुकी हैं। मीटिंग के आखिरी दिन अपने भाषण में राहुल गांधी ने कहा कि बीजेपी के खिलाफ यह लड़ाई भारत की सेकुलर विचारधारा और लोगों की आवाज को बुलंद करने के लिए है। इस गठबंधन का गठन ऐसे समय में बहुत जरूरी हो जाता है जब आम आदमी अपनी पहचान छिपाने के लिए दूसरों का सहारा ले रहा हैं।
छब्बीस राजनीतिक दलों का यह महागठबंधन अब एक नए कलेवर में देश की जमीनी हकीकत से रूबरू कराने के लिए तैयार है। देश के बदलते हालात साथ ही संविधान पर मंडराता ख़तरा एक चिंता का विषय बना हुआ है। देश में राष्ट्रवाद का बढ़ता दायरा और नफरती माहौल के साथ साथ सांप्रदायिक रंगों में रंगा एक ऐसा तबका जो सड़कों पर निकलकर कानून और संविधान को किनारे करके किसी की भी हत्या करके अगर बच निकले तो समझ जाइए कि यह देश किस दिशा में जा रहा है। क्योंकि लोगों में बढ़ती धार्मिक वैमनस्यता पूरे समाज को गर्त में ले जाने का काम कर रही है। इसलिए देश के 26 दलों का एक मंच पर आना यह कोई संयोग नहीं है. बल्कि देश में बढती असमानता की खाई और लोगों में नफरत सोच पैदा करने वालों के खिलाफ मजबूती से आपसी बंधुत्व एवं भाईचारे को बढ़ाने का काम करेगा।
वर्ष 2024 को ध्यान में रखकर बनाया गया यह नया गठबंधन ‘इंडिया’ भारतीय राजनीति को एक नई पहचान देने के लिए बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर कमर कसने को तैयार है। वर्ष 1977 और 1989 में कांग्रेस को घेरने के लिए भी 13 दलों ने ऐसे ही एक गठबंधन बनाया था, हालांकि उस वक्त गठबंधन का असर पूरे देश में हुआ और जनता पार्टी की मदद से मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन कुछ सालों बाद अखिरकार यह गठबंधन टूट गया। अटल बिहारी वाजपेई ने जनता दल से अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिस कारण मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई थी। उसके बाद कांग्रेस की मदद से जनता दल सेकुलर के नेता रहे चौधरी चरण सिंह को देश का अगला पीएम बनाया गया, हालांकि वह 1980 तक इस पद पर रहे लेकिन लोकसभा में चौ. चरण सिंह सरकार को विश्वास मत हासिल करने के दौरान कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस लेकर चौधरी सरकार गिरा दी थी। यानि कहने का मतलब साफ़ है कि विपक्षी एकता इस गठबंधन को अगर अपने फ़ायदे के लिए देख रही हैं, तो इस गठबंधन का हस्र भी 1970 और 80 के दशक की तरह हो सकता है। इसलिए सबको मिलकर कम करने की ज़रूरत हैं।
‘इंडिया’ गठबंधन के सभी 26 दल मोदी के विजय रथ को अपने-अपने राज्यों में पहले ही रोक चुके हैं या यूं कहें मोदी का जादू उन राज्यों में नहीं चल सका। जिममें तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, झारखंड, कर्नाटक, बिहार, दिल्ली, पंजाब और केरल राज्य शामिल है। इन राज्यों में बीजेपी की स्थिति कुछ खास नहीं है। अब सवाल है प्रधानमंत्री मोदी ने 18 जुलाई को विपक्षी एकता को जवाब देने के लिए जिन 38 दलों के साथ बैठक की। उनमें से 25 पार्टियों के पास लोकसभा सदन में उनका प्रतिनिधित्व ही नहीं है, लेकिन यह पार्टियां अपनी महत्वाकांक्षा से कहीं ज्यादा लोकसभा चुनाव में बीजेपी से अपनी हिस्सेदारी ज़रूर मांगेगी। तब उस वक़्त एनडीए के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है। भाजपा ने अपने कुनबे का आकार तो बढ़ा लिया, लेकिन 25 पार्टियों के पास क्षेत्रीय राजनीति के बाहर कोई जनाधार नहीं है, न हीं उनके पास कोई बड़े चेहरे हैं। तो ऐसे में बीजेपी जैसा चाहेगी वैसा ही उनको मानना पड़ेगा। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के 26 दलों में आधे से ज्यादा नेता राष्ट्रीय छवि के नेता माने जाते हैं। ऐसे में कांग्रेस को कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव में फायदा हो सकता हैं। नए गठबंधन का मनोवैज्ञानिक असर भले ही लोगों के जेहन में पड़े लेकिन पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में सीटों का बंटवारा और नेतृत्व को लेकर चुनौतियां बन सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नए गठबंधन को ‘मोदी हटाओ’ की जगह ‘इंडिया बचाओ’ जैसे नारों की रणनीति का फोकस करना बेहतर होगा, तभी नए ‘इंडिया’ गठबंधन का सपना साकार हो सकता है। साथ ही इस गठबंधन में शामिल सभी विपक्षी पार्टियां अपने मकसद में कामयाब हो सकेंगी।
(लेखक श्री शंकराचार्य प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, भिलाई में पत्रकारिता के सहायक प्रोफेसर हैं)
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